जिन्हें मुख्यमंत्री ने दिया पर्चा, उन्हें नहीं मिला आवास का खर्चा
देश तरक्की की राह पर है। लोगों के रहन-सहन का स्तर बदल गया है लेकिन, कोरानसराय पंचायत के मठियां डेरा में गुजर बसर करने वाले 73 परिवार में जतकुटवां, मांझी और नट बिरादरी के लोगों की दशा में परिवर्तन नहीं हुआ।
बक्सर । देश तरक्की की राह पर है। लोगों के रहन-सहन का स्तर बदल गया है लेकिन, कोरानसराय पंचायत के मठियां डेरा में गुजर बसर करने वाले 73 परिवार में जतकुटवां, मांझी और नट बिरादरी के लोगों की दशा में परिवर्तन नहीं हुआ। करीब एक दशक पूर्व अपने विकास यात्रा के दौरान कचइनियां पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यहां के लोगों को जमीन का पर्चा दिया था। उन्होंने आवास योजना के लाभ का भी भरोसा इन महादलितों को दिलाया था परन्तु, सिस्टम की भेंट चढ़ तब से ये अनुसूचित परिवार प्लास्टिक का तिरपाल तानकर आवास का सपना संजो रहे हैं। गरीबों के हित से पंचायती राज योजना किस कदर विमुख है, इसकी बानगी कोरानसराय पंचायत के मठियां डेरा अनु.बस्ती में आसानी से दिखती है। यहां के लोग खानाबदोश का जीवन जी रहे हैं। रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत जरूरत भी मयस्सर नहीं हैं। यहां के कुल 73 परिवार के लोगों के लिए मात्र एक चापानल है। शौचालय नहीं होने से खुले में शौच इनकी व्यवस्था है। किसी परिवार के पास प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत अपना मकान नहीं है। लोग प्लास्टिक तानकर जीवन-बसर करते हैं। इनका मुख्य पेशा पत्थरों को तराशना, मजदूरी एवं नाच मदारी कर परिवार के लिए दो जून की रोटी जुटाना है। समाज एवं तरक्की के बारे में इस बिरादरी के लोग अंजान है। ये न तो पढे़-लिखे हैं, न ही किसी की नसीहत को अपनाने में विश्वास रखते हैं। मेहनत-मजूदरी करके कमाना-खाना ही इनका मकसद है।
पंचायत की योजनाओं से भी वंचित हैं महादलित
मठियां डेरा के महादलित बस्ती के लोग रहते तो कोरानसराय पंचायत के दायरे में है। लेकिन, हद तो यह है कि पंचायत की किसी योजना का लाभ इन्हें मयस्सर नहीं है। बात चाहे राशन-केरोसिन की हो या फिर सरकार की महत्वाकांक्षी सात निश्चय योजना हो। बस्ती के किसी को यह नहीं मालूम कि जन वितरण प्रणाली क्या होती है। इन्हें यह भी नहीं मालूम कि सरकार इनके घरों में पेयजल का लाभ पहुंचाने वाली है। पानी के निकास के लिए नाली का निर्माण होने वाला है और आने-जाने के लिए सड़क की सुविधा मिलेगी।
कहते हैं अनुसूचित परिवार के लोग
अनुसूचित बस्ती में गुजर-बसर करने वाले सीताराम मुसहर, बलि मुसहर, विनोद, मंगनी, चानिल, ओमप्रकाश, रामकेश्वर नट, पप्पू नट, बचन, प्रेमकुमारी देवी, ¨चता, मुन्नी, पत्थरी एवं मुरादी देवी ने बताया कि यहां के लोग गुमनामी के अंधेरे में जीने को लाचार हैं। रहने के लिए आवास एवं नहाने की बात तो दूर पेयजल की समस्या भी उत्पन्न हो जाती हैं। जिसके चलते इनके मुहल्लों में अक्सर महामारी की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
मामला काफी गंभीर है। दैनिक जागरण के माध्यम से पहली बार जानकारी मिली है कि कोरानसराय के 73 परिवारों को एक दशक पूर्व जमीन का पर्चा मिलने के बाद भी खुले आसमान तले रहने को विवश हैं। इस मामले में पहल कर आवास योजना का लाभ पहुंचाने का प्रयास किया जाएगा।
प्रमोद कुमार, बीडीओ, डुमरांव।