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पति की लंबी उम्र के लिए नवविवाहिता करतीं 14 दिनों की तपस्या, नमक से दूरी

दरभंगा। सावन के महीने में मिथिलांचल में मधुश्रावणी के गीत गूंजने लगे हैं। लोक पर्व मधुश्रावणी की तैयारियों में नव विवाहिताएं जुट गई हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 11 Jul 2020 01:51 AM (IST)Updated: Sat, 11 Jul 2020 06:10 AM (IST)
पति की लंबी उम्र के लिए नवविवाहिता करतीं 14 दिनों की तपस्या, नमक से दूरी

दरभंगा। सावन के महीने में मिथिलांचल में मधुश्रावणी के गीत गूंजने लगे हैं। लोक पर्व मधुश्रावणी की तैयारियों में नव विवाहिताएं जुट गई हैं। पति की लंबी आयु की कामना के लिए चौदह दिन की यह पूजा सिर्फ मिथिला में ही होती है। यह पर्व मिथिला में नवविवाहिता बहुत ही धूमधाम से दुल्हन के रूप में सजधज कर मनाती है। मिथिलांचल संस्कृति के अनुसार, शादी के पहले साल के सावन महीने में नव विवाहिता महिलाएं मधुश्रावणी का व्रत करती हैं। सावन के कृष्ण पक्ष के पंचमी के दिन से इसकी शुरुआत होती है। मैथिल समाज की नवविवाहितों के घर मधुश्रावणी का पर्व पूरे विधि-विधान से होता है। इसमें मिट्टी की प्रतिमाएं, विषहरा, शिव-पार्वती बनाया जाता है। मधुश्रावणी में नव विवाहिताएं बिना नमक के 14 दिन भोजन करती है। श्रावण मास के शुक्लपक्ष की तृतीया को विशेष पूजा के साथ व्रत खत्म होता है। इस दौरान नवविवाहिता महिलाएं व्रत रखकर गणेश, चनाई, मिट्टी एवं गोबर से बने विषहारा एवं गौरी-शंकर का विशेष पूजा कर महिला पुरोहिताईन से कथा सुनती है।

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इस व्रत के द्वारा स्त्रियां अखण्ड सौभाग्यवती के साथ पति की दीर्घायु होने की कामना करती है। व्रत के शुरु होते ही नवविवाहिता के ससुराल से पूरे 14 दिनों तक के लिए व्रत की सामग्री तथा सूर्यास्त से पूर्व प्रतिदिन होने वाली भोजन सामग्री भी वहीं से आती है। शुरु व अंतिम दिनों में व्रतियों द्वारा परिवार के लोगों में अंकुरी बांटने का भी रिवाज देखने को मिलता है। प्रतिदिन पूजन के बाद नवविवाहिता अपनी मित्र मंडली के साथ आसपास के मंदिरों एवं बगीचों में फूल और पत्ते तोड़ती है। शाम के समय तोडे गए फूल सुबह पूजन के वक्त काम में आता है। इसका विशेष महत्व है। इसलिए शाम के समय नवविवाहिता अपनी सखियों के साथ एक समूह बनाकर पूजा के लिए बांस की डाली में फूल तोड़ती हैं। साथ में गीत भी गाती हैं। तेरह दिनों तक नवविवाहिता अपने ससुराल का अरवा भोजन प्राप्त करती हैं। यह पर्व पति की दीर्घायु के लिए किया जाता हैं।

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सुहाग के लिए नवविवाहिता करती है मधुश्रावणी मैथिल समुदाय की नवविवाहिता अमर सुहाग के लिए मधुश्रावणी करती हैं। पड़ोसी देश नेपाल में इस पर्व को बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। पूजन स्थान पर पर मैनी (पुरइन, कमल का पत्ता) के पत्ते पर विभिन्न प्रकार की आकृतियां बनाई जाती है। महादेव, गौरी, नाग-नागिन की प्रतिमा स्थापित कर व नैवेद्य चढ़ा कर पूजन शुरु होता है। इस व्रत में विशेष रूप से महादेव, गौरी, विषहरी व नाग देवता की पूजा की जाती है।

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पर्व के अंतिम दिन टेमी दागने की है प्रथा प्रत्येक दिन अलग-अलग कथाओं में मैना पंचमी, विषहरी, बिहुला, मनसा, मंगला गौरी, पृथ्वी जन्म, समुद्र मंथन, सती की कथा व्रती को सुनाया जाता है। सुबह की पूजा में गोसांई गीत व पावनी गीत गाया जाता है और शाम की पूजा में कोहबर तथा संझौती गीत गाए जाते है। व्रत के अंतिम दिन व्रती के ससुराल से मिठाई, कपड़े, गहने सहित अन्य सामान भेजे जाते हैं। पर्व के अंतिम दिन टेमी दागने की भी परंपरा है। मधुश्रावणी के दिन जलते दीप की बाती से शरीर कुछ स्थानों पर मसलन घुटने और पैर को दागने की परंपरा वर्षों पुरानी है।

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कहते हैं ज्योतिषाचार्य बेनीपुर के पौडी गांव के ज्योतिषाचार्य हनुमान प्रसाद मिश्र का कहना हैं कि सावन में मधुश्रावणी के अवसर पर नवविवाहित महिलाएं गौडी, गणेश व नाग देवता का पुजन कर अपने सुहाग की हमेशा रक्षा करने का वर मांगती हैं। नवविवाहित महिलाओं के लिए मधुश्रावणी पर्व विशेष शुभदायक हैं। मधुश्रावणी पुजन कृष्ण पंचमी से लेकर शुक्ल पंचमी तक होता हैं।अंतिम दिन टेमी दागने की रस्म पुरी की जाती हैं। -


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