ऐतिहासिक धरोहर के बाद भी नहीं मिला पर्यटन स्थल का दर्जा
आरा नगर का नामकरण चर्चित किवदंतियों में प्राचीन सिद्धपीठ माता आरण्य देवी के नाम पर हुआ बताया जाता है। जिला मुख्यालय से चारों दिशाओं में ऐतिहासिक धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान वाले शहर आरा में कई अवशेष आज किसी भी रूप में विद्यमान ही नहीं बल्कि विभिन्न संप्रदाय वर्गो और बुद्धिजीवियों के लिए श्रद्धा व आस्था का केंद्र के रूप में स्थापित है।
आरा। आरा नगर का नामकरण चर्चित किवदंतियों में प्राचीन सिद्धपीठ माता आरण्य देवी के नाम पर हुआ बताया जाता है। जिला मुख्यालय से चारों दिशाओं में ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान वाले शहर आरा में कई अवशेष आज किसी भी रूप में विद्यमान ही नहीं, बल्कि विभिन्न संप्रदाय, वर्गो और बुद्धिजीवियों के लिए श्रद्धा व आस्था का केंद्र के रूप में स्थापित है। इस पावन धरती पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम, लक्ष्मण व गुरु विश्वामित्र तथा पांचों पांडव से लेकर तीर्थंकर महावीर, सम्राट शेरशाह, महात्मा बुद्ध के अलावा जैनियों के कई चर्चित संतों का आगमन होते रहता है। पूरे जनपद के चप्पे-चप्पे में चर्चित धार्मिक स्थलों के प्रति आस्था आज भी देश-विदेश के श्रद्धालुओं को यहां खींच ले आती है। इससे सरकार के लिए भरपूर राजस्व स्रोत भी प्रबल हो जाएगा। विगत दिनों सरकार ने जैनियों के जर्जर ऐतिहासिक मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए लाखों रुपये खर्च करने की घोषणा राज्य पर्यटक निगम के माध्यम से जरूर की है, लेकिन आरा, यानी भोजपुर जनपद को पर्यटन केन्द्र का दर्जा देने के सवाल पर पटना-दिल्ली की सरकार क्यों चुप है?
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चारों दिशाओं में फैला है पर्यटकों को रिझाने वाला आकर्षण केंद्र: जिला मुख्यालय आरा नगर में जहां जैनियों का तीर्थस्थलों का जमावड़ा है।
वहीं स्वाधीनता संग्राम की लड़ाई में अमर योद्धा बाबू कुंवर सिंह की स्मृति शेष के रूप में उनका ऐतिहासिक आरा हाउस के अलावा उनके समय का अस्तबल(मौजूदा में आरा जेल), उनके सेना की वीरंगना योद्धा बहन करमनबाई और धरमनबाई के नाम पर करमन टोला व धर्मन चौक पर मस्जिद, महाराजा कॉलेज स्थित उनका कार्यालय, बाबू बाजार स्थित काली मंदिर और जिला स्कूल स्थित पाकशाला जैसे कई अन्य स्मृति चिह्न लोगों के लिए धरोहर के रूप में स्थापित है। जनपद के पश्चिम जगदीशपुर में बाबू साहेब का किला जैसे कई चिन्ह मौजूद मिल जाएंगे।
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धार्मिक स्थलों का जवाब नहीं : जनपद के दक्षिण के तरारी अंचल के देवचंदा गांव में पाषाण काल का सूर्य मंदिर जैसी कई अदभूत मंदिर, बेलाउर का सूर्य मंदिर, पश्चिम में बिहियां स्थित महथीन दाई का मंदिर, कारीसाथ में जैनियों का प्रमुख मंदिर, जनपद की सीमा पर बाबा बह्मेश्वर नाथ का मंदिर, उत्तर में बखोरापुर स्थित मां काली मंदिर तथा पूरब में बिदगावां स्थित नदियों का संगम तट। इनके अलावा शहर में गुरुद्वारा, पूर्व उप प्रधानमंत्री स्व. जगजीवन राम की समाधि, पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. रामसुभग सिंह का गांव खजुरिया तथा मौलाबाग स्थित आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा लगभग साढ़े तीन दशक पूर्व स्थापित गायत्री शक्तिपीठ, सिद्धपीठ कहे जाने वाले पतालेश्वर नाथ का मंदिर तथा बाबू बाजार स्थित ऐतिहासिक चित्रगुप्त मंदिर खास स्थलों में शुमार होते है। शहर की खुबसूरती बढ़ाने के लिए उत्तर भारत में साहित्यिक गतिविधि का केंद्र के रूप में स्थापित नागरी प्रचारिणी सभा, जो वाराणसी के बाद यहां है। इसी तरह एशिया स्तर की लाइब्रेरी के रूप में चर्चित जेल रोड स्थित दी ओरिएंटल लाइब्रेरी तथा शहर के नुक्कड़ों पर बाबू कुंवर सिंह, डॉ. भीमराव आंबेडकर, चंद्रशेखर आजाद, शहीद भगत सिंह, महात्मा गांधी, महात्मा बुद्ध, डॉ. लोहिया तथा महाराज
जरासंघ जैसे कई महापुरुषों की प्रतिमाएं किसी न किसी रूप में शहर और जनपद में पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।