पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा पॉलीथिन
सुगम तरीके से बाजार में खरीदारी के लिए उपलब्ध पॉलीथिन के थैले तात्कालिक रूप में भले ही सुविधाजनक लगते हों, पर इसके दूरगामी प्रभावों की जानकारी होते ही अधिकांश लोग इनके उपयोग से परहेज करना शुरू कर देते हैं।
आरा। सुगम तरीके से बाजार में खरीदारी के लिए उपलब्ध पॉलीथिन के थैले तात्कालिक रूप में भले ही सुविधाजनक लगते हों, पर इसके दूरगामी प्रभावों की जानकारी होते ही अधिकांश लोग इनके उपयोग से परहेज करना शुरू कर देते हैं। पर, कुछ लोग जानकारी होने के बाद भी तात्कालिक सुविधा के चक्कर में इस खतरे की अनदेखी करते रहते हैं। उपरोक्त दोनों कारणों से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाने वाला पॉलीमर से बना पॉलीथिन अब शहरी जन जीवन के अलावा ग्रामीण जीवन में अपना पांव पसारते जा रहा है। आलम यह है इस मामले में समाज में व्याप्त लापरवाही को देखते हुए हाईकोर्ट को भी सरकार को इस मामले में आगाह करना पड़ा, जिस मामले में सोमवार से ही कार्रवाई शुरू होनी थी। हाई कोर्ट ने इस मामले में वन एवं पर्यावरण विभाग को इस आवश्यक कानून बनाने हेतु प्रस्ताव देने का सुझाव भी दिया था। पर, कार्रवाई की निर्धारित तिथि तक भी इस मामले में कोई पहल नहीं शुरू हो सका। दैनिक जागरण की टीम जब इस बात का जायजा लेने के लिए बाजार में पहुंची तो लगभग सभी दुकानों से लेकर ठेले-खोमचों तक पर खरीदारी के दौरान पालीथिन के थैलों का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा था। इस बीच इतेफाक से कुछ पर्यावरण प्रेमियों से भी टीम की मुलाकात हुई, जिन्होंने पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाने वाले पॉलीथिन के बारे में वहां मौजूद लोगों तथा दुकानदारों को भी जानकारी दी। पर्यावरण प्रेमी आनंद ने बताया कि पॉलीमर से बना पॉलीथिन 300 वर्षों तक नष्ट नहीं होता है। समय रहते इसके उपयोग पर रोक नहीं लगी तो एक दिन पूरी पृथ्वी पॉलीथिन के कचरे से पट जाएगी। वहीं सामाजिक कार्यकर्ता अमरदीप कुमार ने बताया कि शहरी जन जीवन में पॉलीथिन के प्रयोग से जहां आए दिन बड़े-बड़े नाले जाम हो जाते हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्र में कृषि योग्य भूमि की उर्वरा शक्ति भी क्षीण हो रही है। इसके अलावा पॉलीथिन के कचरो को जलाने से निकलने वाला धुआं तो मानव जीवन में धीरे धीरे जहर बनकर घुलता जा रहा है, जिससे आए दिन लोग गंभीर बीमारियों का शिकार बन रहे हैं।