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राजनीति में लीडर की जगह अब डीलर को प्राथमिकता

दो बार कांग्रेस से लोकसभा एवं एक बार राज्यसभा सदस्य रहे स्व. रामभगत पासवान के परिजनों में कोई राजनीति में सक्रिय नहीं है। उनकी पत्नी विमला देवी (80) प्रधानाध्यापक पद से सेवानिवृत्त होने के बाद लहेरियासराय के नवटोलिया स्थित आवास पर परिजनों के साथ रहती हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 03 Apr 2019 12:36 AM (IST)Updated: Wed, 03 Apr 2019 12:36 AM (IST)
राजनीति में लीडर की जगह अब डीलर को प्राथमिकता
राजनीति में लीडर की जगह अब डीलर को प्राथमिकता

दरभंगा । दो बार कांग्रेस से लोकसभा एवं एक बार राज्यसभा सदस्य रहे स्व. रामभगत पासवान के परिजनों में कोई राजनीति में सक्रिय नहीं है। उनकी पत्नी विमला देवी (80) प्रधानाध्यापक पद से सेवानिवृत्त होने के बाद लहेरियासराय के नवटोलिया स्थित आवास पर परिजनों के साथ रहती हैं। वैसे मूलरूप पतोर ओपी के मधुबन गांव निवासी हैं। बहेड़ी प्रखंड के महुआ निवासी उनके पिता स्व. ज्ञानरंजन पासवान भी विधायक रह चुके हैं। संसदीय चुनाव के संबंध में बातचीत शुरू करते ही विमला देवी कहती हैं कि पहले वाली राजनीति नहीं है। लीडर की जगह अब डील को प्राथमिकता है। यही कारण है कि अच्छे और जानकार लोग राजनीति से दूर हो रहे हैं। पहले श्रद्धा भाव से जनता का काम किया जाता था। जिसका परिणाम होता था कि कार्यकर्ता बिना लोभ-लालच के प्रचार प्रसार करने में मगन रहते थे। उनमें अपने लीडर और पार्टी के प्रति दीवानगी होती थी। लेकिन, अब यह सपना लग रहा है। वर्ष 1970 में उनके पति रामभगत पासवान यूपीएससी की परीक्षा पास कर गए। इंटरव्यू देने दिल्ली गए। पूर्व मंत्री स्व. ललित नारायण मिश्रा, विनोदानंद झा और नागेंद्र झा से उनकी मुलाकात हुई। उनलोगों ने उन्हें इंटरव्यू देने से रोक दिया और कांग्रेस पार्टी से जोड़कर वर्ष 1971 में दरभंगा और समस्तीपुर जिले के रोसड़ा संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया। उन्होंने एसएसपी के उम्मीदवार रामसेवक हजारी को पराजित किया। उस दौरान रोसड़ा लोकसभा क्षेत्र में दरभंगा जिले के बहेड़ी और घनश्यामपुर विधानसभा क्षेत्र सहित समस्तीपुर के वारिसनगर, सिघिया, रोसड़ा और हसनपुर आता था। हायाघाट स्थित उनके स्कूल में ही रहकर चुनाव लड़ा गया। उस दौर में उम्मीदवार के पास सिर्फ अपनी एक साइकिल थी। रुपये की कमी थी। पत्नी को 75 रुपये और उन्हें डेढ़ सौ रुपये वेतन मिलता था। चुनाव लड़ने के कारण स्व. पासवान को नौकरी छोड़नी पड़ी उसकी अलग चिता थी। बावजूद, जनता और कार्यकर्ता की जो सहानभूति मिली वह अभी देखने को नहीं मिलती है। साइकिल से प्रचार प्रसार किया गया। नाव पर साइकिल रखकर दियारा क्षेत्र का भ्रमण करते थे। कार्यकर्ता भोजन की बात तो दूर चाय पीने की इच्छा भी व्यक्त नहीं करते थे। यही कारण था कि पति के सांसद बनने के बाद उन्हें कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। कहती हैं उस समय पीएम से मिलने के लिए सांसद को समय मांगने की जरूरत नहीं पड़ती थी। सांसद के साथ पत्नी और बच्चों को भी पीएम समय देते थे और उनके साथ तस्वीर खिचवाते थे। वर्ष 1977 में बीएलडी से चुनाव लड़ रहे रामसेवक हजारी से स्व. रामभगत पासवान पराजित हो गए। इसके बाद उन्हें राज्यसभा में भेजा गया। वर्ष 1980 के चुनाव में वाहनों का इस्तेमाल होने लगा। वर्ष 1984 के चुनाव में रामभगत पासवान पर पार्टी ने एक बार फिर विश्वास किया। उन्होंने एलकेडी के उम्मीदवार रामसेवक हजारी को पराजित कर दिया। कहती हैं इस चुनाव में पहली बार उनके पति ने चारपहिया गाड़ी का इस्तेमाल किया। चार सौ रुपये प्रति माह की दर से गाड़ी और चालक भाड़े पर लिया गया था। राशि की व्यवस्था पार्टी और कार्यकर्ताओं की ओर से हुई थी। दो बार लोकसभा और एक बार राज्यसभा सदस्य रहने के बाद भी पत्नी विमला देवी पर कोई फर्क नहीं पड़ा। वह स्कूल में बच्चों को पढ़ाने में मगन रही। आम और खास में कोई अंतर नहीं था। जब भी विभाग में कोई नए पदाधिकारी आते थे तो उन्हें यह जानकर आश्चर्य होता था। वर्ष 1989 और 1996 के चुनाव में उन्हें फिर से सफलता नहीं मिली। 12 जुलाई 2010 को उनका निधन हो गया। तीन पुत्र अरविद कुमार, तेजनारायण मणि, सरोज कुमार और दो पुत्रियां कविता कुमारी और कल्पना कुमारी हैं। सभी अपने रोजी रोजगार में लगे हैं। राजनीति में कोई नहीं हैं। मां के साथ घर पर रह रहे पुत्र तेजनारायण मणि कहते हैं कि पहले वाली बात नहीं रही। अच्छे लोग की कद्र खत्म हो गई। मौजूदा परिवेश की राजनीति वे कर ही नहीं पाएंगे। कौन जनता से झूठ बोलने जाएगा।

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