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ठंड में अलाव बना गरीबों का सहारा

कुछ देर पहले ही तो शाम ढली थी, पर ठिठुरन भरी ठंड के साथ बढ़ते अंधेरे ने गरीबों से लेकर अमीरों तक की बस्ती को अपने आगोश में लिया था। ऐसा लग रहा था, जैसे कितनी रात बीत चुकी है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 15 Jan 2019 10:50 PM (IST)Updated: Tue, 15 Jan 2019 10:50 PM (IST)
ठंड में अलाव बना गरीबों का सहारा
ठंड में अलाव बना गरीबों का सहारा

आरा। कुछ देर पहले ही तो शाम ढली थी, पर ठिठुरन भरी ठंड के साथ बढ़ते अंधेरे ने गरीबों से लेकर अमीरों तक की बस्ती को अपने आगोश में लिया था। ऐसा लग रहा था, जैसे कितनी रात बीत चुकी है। सड़कों पर सन्नाटा पसरा था और शहर के व्यस्ततम मार्गों पर भी इक्के-दुक्के वाहनों का ही आवागमन दिख रहा था। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी गरीबों की बस्ती तक अलाव की आंच नहीं पहुंची है। अलबत्ता प्रशासन ने यह घोषणा जरूर की है कि आरा शहर के चार जगहों पर बने रैन बसेरा में गरीबों के रहने व सोने की पर्याप्त व्यवस्था की गई है, जहां पर्याप्त मात्रा में ओढ़ने-बिछाने से लेकर सस्ते भोजन की भी व्यवस्था की गई है। मगर दुर्भाग्य देखिए इन चारों रैन बसेरा की क्षमता सौ व्यक्ति से अधिक की नहीं है। फिर भी जुगाड़ भिड़ाकर इन रैन बसेरों में जगह पाने वाले आम लोगों को भी प्रतिदिन 50 रुपयों के भुगतान पर रहने के साथ भोजन की सुविधा भी मिल जा रही है। जबकि निगम ने आवास के लिए 15 रुपये तथा भोजन के लिए 35 रुपये का शुल्क निर्धारित किया है। सदर अस्पातल के पास मौजूद रैन बसेरा में तो प्रशासन ने अलाव की भी व्यवस्था कर रखी है, आवासन की सुविधा से वंचित गरीब और रिक्शा चालक अलाव तापकर ठंड से बचने की कोशिश करते नजर आएं। वहीं प्रशासन ने रेलवे स्टेशन परिसर में भी अलाव की व्यवस्था की है, जहां कुहासे के कारण ट्रेनों की लेटलतीफी का दंश झेल रहे यात्री ठंड से बचने के लिए अलाव ताप रहे रिक्शा चालकों के कुनबे में शामिल थे। जबकि शहर में मौजूद गरीबों की लगभग सभी बस्तियां पूस की सर्द रात में ठिठूरन भरी ठंड से जूझने को विवश है। जवाहर टोला, अनाइठ, गौसगंज, धरहरा, चंदवा, गिरजा मोड़, बहीरो, श्री टोला, एमपीबाग, ¨बदटोली समेत दर्जनों गरीबों की बस्तियों में सरकारी अलाव की सुविधा अब तक नहीं पहुंची है, जहां रहने वाले गरीब कचरे जलाकर पूस की सर्द रात में ठंड से लड़ रहे है। इन बस्तियों में रहने वाले बुजूर्गों की हालत तो और भी खराब है। दिन में निकलने वाली हल्की फुल्की धूप ही उनके लिए सहारा है। हाड़ कंपाती लंबी सर्द रात तो काटने से भी नहीं कट रही है।

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