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.तुम अपना और बच्चों का ख्याल रखना, स्थिति ठीक होते मैं आऊंगा घर

कारगिल विजय दिवस पर विशेष बक्सर कारगिल युद्ध के समापन के बाद सीमा पर आतंकियों की घु

By JagranEdited By: Published: Sun, 25 Jul 2021 09:27 PM (IST)Updated: Sun, 25 Jul 2021 09:27 PM (IST)
.तुम अपना और बच्चों का ख्याल रखना, स्थिति ठीक होते मैं आऊंगा घर
.तुम अपना और बच्चों का ख्याल रखना, स्थिति ठीक होते मैं आऊंगा घर

कारगिल विजय दिवस पर विशेष :

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बक्सर : कारगिल युद्ध के समापन के बाद सीमा पर आतंकियों की घुसपैठ तेज हो गई थी। भारतीय सेना के जवान आए दिन सर्च ऑपरेशन चला रहे थे। 18 अगस्त 2001 की शाम की बात आज भी याद है, जब सीमा पर तैनात मेरे पति और सेना के जवान चितरंजन सिंह ने मुझे वहां के बिगड़े माहौल की जानकारी दी थी। वह फोन पर बोले थे यहां का माहौल बहुत खराब चल रहा है, तुम अपना और बच्चों का ख्याल रखना मैं हालात सुधरते ही घर आ जाऊंगा, लेकिन बाद में उनका तिरंगा से लिपटा शव आया।

19 अगस्त 2001 को खुफिया इनपुट पर मेरे पति अपने साथियों के साथ जम्मू कश्मीर स्थित कुपवाड़ा के नागरी जंगल में सर्च ऑपरेशन पर गए थे। 20 अगस्त की सुबह जंगल में एकाएक गोलीबारी शुरू हो गई। जवाबी कार्रवाई में मेरे पति ने दो आतंकवादियों को मार गिराया। जब तीसरे को खदेड़ते हुए आगे बढे। इसी बीच इनकी गोलियां खत्म हो गई। तब तक छुपे आतंकियों ने घात लगाकर उन पर गोलियों की बौछार कर दी। दुश्मन की दर्जनों गोलियां लगने से वह वीरगति को प्राप्त हो गए। यह बताते हुए अनुमंडल अंतर्गत चिलहरी गांव के वीर सपूत शहीद चितरंजन की पत्नी इंदु देवी सहित पूरे परिजनों की आंखें नम हो जाती हैं।

शहीद की पत्नी को मिला राष्ट्रपति वीरता मेडल

पति की शहादत की सूचना मुझे घटना के अगले दिन 21 अगस्त को मिली। महज 30 वर्ष की उम्र में शहीद पति का पार्थिव शरीर 23 अगस्त को तिरंगे में लिपटा जब चिलहरी गांव पहुंचा तो पूरे गांव-जवार में हाहाकार मच गया। सबकी आंखें नम थी और मैं तो बेसुध थी। बाद में उन्हें पराक्रम के लिए राष्ट्रपति वीरता पदक से नवाजा गया। सेना के लेफ्टिनेंट जनरल के द्वारा दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान मुझे पुरस्कार और राष्ट्रपति वीरता पदक प्रदान किया।

कारगिल युद्ध में दिखाई थी वीरता

कारगिल युद्ध के दौरान मेरे पति अपनी बहादुरी से दुश्मनों को नाकों चने चबवा दिए थे। उस समय वे जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में तैनात थे। उनकी वीरता से प्रभावित होकर सेना के अधिकारियों ने उन्हें दो माह की छुट्टी दी थी। उसी दौरान गांव पर अपनी बहन की शादी संपन्न कराने के बाद मेरे पति चितरंजन जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा ड्यूटी पर गए थे। वहां सर्च ऑपरेशन के दौरान कई आतंकियो के मार गिराने के बाद 20 अगस्त 2001 की सुबह वीरगति को प्राप्त हुए और 23 अगस्त 2001 को पैतृक गांव चिलहरी में तिरंगे में लिपटा शव पहुंचा।

इकलौता बेटा नहीं बन सका सैनिक

महज तीस वर्ष की उम्र में मेरे पति शहीद हो गए तो मुझे लगा कि अब दोनों बच्चों का भरण-पोषण कैसे करूंगी। लेकिन परिवार का साथ मिला और बेटी मधु की शादी वर्ष 2012 में हो गई। लेकिन बालिग होने के बाद इकलौते बेटे दिलीप को सेना में नौकरी के लिए खूब प्रयास किया। लेकिन मेडिकल अनफिट घोषित होने पर ऐसा नहीं हो सका। फिलहाल मेरा बेटा पटना में कपड़े की दुकान चलाकर परिवार का भरण पोषण करता है।

खो गई शहादत की चमक, नहीं बनी घर तक पहुंचने वाली सड़क

शहीद की पत्नी ने बताया कि शहीद होने के कुछ ही माह पहले सेना के अधिकारी द्वारा बहादुरी के लिए पुरस्कार स्वरूप इन्हे बंदूक दी गई थी लेकिन शहीद होने के बाद इकलौता पुत्र के नाम लाइसेंस निर्गत कराने हेतु दर-दर की ठोकरें खाने के बाद आज तक वह नहीं मिला। शहीद के भाई पप्पू सिंह ने कहा कि पेट्रोल पम्प आवंटन की बात तो दूर आज तक दरवाजे तक पहुंच मार्ग भी नहीं बना, जिसके कारण परेशानियों का सामना करना पड़ता है। शहीद चितरंजन की मां राजकालो देवी को अपने बेटा की शहादत पर गर्व है कि अपने कोख से जन्मा औलाद देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिया। लेकिन इस बात का मलाल है कि शहादत के उन्नीस साल बाद भी गांव में शहीद स्मारक नहीं बना।

प्रतिवर्ष मनाया जाता है शहादत दिवस

शहीद चितरंजन स्मृति संस्थान के द्वारा गांव में प्रतिवर्ष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें कई गणमान्य हस्तियों का आगमन होता है। शहीद चितरंजन के भाई पप्पू सिंह, स्मृति संस्थान के सचिव भगवान जी राय ने बताया कि इस संस्थान के अध्यक्ष डा.रमेश सिंह है। पिछले कई साल से यहां आयोजित होने वाले कार्यक्रम में शहीद स्मारक बनाने की घोषणा की जाती है, लेकिन आज तक इस पर अमल नहीं किया गया।


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