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धर्मपुर पोखर से अब तक मिली हैं चार मूर्तियां

बहादुरपुर प्रखंड क्षेत्र की औझोल पंचायत के धर्मपुर पोखर से अप्रैल 2018 से अब तक चार मूर्तियां मिली हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 13 Mar 2019 01:37 AM (IST)Updated: Wed, 13 Mar 2019 01:37 AM (IST)
धर्मपुर पोखर से अब तक मिली हैं चार मूर्तियां

दरभंगा । बहादुरपुर प्रखंड क्षेत्र की औझोल पंचायत के धर्मपुर पोखर से अप्रैल 2018 से अब तक चार मूर्तियां मिली हैं। पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण धर्मपुर पोखर के संरक्षण की कोशिश नहीं दिख रही है। इनमें एक मूर्ति को ओझौल ब्रह्मस्थान में स्थापित कर ग्रामीण पूजा-अर्चना करते हैं। पुरातत्व के जानकार मुरारी कुमार झा कहते हैं कि धर्मपुर से अभी विष्णु की और मूर्ति मिलने की संभावना है। कम से कम पांच मूर्ति होनी चाहिए। बताते हैं कि 25 अप्रैल को मूर्ति के अलावा दो कलश भी मिले थे। स्वर्ण के लोभ में आकर ग्रामीणों ने कलश को फोड़ दिया। जिसमें से कउड़ी और धान निकले। प्रतीत होता है कि उस तालाब के जाइठ पूजन के साथ पंच-मूर्ति पूजन हुआ होगा। भौगोलिक ²ष्टि से देखें तो पंचोभ गांव से लेकर धर्मपुर तक सीधी लाइन में सड़क है। ये दोनों जगहों के रिश्ते को दिखाता है। पंचोभ के पास स्थित लखनसार पोखर का क्षेत्रफल करीब दस लाख वर्गफुट है जबकि धर्मपुर पोखर का क्षेत्रफल साढ़े तीन लाख वर्ग फुट है। संभव है धर्मपुर के पास उस दौर में आबादी रही हो।

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ओझौल पंचायत के सामाजिक कार्यकर्ता मनोज कुमार सिंह कहते हैं अप्रैल से लेकर अभी तक धर्मपुर पोखर से चार मूर्तियां निकली हैं। लेकिन पहली बार धर्मपुर के लोगों को मूर्ति नसीब हुई। 25 अप्रैल 2018 को धर्मपुर पोखर से दो मूर्तियां मिली थी। चांडी गांव के लोग उसे लेकर भाग गए। बड़ी मूर्ति उन्होंने चांडी में स्थापित कर दी। जबकि छोटे साइज की दूसरी मूर्ति का अभी तक पता नहीं चला है। 29 मई को पुरातात्विक पैनल मिला। उसे तारालाही के लोग अपने गांव ले जाकर पूजा-पाठ कर रहे हैं। लनामिविवि के प्राचीन इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ. अयोध्यानाथ झा के अनुसार, 25 अप्रैल को मिली विष्णु की मूर्ति की तरह 18 जून को मिली मूर्ति भी विलक्षण है। 18 जून को मिली मूर्ति 124 गुणे 60 सेंटीमीटर आकार की है। मूर्ति कलात्मक है और कर्नाटकालीन प्रतीत हो रही है। विष्णु की इस मूर्ति में शंख, चक्र, गदा और पद्म स्पष्ट दिख रहा है। सरस्वती और लक्ष्मी भी विराजमान हैं। इतना ही नहीं, गुरूड़ भी उत्कीर्ण हैं। व्याघ्र और हाथी का चित्रण बताता है कि इस पर दक्षिण की मूर्ति कला का असर है। समग्र ²ष्टि से देखें तो इस मूर्ति में नार्थ-साउथ समन्वय की स्पष्ट छाप है। बताते हैं कि पाल वंश और कर्नाट वंश के शासन के बीच के काल को कुछ इतिहासकार ब्लैक पीरियड कहते हैं। इस क्षेत्र में शासन की ²ष्टि से पूरी तरह अराजकता थी। कहा जाता है कि दक्षिण भारत (कर्नाटक) से आए योद्धाओं के समूह ने मिथिला का शासन संभाला और यहां कला और संस्कृति को खूब आगे बढ़ाया। यही कारण है कि यहां की शिल्प कला में दक्षिण का असर है। कई जानकार व्याघ्र और हाथी का चित्रण बौद्ध धर्म पर सनातन धर्म के वर्चस्व का प्रतीक बताते हैं।


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