अनोखी परंपरा: यहां महिलाएं करती हैं होलिका दहन की अगुवाई
बिहार के कटिहार शहर में होलिका दहन की एक अनूठी परंपरा कायम है। यहां होलिका दहन की अगुआई मारवाड़ी समाज की महिलाएं ही करती हैं।
कटिहार [नंदन कुमार झा]। कटिहार शहर में होलिका दहन की एक अनूठी परंपरा कायम है। यहां होलिका दहन की अगुआई मारवाड़ी समाज की महिलाएं ही करती हैं। असत्य पर सत्य की विजय के इस आयोजन में नारी सम्मान का मौन मंत्र सदा से गूंजता रहा है।
शहर के बड़ा बाजार में होली की पूर्व संध्या पर होलिका दहन की परंपरा 118 साल पुरानी है। घरों में खास तौर पर तैयार किए गए उपलों से होलिका दहन किया जाता है। शाम ढलते ही बड़ी संख्या में महिलाएं रंग-बिरंगे परिधानों में होलिका दहन स्थल पर पहुंचकर परिक्रमा के बाद विधि-विधान से यह रस्म पूरी करती हैं।
होलिका दहन के पूर्व दिन में महिलाओं की टोली पूजा के लिए पहुंचती है। उनके द्वारा विधिवत पूजा के साथ पकवान चढ़ाया जाता है। इसके साथ ही होलिका में प्रह्लाद के रूप में आम का पेड़ चढ़ाया जाता है। नवविवाहित स्त्रियां होलिका के फेरे लेती हैं। साथ ही महिलाएं होलिका दहन के बाद वहां की राख को एकत्रित कर दूसरे दिन से गणगौर की पूजा आरंभ करती हैं। इस होलिका दहन को देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं।
नव विवाहित युवतियों द्वारा यहां विशेष पूजा भी की जाती है। भीड़ को देखते हुए प्रशासन द्वारा सुरक्षा की खास व्यवस्था की जाती है। वरीय प्रशासनिक और पुलिस पदाधिकारी सहित शहर के गणमान्य लोग भी इस दौरान मौजूद रहते हैं।
यह सनातनी परंपरा है। इस समाज में नारी की महत्ता सर्वोच्च मानी जाती है। नारी धर्म के साथ संस्कृति व विचारों की वाहक भी मानी जाती है। पर्व हमें सत्य और असत्य का फर्क भी बताता है। किसी के जीवन में खुशियों का आधार भी महिलाएं होती हैं। इसी से परिवार व समाज का अस्तित्व भी है। यह परंपरा बस उसी दृष्टिकोण की वाहक है।
- विमल सिंह बेगानी
अध्यक्ष, चैंबर ऑफ कॉमर्स
होली विभेद मिटाने वाला पर्व है। सदा से होली के मौके पर मुख्य कार्यक्रम में महिलाएं अगुवाई करती रही हैं। बाद में परिवार के पुरुष सदस्यों के साथ मिलकर इस रस्म को पूरा किया जाता है। यह परंपरा महिला-पुरुष में फर्क नहीं रहने का मौन संदेश देता है।
- राखी अग्रवाल