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रूप और आकार के बाद ही होता है नामकरण : जीयर स्वामी

भोजपुर । किसी जीव या वस्तु का पहले रूप होता है, उसके बाद उसका नामकरण। नामोंपाशक भ्रम

By JagranEdited By: Published: Thu, 13 Jul 2017 04:27 PM (IST)Updated: Thu, 13 Jul 2017 04:27 PM (IST)
रूप और आकार के बाद ही होता है नामकरण : जीयर स्वामी

भोजपुर । किसी जीव या वस्तु का पहले रूप होता है, उसके बाद उसका नामकरण। नामोंपाशक भ्रम में पड़ सकते हैं, लेकिन रूपोपाशक भ्रम में नहीं पड़ते। नाम के साथ रूप भी होना चाहिए। यह विचार प्रख्यात संत श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने स्थानीय चंदवा मुहल्ला में जारी चतुर्मास ज्ञान यज्ञ में जुटे श्रद्धालुओं के समक्ष अपने प्रवचन में कही। उन्होंने कहा कि कुछ दार्शनिक ऐसे हैं, जो वेद और ईश्वर को मानते हैं, लेकिन भगवान के स्वरुप को नहीं मानते। ऐसे दार्शनिक कहते है कि उनका नाम और लीला तो है, लेकिन रूप नहीं है। मानस की यह उक्ति कि बिन पग चले, सुने बिनु काना..। भगवान के रूप का वर्णन नहीं, उनके अलौकिक करनी का वर्णन है। एक ही शब्द के भाव प्रसंगवश अलग-अलग हो जाते हैं। उदाहरण के तौर पर सेंधा का अर्थ नमक और घोड़ा दोनों है। भोजन के समय सेंधा मांगे जाने पर नमक और यात्रा के समय घोड़ा ही समझा जाएगा। स्वामी जी ने कहा कि यह जगत ²ष्यमान है। स्वाभाविक है कि इसे बनाने और समेटने वाला भी होगा। इस पर शंका नहीं करनी चाहिए। भगवान को प्राप्त करने के लिए नाम और रूप दोनों की जरुरत है। उन्होंने कहा कि संत, योगी, गंगा, अग्नि और राजा का सेवन न निकट और न दूर यानी मध्य भाग से करनी चाहिए।

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