आरा की छवि को बदरंग कर रहा ड्रेनेज सिस्टम
भोजपुर । कभी सड़कों के किनारे-किनारे नहर का साफ पानी बहते लोग देख चुके हैं, आज उ
भोजपुर । कभी सड़कों के किनारे-किनारे नहर का साफ पानी बहते लोग देख चुके हैं, आज उन्हें सड़कों पर जहां-तहां नाली का गंदा पानी झेलना पड़ रहा है। यह स्थिति है पुराने शाहाबाद के रहे जिला मुख्यालय आरा शहर का। समय गुजरा और दो-दो विभाजन के बाद यह जिला भोजपुर अपने पूर्ण अस्तित्व में आया। विभाजन के बावजूद आरा शहर को मुख्यालय होने का दर्जा रहा बरकरार। पौराणिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्व वाले इस शहर का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह रहा कि आज तक इस शहर की ड्रेनेज व्यवस्था को ले कोई सशक्त पहल नहीं किया गया। यों तो वर्ष 1967 में 'ड्रेनेज' को ले बड़ी योजना पहली बार बनने की बात होती है। राज्य सरकार के नगर विकास विभाग तक फाईल गयी थी। फिर वर्ष 1978 में तत्कालीन जिलाधिकारी ने शहर के लोगों के आंदोलन के बाद पहल की थी। फिर जाकर मामला सचिवालय स्थित नगर विकास विभाग में पहुंचा। वर्ष1993 में भी जगी थी सुगबुगाहट। शहरवासियों का मुद्दा हर वर्ष अक्सर बरसात के दिनों में ही जोर पकड़ता है। राजनेताओं और प्रशासन द्वारा सिर्फ आश्वासनों का घूंट पिला दिया जाता रहा। परेशान नागरिकों के असंतोष को तत्काल शांत करने के लिए बरसात पूर्व नालों की उड़ाही कर देने की बात कहना आदत सी हो चूकी है। शहर के नालो के सभी सात आऊट-फाल नगर निगम एवं जिला प्रशासन के लिए सिर दर्द बना है। नाली के पानी की निकासी आज भी गंभीर सवाल बना है, लेकिन इस पर कोई नहीं है गंभीर।