प्लास्टिक अत्यधिक उपयोग से बना घातक
जब प्लास्टिक का आविष्कार हुआ था तो पूरी दुनिया ने इसे वरदान माना। लेकिन अत्यधिक इस्तेमाल के कारण यह घातक बन गया है।
दरभंगा। जब प्लास्टिक का आविष्कार हुआ था तो पूरी दुनिया ने इसे वरदान माना। लेकिन, अत्यधिक इस्तेमाल के कारण यह घातक बन गया है। आज हर आदमी पांच ग्राम प्लास्टिक प्रति सप्ताह खा रहा है। फिर भी इसके उत्पादन को चाह कर भी हम रोक नहीं सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो अगले सौ वर्षो तक प्लास्टिक का कोई दूसरा विकल्प नजर नहीं आता है। इसके इस्तेमाल के बिना मानवीय सभ्यता मुश्किल में पड़ जाएगी। उक्त बातें रसायनशास्त्री सह एमआरएम कॉलेज के आक्यूएससी कोऑर्डिनेटर डॉ. विवेकानंद झा ने प्लास्टिक प्रदूषण के जाने-अनजाने तथ्य विषयक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कही। डॉ. प्रभात दास फाउण्डेशन एवं एमआरएम कॉलेज की एनएसएस इकाई के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी में प्लास्टिक की विस्तृत व्याख्या करते हुए डॉ. झा ने बताया कि इसके किसी भी रूप में ढ़ल जाने के कारण ही इसका अत्यधिक इस्तेमाल हुआ। माइक्रो प्लास्टिक सबसे खतरनाक है और इससे फेसवाश, साबुन, टूथपेस्ट आदि का निर्माण धड़ल्ले से जारी है। पर, इसे बंद नहीं किया जा सकता, क्योंकि प्लास्टिक का प्रयोग हर उद्योग में हो रहा है। यह घातक है तो कई मायनों में लाभदायक भी है। यही कारण है कि प्रतिबंध के बावजूद भी दरभंगा शहर पोलीथिन मुक्त नहीं हो पाया है। अध्यक्षता करते हुए प्रधानाचार्य डॉ. अरविद कुमार झा ने कहा कि प्लास्टिक मानवीय लाईफ-स्टाइल का पार्ट बन गया है और इससे बचा नहीं जा सकता। घर से वायुयान तक इसका प्रयोग जारी है और वातावरण, जानवर, मनुष्य, धरती सभी को नुकसान पहुंचा रहा है। इससे बचाव का एक ही रास्ता है कि इसका कम से कम इस्तेमाल किया जाए। कॉलेज की छात्राओं को उन्होंने संकल्प दिलाया कि कॉलेज परिसर को प्लास्टिक मुक्त करने के लिए प्रति सप्ताह कार्यक्रम चलाया जाएगा। संगोष्ठी में प्रो. सरिता कुमारी, प्रो. ख्वाजा सलाउद्दीन, प्रो. सुधीर कुमार मिश्रा, अंशु कुमारी, दक्षा फिरदौस, अंकिता कुमारी, अपराजिता सिंहा, ईशा साह, रूची प्रियम आदि ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन एनएसएस समन्वयक डॉ. पुतुल सिंह ने किया। स्वागत फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रो. शीला यादव ने किया। कार्यक्रम में डॉ. कन्हैया चैधरी, प्रो. शिखर वासिनी, प्रो. नीला झा, डॉ. अजय कुमार झा, प्रो. सगुफ्ता परवीन, प्रो. संगीता कुमारी, राजकुमार गणेशन, अनिल कुमार सिंह आदि मौजूद रहे।