बिहटा चीनी मिल बंद हुई तो उजड़ गया गन्ने का गढ़: बिहिया के खेतों में अब नहीं लहराती ईख, बदल गया पूरा कृषि परिदृश्य
बिहिया का इलाका कभी गन्ना उत्पादन के लिए मशहूर था, जहां का गुड़ दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। बिहटा चीनी मिल के बंद होने से किसानों की कमर टूट गई और उन्होंन ...और पढ़ें

पश्चिमी–उत्तरी इलाका था ईख उत्पादन का केंद्र
कौशल कुमार मिश्रा, बिहिया (भोजपुर)। बिहिया प्रखंड का उत्तर–पश्चिमी इलाका कभी ईंख उत्पादन का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। यहां की बलुई मिट्टी, अनुकूल जलवायु और मेहनती किसानों की लगन ने इस क्षेत्र को गन्ना उत्पादन में अग्रणी बनाया था। यहां का गुड़ गुणवत्ता के मामले में दूर-दराज के बाजारों में भी प्रसिद्ध था और इसकी मांग लगातार बनी रहती थी।
प्रदेश में एक बार फिर बंद पड़ी चीनी मिलों को चालू करने की चर्चा जोरों पर है, लेकिन अब न किसानों में वैसी मेहनत की ललक बची है और न वे सुविधाएं, जिनसे ईख उत्पादन अपने चरम पर था।
ईख की खेती सूखने के साथ किसानों ने भी अपने कृषि स्वरूप को बदल दिया है। ईख उत्पादन को बढ़ावा देने में बिहटा चीनी मिल की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
किसानों को गन्ना मिल तक पहुंचाने में आसानी हो, इसके लिए उस समय बिहिया और बनाही स्टेशन पर अलग से अतिरिक्त रेल लाइनें बिछाई गई थीं।
‘कांटा’ पर किसान बैलगाड़ियों से गन्ना लाकर तौल करवाते थे। तौल होने के बाद ईख सीधे मालगाड़ियों में लोड होकर बिहटा चीनी मिल भेजा जाता था।
जिन किसानों का गन्ना स्टेशन पर नहीं तौला जा पाता, वे बैलगाड़ियों से सीधे मिल तक पहुंच जाते थे। स्टेशन के आसपास का इलाका किसानों से गुलजार रहता था।
कांटा पर तौल, कागज की पर्ची, समय पर भुगतान और उचित कीमत—इन सबने किसानों को ईख की खेती में निरंतर बनाए रखा।
स्वर्णिम दशक और मिल की भूमिका
शिव बालक टोला के 82 वर्षीय भोला नाथ बताते हैं कि 1970 का दशक यहां गन्ना उत्पादन का स्वर्णिम काल था। मिल प्रबंधन ने इस क्षेत्र में अपनी जमीन लेकर बड़े पैमाने पर ईख की खेती भी शुरू की थी।
इससे किसानों को रोजगार मिला, साथ ही उन्हें बेहतर बीज और आधुनिक तकनीक का लाभ भी मिलने लगा। उनका कहना है कि प्रबंधन की आंतरिक चुनौतियां, सरकार की उदासीनता, मशीनों का जर्जर होना और बढ़ता आर्थिक घाटा—इन सबकी वजह से बिहटा चीनी मिल धीरे-धीरे बंद होती चली गई।
मिल बंद होते ही गन्ना किसानों की कमर टूट गई। खरीदार न मिलने पर किसानों ने मजबूरी में धान, गेहूं और सब्जियों की खेती की ओर रुख कर लिया।
मिल प्रबंधन ने भी बाद में औने-पौने दाम पर अपनी जमीन बेच दी।
ईख से गुलजार खेतों में आज उग रही हैं अन्य फसलें
कभी जिन खेतों में गन्ने की बालियां लहराती थीं, आज वहां धान और गेहूं की खेती होती है। हुलास टोला, महुआंव, जादोपुर, सिकरिया, जोगिबीर, कामरियाव, कराखिया, बगही, बनाही जैसे गांव गन्ने के बड़े उत्पादक हुआ करते थे।
बलुई मिट्टी में होने वाला यहां का ईख गुड़ और चीनी दोनों के लिए बेहतरीन माना जाता था, और मिल की ओर से इसकी विशेष मांग रहती थी, लेकिन मिल बंद होने के बाद गन्ने की खेती धीरे-धीरे मिटती गई।
आज स्थिति यह है कि इन सभी गांवों को मिलाकर भी पांच बीघा से अधिक ईख की खेती नहीं होती।
गन्ना किसानों का दर्द
राघव दुबे जैसे बुजुर्ग किसान आज भी उस दौर को याद कर अफसोस जताते हैं। उनके अनुसार मिल के बंद होते ही किसानों की मेहनत, आय और उम्मीदों पर जैसे किसी ने ताला जड़ दिया। लोग कहते हैं अगर मिल चलती रहती, तो आज भी यह इलाका गन्ने का गढ़ होता।

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