भादी स्कूल में 18 बच्चों को पढ़ाने के लिए दो शिक्षक
प्रखंड क्षेत्र के प्राथमिक स्कूल भादी जहां केवल 20 बच्चे नामांकित हैं। रोज-रोज पढ़ने के लिए आने वाले बच्चों की संख्या एक दर्जन है। इन बच्चों को पढ़ाने के लिए दो शिक्षक पदस्थापित हैं।
बक्सर । प्रखंड क्षेत्र के प्राथमिक स्कूल भादी, जहां केवल 20 बच्चे नामांकित हैं। रोज-रोज पढ़ने के लिए आने वाले बच्चों की संख्या एक दर्जन है। इन बच्चों को पढ़ाने के लिए दो शिक्षक पदस्थापित हैं। पिछले चार-पांच साल से लगातार बच्चों की संख्या घटने के बाद यह नौबत आई है। लापरवाही की हद तो यह है कि प्रखंड क्षेत्र के तकरीबन तीन-चार ऐसे स्कूल हैं। लेकिन, शिक्षा विभाग ने इस स्कूल का समायोजन आज तक नजदीकी विद्यालय में नहीं किया। अव्यवस्था का आलम यह है कि एक तरफ जहां डेढ़ दर्जन छात्रों के लिए दो शिक्षक हैं, वहीं दूसरी तरफ इसी प्रखंड के पन्द्रह ऐसे स्कूल हैं, जहां बच्चों के अनुपात में शिक्षकों की घोर समस्या है। प्राथमिक स्कूल भादी में वर्तमान शैक्षणिक सत्र में कक्षा पहली से पांचवी तक बच्चों की दाखिल संख्या 18 है। इनमें नामंाकित बच्चों में प्रति दिन आठ-दस बच्चे ही शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते हैं। इस स्कूल के शिक्षक संजय कुमार एवं सुमित पांडेय का कहना है कि गांव के सारे बच्चे दूसरे स्कूल में पढ़ने जा रहे हैं। पिछले चार साल से यहां आठ से दस बच्चे ही पढ़ने आ रहे थे। यहां दो मंजिला भवन, बच्चों के लिए शौचालय और मध्याह्न भोजन बनाने के लिए किचन भी है। दो शिक्षक, दो रसोइयां भी पदस्थ हैं। लेकिन, यहां छात्रों की संख्या बेहद कम है। आंख मूंद बैठे हैं अधिकारी प्रखंड क्षेत्र के प्राथमिक स्कूल भादी के अलावा प्रा.वि.पाठा सिंह के डेरा, मुरार पंचायत के बलि डेरा और प्रा.वि.शिवपुर में पदस्थापित शिक्षकों की संख्या के अनुसार बच्चों की संख्या में बहुत कमी है। जानकार सूत्रों की मानें तो इन स्कूलों के संचालन में सरकार द्वारा प्रतिवर्ष लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं। लेकिन, जिसके लिए पैसे खर्च किए जाते हैं वहीं यहां नहीं हैं। इस गंभीर समस्या की ओर आज तक किसी अधिकारियों का ध्यान आकृष्ट नहीं होना चिता की बात है।
पलायन से घट रही दर्ज संख्या गांव में पलायन की स्थिति के कारण नामांकित संख्या में कमी आई है। भादी, पाठा सिंह के डेरा, बलि डेरा और शिवपुर सहित आसपास के ग्रामीण हर साल खेती किसानी करने बाद खेतिहर भूमिहीन मजदूर पलायन कर जाते हैं। गांव में धनी वर्ग के लोगों के बच्चे कहीं न कहीं निजी स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं। नतीजतन, आनेवाले शैक्षणिक सत्र में दाखिला शून्य भी हो सकता है। जबकि, शिक्षा देने के नाम पर ऐसे ही सरकारी राशि का दुरुपयोग होते रहेगा।
सरकार के निर्देश पर शिक्षा विभाग द्वारा ऐसे स्कूलों का सर्वे कराया जा रहा है। बच्चों की संख्या में वृद्धि नहीं होने की स्थिति में वैसे स्कूलों को पड़ोस के स्कूल में मर्ज किया जाएगा।
- रामेश्वर प्रसाद, डीपीओ, स्थापना।