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जहां पहले फिल्मों की शूटिंग के लिए पहुंचा करते थे बड़े-बड़े कलाकार, वहां अभी बह रही गंगा की कल-कल धार

साठ के दशक में बनी मशहूर फिल्म वंदिनी की शूटिंग कटिहार जिले के ही मनिहारी घाट स्टेशन पर हुई थी। सदाबहार अभिनेता अशोक कुमार व अभिनेत्री नूतन की इस फिल्म की शूटिंग सन 1960-61 में हुई थी। लेकिन आज यह कटाव के भेंट चढ गया है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Tue, 22 Sep 2020 07:09 PM (IST)Updated: Tue, 22 Sep 2020 07:09 PM (IST)
कटिहार में गंगा नदी इस तरह कर रहा कटाव

कटिहार [प्रीतम ओझा]। मनिहारी का स्वर्णिम इतिहास भी बाढ़ व कटाव की भेंट चढ़ता गया है। बाढ़ व कटाव ने यहां की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व ऐतिहासिक विरासत को लगातार क्षति पहुंचाती रही है। साठ के दशक में बनी मशहूर फिल्म वंदिनी व उस फिल्म के सदाबहार गाने ओ मेरे मांझी.... ले चल पार... शायद आज भी अधिसंख्य लोग सुनकर मुग्ध हो जाते हैं। सदाबहार अभिनेता अशोक कुमार व अभिनेत्री नूतन की इस फिल्म की कई सीन की शूटिंग सन 1960-61 में कटिहार जिले के ही मनिहारी घाट स्टेशन पर हुई थी।

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फिल्म में मनिहारी गंगा घाट का जिक्र भी हुआ था और फिल्म के अंतिम ²श्य में नायक व नायिका उस तीन मंजिला स्टीमर पर सवार थे, जो कभी रेलवे के सौजन्य से ही साहेबगंज व मनिहारी घाट के बीच चला करती थी। जहां उस समय उक्त स्टीमर रुकती थी आज वहां गंगा की कल-कल धारा बह रही है। यही दर्द यहां के लोगों के लिए आज भी असहनीय है। लोग मांझी यानि अपने जनप्रतिनिधियों को बस कोस गंगा के रहमोकरम पर जी रहे हैं।

शेष भारत का पूर्वोत्तर राज्यों को जोडऩे का था बड़ा केंद्र

दरअसल सत्तर के दशक तक मनिहारी घाट स्टेशन का महत्ता राष्ट्रीय स्तर की थी। उस समय मनिहारी घाट स्टेशन अमदाबाद के गोलाघाट, रामायणपुर में हुआ करता था। मनिहारी घाट स्टेशन एक बड़े बंदरगाह के रुप में विकसित किया गया था। सामरिक ²ष्टि से ही इस घाट स्टेशन का विकास किया गया था। 1962 में चीन से व फिर 1971 में पाकिस्तान से हुए युद्ध के दौरान यह बंदरगाह महत्वपूर्ण कड़ी साबित हुआ था। सैन्य साजो सामान कोलकाता से वाया साहेबगंज होते हुए स्टीमर से मनिहारी गंगा घाट स्टेशन तक पहुंचता था और फिर यहां से ट्रेन के माध्यम उसे पूर्वोत्तर राज्यों तक भेजा जाता था। उस समय गंगा में स्टीमर भी रेलवे की ही चलती थी। व्यापारिक ²ष्टिकोण से भी यह काफी महत्वपूर्ण था । इस घाट स्टेशन पर उस समय रेलवे कर्मियों के लिए तकरीबन सात सौ क्वाटर भी थे और कई अधिकारी भी वहां रहते थे। बुजुर्गों की मानें तो उक्त बंदरगाह पर लगभग सात-आठ सौ से ज्यादा लोग केवल कुली का कार्य कर अपना जीवकोपार्जन करते थे। यहां से दार्जिङ्क्षलग मेल, ब्रह्मपुत्र मेल, नार्थ बंगाल एक्सप्रेस जैसी ट्रेनें भी खुलती थी।

सड़कों व बांधों पर सिसक रही ङ्क्षजदगी

गंगा के कटाव से विस्थापित दस हजार से अधिक परिवारों की ङ्क्षजदगी अभी भी बांधों व सड़कों के किनारे कट रही है। कल के जमींदार आज मजदूरी कर पेट पाल रहे हैं। आलीशान घर में रहने वाले लोग झुग्गी-झोपड़ी में समय बीता रहे हैं। पुनर्वास को लेकर सरकार के स्तर से घोषणाएं तो होती रही है, लेकिन इसका क्रियान्वयन जमीन स्तर पर अभी तक नहीं हो पाया है।


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