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Japanese Fever: मस्तिष्क को प्रभावित करता है जापानी बुखार, इतने माह पर लगता है टीका; बच्चों को लेकर रहे सतर्क

Japanese Fever बक्सर जिले के दो साल के एक बच्चे में जापानी इंसेफेलाइटिस के लक्षण मिलने के बाद विभाग इसको लेकर अलर्ट हो गया है। जापानी इंसेफेलाइटिस के लिए जिम्मेवार जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस एक फ्लेवी वायरस है जो संक्रमित क्यूलेक्स ट्राइटेनिओरहाइन्चस नामक मच्छर के काटने से फैलता है। इसे आम भाषा में जापानी बुखार या दिमागी बुखार भी कहते हैं।

By Rajesh Tiwari Edited By: Sanjeev Kumar Published: Wed, 03 Apr 2024 04:54 PM (IST)Updated: Wed, 03 Apr 2024 04:54 PM (IST)
मस्तिष्क को प्रभावित करता है जापानी बुखार (जागरण)

जागरण संवादददाता, बक्सर। Buxar News Today: जिले के दो साल के एक बच्चे में जापानी इंसेफेलाइटिस के लक्षण मिलने के बाद विभाग इसको लेकर अलर्ट हो गया है। जापानी इंसेफेलाइटिस के लिए जिम्मेवार जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस एक फ्लेवी वायरस है, जो संक्रमित क्यूलेक्स ट्राइटेनिओरहाइन्चस नामक मच्छर के काटने से फैलता है। इसे आम भाषा में जापानी बुखार या दिमागी बुखार भी कहते हैं। जापानी इंसेफेलाइटिस सबसे पहले व्यक्ति के केंद्रीय मस्तिष्क (सेंट्रल ब्रेन) को प्रभावित करता है और फिर बाकी शरीर के कामकाज को प्रभावित कर सकता है।

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सदर अस्पताल के पूर्व चिकित्सा पदाधिकारी डा. भूपेंद्र नाथ कहते हैं, इसमें व्यक्ति को तेज बुखार आता है। यह बुखार सिर पर चढ़ जाता है और फिर गर्दन में अकड़न, कोमा और न्यूरोलाजिकल जटिलताओं का कारण बन सकता है। यह संक्रामक बुखार नहीं है और न ही यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। हालांकि, बच्चों को इस बीमारी से बचाने के लिए नियमित टीकाकरण के दौरान टीकाकृत किया जाता है।

जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डा. विनोद प्रताप सिंह ने बताया कि जापानी इंसेफेलाइटिस यानी जेई से बचाव के लिए नौ माह से एक साल तक के बच्चों को पहला टीका लगाया जाता है। वहीं, 16 माह से 24 माह तक के बच्चों को जेई का दूसरा टीका लगाया जाता है।

उन्होंने बताया कि वर्ष 2010 से यह टीका नियमित टीकाकरण में शामिल है। डा. भूपेंद्र ने बताया कि इस बीमारी से बचने के लिए शुद्ध पानी का उपयोग करना, जलजमाव से दूर रहना, खाने से पूर्व एवं शौच के बाद साबुन से हाथ धोना, मच्छरदानी का उपयोग करना जरूरी है। इससे बहुत हद तक इस घातक बीमारी से बचा जा सकता है। उन्होंने बताया कि जलीय पक्षी सारस, बगुला, बतख के कारण भी मस्तिष्क ज्वर होता है। पक्षी का जूठा फल खाने से भी यह बीमारी होता है।

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