इस हार ने रखी थी गुलामी की नींव, इसने दिया था जीत का भी जज्बा
आज ही के दिन 1764 में भारत के इतिहास की धारा मुड़ गई थी। बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों की जीत के साथ देश की गुलामी की नींव पड़ी थी तो इसने जीत का जज्बा भी जगाया था।
बक्सर [कंचन किशोर]। 23 अक्टूबर 1764 ...भारत के गुलामी के इतिहास की वो तारीख, जिसने एक तरफ अंग्रेजों के करीब 200 वर्षों के शासन की नींव रखी तो दूसरी तरफ देश को जीतने की सीख भी दी। इसी दिन बक्सर में महज साढ़े तीन घंटे की लड़ाई में पराजित होकर भारत अंग्रेजों के अधीन हो गया था। बहरहाल, इसी तारीख के सबक ने देश को जीत का महत्व सिखाया, जिसकी प्रेरणा से 1857 में मुट्ठी भर हिंदुस्तानी वीरों ने गोरों को नाकों चने चबवा दिए।
बक्सर के इतिहास के ज्ञाता रामेश्वर प्रसाद वर्मा कहते हैं कि ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रांतीय सत्ता में बढ़ते हस्तक्षेप एवं उसकी विस्तारवादी नीति के कारण युद्ध की स्थिति पैदा हुई। लड़ाई अंग्रेज सेनापति मेजर हेक्टर मुनरो तथा अवध के नवाब शुजाउद्दौला, बंगाल के नवाब मीर कासिम व मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना के बीच हुई थी। इसमें लगभग दो हजार भारतीय सैनिक शहीद हुए थे।
इतिहासकार पीसी राय चौधरी ने शाहाबाद गजेटियर में लिखा है कि भारत की संयुक्त सेना के पास पैदल व घुड़सवार सैनिक ज्यादा थे, लेकिन उनमें समन्वय का अभाव था। लड़ाई में अंग्रेज सेनापति के पास 857 यूरोपियन घुड़सवार व 28 बंदूकधारी थे, जिनके बल पर संयुक्त सेना के लगभग दो हजार सैनिकों को उन लोगों ने मौत के घाट उतार दिया। संयुक्त सेना के सेनापति समरू ङ्क्षसह अपने सैनिकों के साथ लड़ते हुए शहीद हो गए। इस लड़ाई में अंग्रेजों के मात्र 38 गोरे और 250 भारतीय सिपाहियों की जान गई।
कुएं में दफनाए गए थे योद्धा
इतिहासकारों के अनुसार संयुक्त सेना के शहीद योद्धाओं को कतकौली मैदान के समीप एक कुएं में हथियारों सहित दफना दिया गया। आज भी वह कुंआ मौजूद है हालांकि कुएं को मिट्टी से भर दिया गया है। साक्ष्य के तौर पर यहां अंग्रेजों ने मुगल सैन्य अधिकारियों की कब्र व विजय स्तूप का निर्माण कराया था। इस पर उन्होंने अंग्रेजी, बंगाली, उर्दू व ङ्क्षहदी भाषाओं में अपनी जीत के कसीदे गढ़े थे। हालांकि अब उस स्तूप के पत्थर टूट कर बिखर चुके हैं।
इस हार ने दिया जीतने का सबक
केके मंडल कॉलेज में दर्शनशास्त्र के शिक्षक डॉ.सच्चिदानंद सिन्हा कहते हैं कि बक्सर की पराजय से देश को आगे के युद्ध में कुशल रणनीति बनाने की प्रेरणा मिली। इसके बाद 1857 के विद्रोह में सीमित बल के बूते ही हमने अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए। आजादी के बाद सभी प्रांतों को एक सूत्र में पिरोकर अखंड भारत की स्थापना भी उसी युद्ध में मिली नसीहत की देन थी।