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बेहाल सिचाई परियोजनाएं, प्रकृति के रहमोकरम पर किसानी

दरभंगा लोकसभा क्षेत्र के तहत आता है बहादुरपुर विधानसभा। इसमें है हनुमाननगर प्रखंड।

By JagranEdited By: Published: Tue, 16 Apr 2019 12:20 AM (IST)Updated: Tue, 16 Apr 2019 12:20 AM (IST)
बेहाल सिचाई परियोजनाएं, प्रकृति के रहमोकरम पर किसानी
बेहाल सिचाई परियोजनाएं, प्रकृति के रहमोकरम पर किसानी

दरभंगा । दरभंगा लोकसभा क्षेत्र के तहत आता है बहादुरपुर विधानसभा। इसमें है हनुमाननगर प्रखंड। पहले इस इलाके की प्रसिद्ध मुख्य रूप से धान उत्पादन के लिए संपूर्ण जिले में थी। इसके पश्चिमी भाग में बागमती की धारा बहती है। नदी की धारा को वाटरवेज बनाकर नियंत्रण किया गया था। जटमलपुर के पास पंचफुटिया बांध में नदी से जलनिकासी के लिए स्केप रेग्युलेटर लगाए गए थे। गोदाईपट्टी में नदी के बांध में फाटक लगाया गया था। बाढ़ और वर्षा के मौसम में जब नदी में पानी का दबाव बढ़ने लगता था तो पांच फुट की ऊंचाई पार होने की स्थिति में जल का निस्सरण बकमारा धार से होते हुए खगड़िया के समीप कोशी नदी में मिल जाती थी। इसके कारण कभी लोगों को प्रलंयकारी बाढ़ की त्रासदी नहीं झेलनी पड़ती थी। कालातंर में व्यवस्था ध्वस्त हो गई। राजकीय नलकूप बंद पड़े हैं। भूगर्भ सिचाई परियोजनाएं अस्तित्वविहीन हो चुकी हैं। किसानी प्रकृति के रहमोकरम और निजी संसाधनों पर आश्रित है। बड़ा मुद्दा में सिचाई परियोजनाओं की पड़ताल करती हनुमाननगर से सुधीर चौधरी की रपट। जल निस्सरण की व्यवस्था हो गई ध्वस्त :

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बागमती नदी के गोदाईपट्टी में वाटरबेज बांध में गेट लगाया गया। नहर बनाकर बाढ़ के समय में जलनिकासी और सुखाड़ एवं खेती के समय में नदी पर बने बांध का गेट खोलकर नहर के जरिए खेतों में पानी पहुंचाया जाता था। इससे गोदाईपट्टी, तीसीडीह, पटोरी, अरैला, बसुआरा, डघरौल, रुपौली, गोढैला, दाथ समेत दर्जनों गांवों के चौर में न तो जलजमाव रहता था और न ही खेतों की सिचाई की समस्या झेलनी पड़ती थी। दक्षिणी पूर्वी भाग के बागमती की धारा को पंचफुटिया के निकट वाटरबेज बांध में पांच फुट की ऊंचाई पर स्केप रेग्युलेटर लगाए गए थे। यह बकमारा नहर होते हुए सीधे तौर पर खगड़िया में कोशी की धारा से मिलती थी। बाढ़ के पानी के साथ आए सिल्टेशन से भूमि की उर्वरता काफी बढ़ जाती थी। धान के साथ ही बिना लागत के चना, मसूर आदि की फसल होती थी। ये किसानों की समृद्धि के स्त्रोत थे। बागमती किनारे लगे फाटक से जलनिस्सरण की व्यवस्था का दोहरा लाभ किसानों को मिलता था। चौर के निचले भाग में जलजमाव की समस्या नहीं थी। लेकिन सभी ध्वस्त हो गई। अस्तित्व खोकर नहरें चढ़ गईं अतिक्रमण की भेंट :

नदी से गांव के चौर में नहर की व्यवस्था की गई थी। किसान सहजता से खेतों की सिचाई कर लेते थे। गोढैला, काली, पंचोभ, डीहलाही समेत क्षेत्र के अधिकांश हिस्से में बने नहर नीमा धार समेत अधवारा समूह की धाराओं से संबद्ध थे। इसका दोहरा लाभ लोगों को मिलता था और यह क्षेत्र खुशहाल था। नहरें वर्षों पूर्व अपना अस्तित्व खोकर अतिक्रमण की भेंट चढ़ गईं। भूगर्भ जल परियोजना इतिहास में दफन हो गई। इस क्षेत्र के लोग बाढ़, सूखाड़ और जलजमाव का कोप झेलने को बाध्य हैं।

कागज पर नलकूपों का संचालन :

हनुमाननगर के पश्चिमी दक्षिणी, पूर्वी भाग के बागमती नदी किनारे अवस्थित रतनपुरा, मोरो, कनौजरघाट, गोदाईपट्टी, रुपौली, डघरौल, दाथ, नेयाम छतौना, सराय हमीद आदि में 11 भूगर्भ जल सिचाई परियोजनाएं स्थापित हुई। लेकिन विभागीय लापरवाही की वजह से सभी अस्तित्व विहीन हो गए हैं। 1980 में हनुमाननगर के नेयाम छतौना, डीहलाही, उर्रा, पंचोभ, पटोरी, थलवाड़ा, सिनुआरा, गोढियारी, गोढैला, रामपुरडीह, नरसरा, हनुमाननगर आदि पंचायतों में 21 राजकीय नलकूप लगे। सभी मामूली तकनीकी खराबी के कारण स्थापना के बाद से ही बंद पड़े हैं। वैसे इनका संचालन कागज पर जारी है। लोग मौसम और प्रकृति अथवा निजी पंपसेटों के सहारे किसानी में लगे हैं। धान, चना आदि की फसलें इतिहास बन गई है। करोड़ों की लागत से नेयाम घाट पर हुआ पुल निर्माण :

प्रखंड से सटे नेयाम घाट पर बागमती नदी में कई नौका दुर्घटनाएं हुईं। आधा दर्जन लोगों की डूबकर मौत होने के बाद सरकार की तंद्रा भंग हुई। समस्तीपुर एवं दरभंगा जिला को जोड़ने के निए नेयाम घाट पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने करोड़ों की लागत से पुल का शिलान्यास किया। पुल का निर्माण भी पांच वर्ष पूर्व हो गया। लेकिन पहुंच पथ आज तक नहीं बनाया गया। ऐसे में करोड़ों की लागत से निर्मित यह पुल महज एक पहुंच पथ के अभाव में सुगम यातायात में अवरोधक बना हुआ है। कहते हैं लोग-- बांध बाढ़ का निदान नहीं : क्षेत्र के किसान सरकार की गलत नीति के कारण बदहाल हैं। हमारे प्रतिनिधि जीतने के बाद बाढ़ और सूखाड़ का स्थायी निदान करें। इसके लिए सार्थक पहल की जाए। बांध बाढ़ का निदान नहीं हो सकता है।

--जय किशोर यादव, डीहलाही।

कृषि और किसानों का विकास सही मायने में सिचाई की व्यवस्था से होगी। हमारे प्रतिनिधि सोलर के बदले पौराणिक सिचाई व्यवस्था यथा नहर प्रणाली, भू-गर्भजल परियोजना, राजकीय नलकूपों की स्थापना पर ऐच्छिक कोष खर्च करें तो क्षेत्र के किसानों का भला हो सकता है।

-अभय कुमार चौधरी, पैक्स अध्यक्ष, गोदाईपट्टी।

हमारे प्रतिनिधि कृषि अनुदान के बदले सिचाई की योजनाओं के लिए संसद और विधानमंडलों में आवाज उठावें। समयबद्ध योजनाएं बनाकर नहर प्रणाली, भूगर्भ जल संरक्षण, सिचाई के लिए हर खेतों में नहर, पईन और नदियों की उड़ाही जैसे प्राकृतिक जल स्त्रोतों के संरक्षण संवर्धन की दिशा में पहल करें। किसान खुशहाल, तो देश खुशहाल होगा।

वसंत कुमार, प्रखंड प्रमुख, हनुमाननगर।

जनता जग चुकी है। हम वोट उसी को देंगे, जो क्षेत्र का विकास, सिचाई की व्यवस्था और कृषि के साथ ही किसानों के लिए जल संकट से निजात दिलाने का वादा करे।

उपेंद्र राय, रुपौली।


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