समरस समाज की स्थापना ही शिक्षा का मूल उद्देश्य
शिक्षा के माध्यम से समरस समाज की स्थापना करना ही शिक्षा है।
आरा। शिक्षा के माध्यम से समरस समाज की स्थापना करना ही शिक्षा है। अक्षर व अंक ज्ञान देना शिक्षा नहीं है, बल्कि मानवीय मूल्यों व गुणों से युक्त शिक्षा देना ही वास्तविक शिक्षा है। अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय शिक्षा की चुनौतियों को ध्यान में रखकर उनका समाधान करना चाहिए। उक्त बातें क्षेत्रीय सचिव दिलीप कुमार झा ने प्रखंड के बहियारा स्थित सरस्वती शिशु मंदिर के भाऊराव देवरस सभागार में चार दिवसीय प्रांतीय प्रधानाचार्य सम्मेलन में कही। उन्होंने विद्या भारती के शैक्षणिक उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। राष्ट्र के विकास हेतु बालकों का सर्वांगीण विकास व तेजस्वी बालकों का निर्माण ही हमारा लक्ष्य है। हम दूसरों को उपदेश देने वाले न बनें बल्कि आदर्श स्थापित करें। सामाजिक असमानता को दूर कर समरस समाज का निर्माण करना हमारा लक्ष्य है। शिक्षा में फैल रही अपसंस्कृति को दूर करने में विद्या भारती बालक बालिकाओं के माध्यम से बेहतर कार्य कर रही है। इसके लिए विद्यालय में कार्ययोजना बनायी जानी चाहिए। शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्ति निर्माण है और यह चरित्र के द्वारा ही संभव है। अध्यक्षता क्षेत्रीय सह संगठन मंत्री शशिकांत फड़के व मंच संचालन विभाग निरीक्षक राकेश अम्बष्ठ ने किया। वहीं प्रधानाचार्य मिथिलेश राय ने भोजपुर जिले के ऐतिहासिक व धार्मिक विरासत को विस्तार से रखा। प्रधानाचार्य उपेन्द्र कुमार पाण्डेय ने बताया कि कार्यक्रम का समापन शनिवार को होगा। मौके पर राष्ट्रीय खेल सह संयोजक कृपा शंकर शर्मा, संगठन मंत्री दिवाकर घोष, प्रदेश सचिव गोपेश कुमार घोष, प्रदेश सह सचिव प्रकाश चंद्र जायसवाल, राममूिर्त्त प्रसाद, विभाग निरीक्षक वीरेन्द्र कुमार, ब्रह्मदेव प्रसाद, बजरंगी प्रसाद, धीरेन्द्र झा, रमेशचन्द्र द्विवेदी, राजेश रंजन, रामलाल, समेत अन्य लोग मौजूद थे।