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महिलाओं के साथ अप्रिय घटनाओं को अंजाम देने वालों को मिले कड़ी सजा

लगभग सात साल तीन महीना बाद निर्भया को न्याय मिला। शुक्रवार की सुबह 5.30 बजे तिहाड़ जेल में निर्भया के चारों दोषियों विनय अक्षय मुकेश और पवन गुप्ता को एक साथ फांसी के फंदे पर लटकाया गया।

By JagranEdited By: Published: Fri, 20 Mar 2020 11:10 PM (IST)Updated: Sat, 21 Mar 2020 06:13 AM (IST)
महिलाओं के साथ अप्रिय घटनाओं को अंजाम देने वालों को मिले कड़ी सजा
महिलाओं के साथ अप्रिय घटनाओं को अंजाम देने वालों को मिले कड़ी सजा

आरा। लगभग सात साल तीन महीना बाद निर्भया को न्याय मिला। शुक्रवार की सुबह 5.30 बजे तिहाड़ जेल में निर्भया के चारों दोषियों विनय, अक्षय, मुकेश और पवन गुप्ता को एक साथ फांसी के फंदे पर लटकाया गया। लंबे इंतजार के बाद फांसी की सजा मिलने पर निर्भया के परिजनों समेत पूरा देश खुश है। विदित हो कि 16 दिसंबर 2012 को देश की राजधानी दिल्ली में हुई इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। पूरे देश में गम व आक्रोश का माहौल कायम हो गया था। लोग सड़कों पर उतर आए थे। दोषियों को फांसी होने पर शहर के विभिन्न क्षेत्र की चंद महिलाओं से बातचीत की गई। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश।

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फोटो फाइल

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समाज का नैतिक पतन हुआ है। यही कारण है कि समाज में आए दिन अप्रिय घटनाएं घट रही हैं। जब भी समाज में कुकृत्य होता है तो इसको अंजाम देने वाला ही महज दोषी नहीं होता, बल्कि उसका परिवार और समाज भी दोषी होता है। क्योंकि वह इसी समाज का होता है। हमारी न्याय व्यवस्था में भी सुधार की आवश्यकता है। शीघ्र न्याय नहीं मिलने से दोषियों का मनोबल ऊंचा रहता है। समाज में नैतिक शिक्षा की बहुत आवश्यकता है। यदि नैतिक शिक्षा शुरू हो जाएगी तो अप्रिय घटनाओं में कमी आएगी।

-डॉ. विजयलक्ष्मी शर्मा, स्त्री रोग विशेषज्ञ

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निर्भया के दोषियों को जो फांसी हुई देर से ही सही देश की बेटियों के सम्मान में लिया गया एक उचित फैसला है। आज पूरा देश खुश है। निर्भया के दोषियों को फांसी की सजा हर अपराधी के लिए एक संदेश है। यह उम्मीद की जाएगी कि आए दिन होने वाली अप्रिय घटनाओं में कमी आएगी। आज जो फांसी की सजा हुई और न्याय मिला इस दिन को हम महिलाएं अब निर्भया दिवस के रूप में मनाएंगी। डॉ. सुनीता सिंह, सचिव, दिशा एक प्रयास सह पूर्व अध्यक्ष बाल कल्याण समिति

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निर्भया कांड के आरोपियों को मिली सजा में निश्चित ही अपनी बेटी के हक की लड़ाई लड़ रही मां की जीत हुई है, परंतु विचारणीय प्रश्न तो यह है कि क्या देश की न्याय प्रणाली व समाज भी इस जीत के उतने ही ह़कदार है? सवाल यह भी उठता है कि क्या यह फैसला वाकई निर्भया के साथ न्याय करता है, जबकि आरोपियों में से कुछ अब भी सजा से मुक्त हैं? सवाल यह भी उठना लाजमी है कि क्या यह पहला ऐसा मामला था या क्या यह आ़िखरी फैसला था जो प्रतिदिन जघन्यतर होते मामलों में इंसाफ का दावा करता है? इन सभी प्रश्नों के उत्तर जब हम तलाशना बन्द कर दें, शायद सभी निर्भयाओं की जीत तभी संभव हो पाएगी। नेहा नुपूर, शिक्षिका सह कवयित्री

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समाज में आए दिन बच्चियों व महिलाओं के साथ अप्रिय घटनाएं घट रही हैं। ये घटनाएं तभी समाप्त होंगी, जब दोषियों को त्वरित व कड़ी से कड़ी सजा मिले। अफसोस की बात है कि इन अप्रिय घटनाओं को अंजाम देने वाले लोग ऐसे दरिेंदे होते हैं, जो नन्ही-नन्ही बच्चियों, भीख मांगने वाली औरतों, पागल औरतों आदि तक को भी अपना शिकार बनाते हैं। घट रहीं अप्रिय घटनाओं से सभी लोग भयभीत हैं। आज एक ऐसा समाज बनाने की जरूरत है, जिसमें बच्चियां व महिलाएं सुरक्षित रहें, भयमुक्त जीवन गुजारें और सम्मानपूर्वक सर उठाकर जी सकें। प्रभा सिन्हा, संगीत शिक्षिका सह गायिका


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