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जोरू का गुलाम टिकाउ नस्ल और जोरू का बादशाह प्रजाति लगभग विलुप्त, कवि सुरेंद्र दूबे की कविताओं को सुनें

सुपौल में दैनिक जागरण ने कवि सम्‍मेलन का आयोजन किया। इस अवसर पर देश के जाने-माने कवि सुरेंद्र दूबे आए थे। उनकी कविताओं को सुनकर लोग हास्‍य में डूब गए। अन्‍य कवियों के ओज हुंकार गीत फुहार हास्य की होती रही बौछार।

By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Published: Fri, 27 May 2022 05:04 PM (IST)Updated: Fri, 27 May 2022 11:55 PM (IST)
जोरू का गुलाम टिकाउ नस्ल और जोरू का बादशाह प्रजाति लगभग विलुप्त, कवि सुरेंद्र दूबे की कविताओं को सुनें
सुपौल में दैनिक जागरण द्वारा आयोजित कवि सम्‍मेलन में कविता पाठक करते कवि सुरेंद्र दूबे।

जागरण संवाददाता, सुपौल। पत्र ही नहीं मित्र भी की भूमिका निभाते व अपने सात सरोकारों के साथ समाज में जागरूकता फैलाते दैनिक जागरण दिनानुदिन विकास के पथ पर अग्रसर है। दैनिक जागरण ने सुपौल जिलावासियों के लिए बुधवार को एक खुशनुमा शाम की पेशकश की। अखिल भारतीय कवि सम्मेलन के माध्यम से जागरण ने जिलेवासियों को देश प्रेम, समाज प्रेम, नारी सशक्तिकरण आदि के प्रति जागरूक करते हुए लोगों को खुल कर हंसने, ठहाका लगाने का भी अवसर प्रदान किया।

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राधेश्याम पब्लिक स्कूल के चेयरमैन डा. राधेश्याम यादव, विनायक ट्रेडर्स के प्रोपराइटर विवेक कुमार और डीएस बोर्डिंग स्कूल पिपरा के डायरेक्टर एम वली के सहयोग से देश के कोने-कोने से आये नामचीन कवियों ने अपनी प्रस्तुति से लोगों का मन मोहा और कवियों के आकर्षण में लोग देर रात तक कुर्सी से चिपके रहे। आइये रूबरू होते हैं कवियों के जज्बातों से।

हर कोई बोलता है टाइम नहीं है

अखिल भारतीय कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे पदमश्री सुरेन्द्र दुबे के मंच पर आने के साथ ही उनके द्वारा कहा गया कि टाईम नहीं है पर लोगों ने जमकर तालियां बजाई। श्री दुबे ने देश के हो चले हालात पर जम कर अपनी भड़ास निकाली। चाइनिज माल के बहिष्कार का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि बचा लो अपना हिन्दुस्तान। बोले कि हर कोई बोलता है टाईम नहीं है। आखिर क्या हो गया है इस देश को। सुपौल के लोग बिल्कुल झक्कास हैं और टाइगर अभी जिंदा है पर लोगों ने जमकर तालियां बजाई। व्यंग्य करते हुए कहा दो तरह के पति होते हैं एक जोरू का गुलाम कहलाते हैं तो दूसरे जोरू का बादशाह। जोरू का गुलाम टिकाउ नस्ल है और जोरू का बादशाह प्रजाति विलुप्ति पर है। बांकी आपलोग खुद समझदार हैं। कहा कि जुगनु की औकात नहीं जो सूरज को ललकारे।

जितने भी डाकू थे हमने चुन-चुन कर दिल्ली भेज दिये

मुरैना मध्य प्रदेश के कवि तेज नारायण शर्मा ने मध्य प्रदेश पर लगे डाकुओं के कलंक के प्रतिकार में कहा कि अब वे हालात नहीं रहे। जितने भी डाकू थे हमने चुन कर दिल्ली भेज दिए। राजनीति पर प्रहार करते कहा कि लालकिला हर साल एक भाषण देता है। भाषण सुनते-सुनते 69 साल गुजर गये। जो नदी भाषण में बहायी जाती है वह सुपौल आते-आते सूख जाती है। भाषण का बोध हर साल हमारे कंधों पर डालते हैं। आजादी तो समर्थ लोगों के सामथ्र्य का जलसा है। बोले कि हमारे गांव नहर भेजे गये थे अब तक नहीं पहुंच पाये। अब नदी भेजे जाने की बात हो रही है। नहर तो खा चुके अब नदी तो आते-आते सूख ही जाएगी। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि अगर आप भागीरथ हैं तो हम प्यासे हैं। हमें बस पीने का पानी भर उपलब्ध करा दो। अंत में उन्होंने कहा कि जो किये थे उन वादों का क्या हुआ, मजनू को तो टांग आये सूली पर मुल्क के रईसजादों का क्या हुआ।

मैं नैनीताल की ताजी हवा के साथ आई हूं

दैनिक जागरण के राष्ट्रीय अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में अपनी-अपनी विधा के मशहूर कवियों ने हिस्सा लिया। नैनीताल से आई प्रेम और श्रृंगार रस की कवयित्री गौरी मिश्रा ने कहा कि हास्य को सुन लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट आई है। लेकिन मेरा मानना है कि जिंदगी में अगर प्यार आ जाय तो जिंदगी अपने आप मुस्कुराने लगती है। उन्होंने दैनिक जागरण के संबंध में कहा कि चलो इस जागरण में मुस्कुराएं, खिलखिलाएं हम, यहां कुछ तुम सुनो कुछ सुनाएं हम गुनगुनाएं हम, मिले माहौल तो जज्बात की महफिल सजाए हम, बजाए तालियां तो जिंदगी के गीत गाए हम। मोहब्बत के नाम से चार पंक्तियां पढ़ते हुए उन्होंने कहा कि बीमारी इश्क में दिल की दवा के साथ आई है, मोहब्बत की अनोखी-सी अदा के साथ आई है, महकने लग गई तेरे शहर की हर गली, मैं नैनीताल की ताजी हवा के साथ आई हूं। उन्होंने आगे कहा कि मिलाकर वक्त से आंखें हर एक लम्हा चुरा लें हम, जो अपना हो नहीं सकते, उन्हें अपना बना लें हम, यहां ढूंढ़े से भी खुशियां मिलती कहां मिलती जमाने में, चलो अपने ही गम पर थोड़ा मुस्कुरा लें हम। कविता की धारा को आगे बढ़ाते हुए कही कि गुलाबी नोट से ज्यादा गुलाबी गाल कर दूंगी, तुम्हें मैं गीत गजलों से ही मालामाल कर दूंगी, बहुत नादान है यूं तो ये नैनीताल की गौरी, मिले ताली तो इस धरती को नैनीताल कर दूंगी। उन्होंने मां के संबंध में कविता के जरिए कहा कि नजर भरकर जो मैं आशियां को देख लेती हूं, उसी एक पल में सारे गुलिस्तां को देख लेती हूं, सफर में साथ रखती हूं मैं एक छोटा- सा आइना, खुद अपनी ही शक्ल में अपनी ही मां को देख लेती हूं।

अपनी हिंदी में तो गाली भी भली लगती है

मुंबई से आए हास्य व्यंग्य के सम्राट गौरव शर्मा ने अपनी विधा में लोगों को खूब हंसाया, गुदगुदाया। बोले कि मैं तो वन लाइनर कवि हूं। बस एक-एक लाइन की कविता सुनाता हूं। कोरोना काल पर तीखी टिप्पणी करते कहा कि कोरोना के वक्त तो मैं प्रभु से मात्र इतनी ही विनती किया करता था कि हे भगवन बस टीका आने तक टिकाए रखना। बोले मेरी पत्नी जब जो फिल्म देखकर आती है उस दिन उसी तरह की भूमिका में आ जाती है। उनकी इस पंक्ति पर लोगों ने खूब तालियां बजाई कि खिला हो फूल तो डाली भी भली लगती है, शक्ल अच्छी हो तो काली भी भली लगती है, प्यार के बोल भले लगते हैं हर भाषा में, पर अपनी हिंदी में तो गाली भी भली लगती है।

संसद क्या गिन पाएगी जितना हमने बलिदान दिया

ओज के नामचीन हस्ताक्षर कमलेश राजहंस की पंक्तियों ने कवि सम्मेलन में बैठे लोगों को अंदर से झकझोर दिया। बोले जलते हुए तिरंगे को देखा,बिलखती हुई आजादी को देखा, गरीबों का घर जलाते गांधीवादी को देखा,फांसी लगाते किसान अन्नदाता को देखा,मैंने सरहद पर शहीदों की लाशों से लिपटकर अपनी भारत माता को देखा। मेरी फटी हुई छाती ने भारत को इतिहास दिया है। दुश्मन की गोली खाने को जो सरहद पर खड़ा हुआ है, वो किसान का बेटा है जो आंसू पीकर बड़ा हुआ है। वीरों की गाथा दी हमने, भारत को भूगोल दिया, संसद क्या गिन पाएगी हमने जितना बलिदान दिया।

तालियों के शोर के बीच वंस मोर-वंस मोर

दैनिक जागरण और राधेश्याम पब्लिक स्कूल की प्रस्तुति अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का बुधवार को गांधी मैदान में श्रोताओं ने जमकर लुत्फ उठाया। श्री विनायक ट्रेडर्स और डीएस बोर्डिंग स्कूल पिपरा सह प्रायोजक की भूमिका में थे। कार्यक्रम में लोग ऐसे रम गए थे कि हिलने का नाम नहीं ले रहे थे। कार्यक्रम के समापन तक लोग जमे रहे। इस दौरान तालियों का शोर और वंस मोर-वंस मोर की आवाज उठती रही। बता दें कि लोगों को इस खास कार्यक्रम का सालभर इंतजार रहता है। लोग इसमें दिल खोलकर साथ देते हैं और सुधि पाठकों का प्यार मिलता है।

कार्यक्रम में अधिकारियों, स्थानीय गणमान्य, सुधि पाठकों की उपस्थिति से अभिभूत दैनिक जागरण के कार्यालय प्रभारी भरत कुमार झा ने स्वागत भाषण में कहा कि 11 राज्य और 37 संस्करणों के साथ दैनिक जागरण विश्व का सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला अखबार है। कहा कि सुधि पाठकों के प्यार से जागरण ने सुपौल में सफलता के 22 साल पूरे किए हैं। अखबार खबरों की भूख तो मिटाता ही रहा है। साथ ही मित्र की भूमिका भी अदा कर रहा है। अपनी रीत-नीत पर चलते हुए अखबार सात सरोकारों की कसौटी पर पाठकों की परीक्षा में हर दिन खरा उतरता है। पाठकों के स्वस्थ मनोरंजन और हिंदी सेवा में दैनिक जागरण आपके लिए कवि सम्मेलन का आयोजन कर रहा है। कहा कि हम पाठकों की हर कसौटी पर उनके प्यार और सहयोग से खरा उतरते हैं। पाठकों के प्यार और सहयोग देने की परंपरा का निर्वहन करते रहने की अपील के साथ उन्होंने धन्यवाद ज्ञापित भी किया।

सामाजिक सरोकारों में अग्रणी है दैनिक जागरण

दैनिक जागरण द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन को सुनने सुपौल जिले के दूर-दराज गांवों से भी लोग गांधी मैदान सुपौल पहुंचे थे। दूर-दराज गांवों से आए लोगों ने भी अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का भरपूर मजा लिया और हंसते-हंसते लोटपोट हुए। ज्यों-ज्यों रात जवां हुई कवियों की प्रस्तुति पर तालियों व ठहाके की आवाज बढ़ती ही गई। सम्मेलन को सुनने व देखने आए लोगों ने दैनिक जागरण के इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि खबरें ही नहीं बल्कि सामाजिक क्षेत्र में भी दैनिक जागरण की भूमिका दिनानुदिन बढ़ती ही जा रही है और जागरण की पहल सराहनीय भी है।

कवि सम्मेलन देखने व सुनने आए लोगों की राय

पिपरा प्रखंड क्षेत्र से आए वंदेलाल विहंगम, चंदेश्वरी मंडल, अंजनी कुमार ने कहा कि वे लोग पिछली दफा भी जागरण द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन देखने व सुनने आए थे। सामाजिक क्षेत्र में जागरण की यह पहल सराहनीय है। दैनिक जागरण खबरों के साथ-साथ अब लोगों के स्वस्थ मनोरंजन की भी व्यवस्था कर रहा है। किशनपुर से आए मौलाना वसी रहमान, नसीमुल हौदा, मो.जसीम आदि ने कहा कि कवि सम्मेलन के माध्यम से जागरण की पहुंच लोगों तक और बेहतर हुई है। सामाजिक भेदभाव भुलाकर मिल्लत का हो समाज में भी जागरण भूमिका निभा रहा है। राघोपुर से आए प्रो. बैद्यनाथ प्रसाद भगत, आलोक चौधरी ने कहा कि सामाजिक तनाव से मुक्ति का एक बहुत ही बड़ा साधन हंसना और ठहाके लगाना है। जागरण को लोगों के सामाजिक तनाव दूर करने की भी ङ्क्षचता है। सुपौल के मिन्नत रहमानी, मो. जकारिया, पंकज झा आदि ने कहा कि कवियों की अहमियत तो जैसे समाज भूल ही चुकी थी। जागरण न केवल कवियों के अस्तित्व का समाज को एहसास करा रहा, बल्कि कवि सम्मेलन के माध्यम से समाज में व्याप्त कुव्यवस्था व कुरीति पर भी चोट कर रहा है।


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