केंद्रीय पुस्तकालय के 90 हजार पुस्तकों का हो चुका कंप्यूटरीकरण, पांडुलिपियों की सुरक्षा कड़ी
प्राच्य विद्या के विकास और विस्तार के उद्देश्य से स्थापित कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय बहुमूल्य व दुर्लभ प्राच्य साहित्यों का समृद्ध खजाना माना जाता है।
दरभंगा । प्राच्य विद्या के विकास और विस्तार के उद्देश्य से स्थापित कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय बहुमूल्य व दुर्लभ प्राच्य साहित्यों का समृद्ध खजाना माना जाता है। यहां कई ऐसी प्राचीन पुस्तकें व पांडुलिपियां हैं जो देश-विदेश के लिए अप्राप्त हैं। इन साहित्यों को सहेजने की दिशा में विवि प्रशासन तत्पर है। वर्तमान में विश्वविद्यालय के केंद्रीय पुस्तकालय में उपलब्ध पुस्तकों का कंप्यूटरीकरण किया जा रहा है। भावी पीढ़़ी के लिए इन बहुमूल्य साहित्यिक संपदाओं को सहेजने के उद्देश्य से यह प्रयास किया गया है। पुस्तकों के कंप्यूटरीकरण एवं पांडुलिपियों व ट्रांसक्रिप्टों की सुरक्षा का लाभ विवि को नैक मूल्यांकन में भी मिल चुका है। विवि के अधीन मौजूद लगभग 6 हजार से अधिक प्राचीन और दूर्लभ पांडूलिपियों को भी विवि मुख्यालय में सुरक्षित रखा गया है। इसके साथ ही प्राच्य विद्या से संदर्भित विभिन्न नवीन रचनाओं के प्रकाशन की दिशा में भी विवि पहल कर रहा है।
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केंद्रीय पुस्तकालय में 1 लाख 29 हजार 356 पुस्तकें :
विवि के केंद्रीय पुस्तकालय में कई प्राचीन व दुर्लभ पुस्तकें हैं। पुस्तकालय में रखी पुस्तकों की संख्या लगभग 1 लाख 29 हजार 356 है। अब तक लगभग 90 हजार पुस्तकों का सोल सॉफ्टवेयर पर कंप्यूटरीकरण किया जा चुका है। केंद्रीय पुस्तकालय के प्रभारी पुस्तकालयाध्यक्ष ने बताया कि पुस्तकों का जीवन सीमित होता है पर उसमें निहित ज्ञान की समय सीमा असिमित होती है। इन पुस्तकों में निहित ज्ञान से आने वाली पीढ़ी भी लाभान्वित हो सके, इसके लिए यह कार्य जरूरी है।
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पंचांग के साथ पुस्तकों का भी हो रहा प्रकाशन :
विवि स्तर पर हर साल पंचांग का प्रकाशन किया जाता रहा है। संपूर्ण मिथिला क्षेत्र में इस पंचांग की सर्वमान्यता है। इतना ही नहीं, मिथिला से बाहर रहने वाले मैथिलों के बीच भी इस पंचांग का प्रसार है। इस वर्ष पंचांग का प्रकाशन भी समय से पूर्व करने में विवि सफल रहा है। इसके साथ ही प्राच्य साहित्य से संबंधित नवीन रचनाओं को प्रकाशित करने में भी विवि तत्पर है। इतना ही नहीं, दुर्गाशप्तशती का भी मैथिल परंपरानुसार प्रकाशन का कार्य विवि ने शुरू कर दिया है।
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पांडुलिपियों एवं ट्रांसक्रिप्टों की बढ़ी सुरक्षा :
वर्तमान में विवि के पास लगभग 6 हजार 143 प्राचीन व दूर्लभ पाण्डुलिपियां हैं जो हमारे इतिहास का महत्वपूर्ण स्त्रोत है। इसके अलावा ट्रांसक्रिप्टों की संख्या लगभग 78 है। साथ ही लगभग 1560 शोधप्रबंध भी विवि में मौजूद हैं। पाण्डुलिपियों एवं ट्रांसक्रिप्टों की सुरक्षा को देखते हुए इन्हें पुस्तकालय से हटाकर विवि मुख्यालय में कड़े सुरक्षा घेरे में रखा गया है। हालांकि, पांडुलिपियों के डिजिटिलाइजेशन का काम भी 2012-13 में शुरू हुआ, लेकिन यह काम कुछ ही दिनों बाद रूक गया जो फिर शुरू नहीं हो सका।
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पूर्व में हो चुकी है 14 पांडुलिपियों की चोरी :
बता दें कि पूर्व में कुलपति आचार्य किशोर कुणाल के समय वर्ष 2003 में विवि से लगभग 14 प्राचीन दूर्लभ पाडुलिपियों की चोरी हो चुकी है जिसका पता आज तक नहीं चल पाया। इन पांडुलिपियों में महाकवि विद्यापति के हाथों रचित भगवद्गीत और हेमांगत ठाकुर रचित ग्रहमाल सहित कई दूर्लभ साहित्य शामिल थे।
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