प्रभु का प्रत्येक पहलू कोई न कोई सीख : गंगा पुत्र
गोपियां आत्म तत्व का प्रतीक हैं, तथा कान्हा के अधरों पर सजी विश्वमोहिनी बांसुरी पूर्ण समर्पण का प्रतीक है। बांसुरी एक सूखा खोखला बांस का टुकड़ा है, जिसका अपना कुछ नहीं, न आवाज न सुर।
बक्सर । गोपियां आत्म तत्व का प्रतीक हैं, तथा कान्हा के अधरों पर सजी विश्वमोहिनी बांसुरी पूर्ण समर्पण का प्रतीक है। बांसुरी एक सूखा खोखला बांस का टुकड़ा है, जिसका अपना कुछ नहीं, न आवाज न सुर। उसमें स्वर लहरियां प्रभु के अधरों पर सजने से ही प्रस्फुटित होती हैं। यह प्रभु के हाथ का यंत्र है। जिस क्षण एक भक्त अपने अंदर के मैं का त्याग कर प्रभु के हाथ का यंत्र हो जाता है। उसी क्षण आत्म तत्व समा जाता है।
उक्त बातें मंगलवार को सोनपा में आयोजित 108 कुण्डीय श्रीलक्ष्मी नारायण महायज्ञ में गंगापुत्र श्रीलक्ष्मीनारायण त्रिदंडी स्वामी जी महाराज द्वारा श्रीमद्भागवत कथा प्रवचन का भक्तों में रसपान कराते हुए कही। उन्होंने कहा कि रासलीला के पीछे छिपे हुए आध्यात्मिक रहस्यों को उजागर करने के साथ-साथ लोगों के संशयात्मक ²ष्टिकोण को भी दूर किया। उन्होंने रासलीला का अर्थ बताते हुए कहा कि जिस रस के अनुभव से आनंद की प्राप्ति होती है। श्रुति का कथन परमात्मा ही रस है। श्वेतास्वर उपनिषद में भी इस संबंध में कहा गया है कि समस्त विश्व के निवासी उस अमृतरस रूपी ईश्वर के संतान हैं। जब आत्मा और परमात्मा का मिलन होता है तभी रासलीला होती है। यह अंतस की स्थिति है और यह आंतरिक मिलन केवल पूर्ण सद्गुरु द्वारा ही संभव है। श्रीकृष्ण ने भी बाल्यकाल में ही गोप गोपियों को ब्रह्मज्ञान प्रदान किया था। जिसका वर्णन श्रीमद्भागवत महापुराण में है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार शबरी और केवट ने प्रभु श्रीराम से अनन्य प्रेम स्थापित किया। इसी प्रकार द्वापर में भी भगवान श्रीकृष्ण के साथ गोपियों का अनन्य प्रेम था। वह प्रभु के प्रेम में मग्न हो चुकी थीं। लेकिन, आज लोगों की मानसिकता का पतन हो चुका है। प्रभु के जीवन के प्रत्येक पहलू से कोई न कोई सीख व संदेश मिलता है। जिसे अपने जीवन में धारण करने से हर मानव दुख और क्षोभ को छोड़कर आनंद को प्राप्त कर सकता है।