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याद है कजरौटे का काजल और हींग की पोटली बंधी डनाडोर, कहां गई नवरात्रि की अष्टमी और नवमी की ये परंपरा

दुर्गा पूजा की अष्टमी-नवमी को दादी और मां-मौसी बच्चों को बुरी नजर से बचाने के लिए सरसों तेल के दिये से कजरौटे में काजल तैयार करती थी। फिर अष्टमी नवमी पूजा को बच्चों और बड़ों को भी आंखों में काजल और कमर में हींग की पोटली बंधी डनाडोर बांधती थी।

By Kaushal Kishore MishraEdited By: Shivam BajpaiPublished: Sat, 01 Oct 2022 02:33 PM (IST)Updated: Sat, 01 Oct 2022 02:33 PM (IST)
याद है कजरौटे का काजल और हींग की पोटली बंधी डनाडोर, कहां गई नवरात्रि की अष्टमी और नवमी की ये परंपरा
दुर्गा पूजा की अष्टमी और नवमी को होता था ये विधान।

कौशल किशोर मिश्र, भागलपुर : शक्ति रूपा दुर्गा महारानी पूजनोत्सव की धूम के बीच बच्चों को बुरी नजर से बचाने की तैयारी भी दादी, मां और मौसी किया करती थीं। पुरातन समय से दुर्गा पूजा की अष्टमी और नवमी के बीच बच्चों को काले धागे से बने डनाडोर पहनाती। डनाडोर में हींग की छोटी पोटली भी बांधा करती थी। खुद शुद्ध सरसो तेल के बड़े दिये जला कजरौटे की ओट लगा काजल तैयार करती और उसे बच्चों के आंख, नाभी और ललाट पर लगाया करती थी। यह पुरातन परंपरा घर की बुजुर्ग महिला सदस्य से महिलाओं ने भी सीख दादी बन बच्चों और बड़ों को अष्टमी और नवमीं पूजा मौके पर उस परंपरा को कायम रखती आ रही थीं।

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लेकिन अब नए दौर में नई पीढ़ी की महिलाओं का इस पुरातन परंपरा को अपनी दूसरी पीढ़ी के लिए चलाने के प्रति ललक नहीं रही। नतीजा अब नए दौर में बच्चों को मालूम ही नहीं कि दादी, मां या मौसी बुरी नजरों या रोग से बचाए रखने के लिए अष्टमी और नवमी पूजा को ऐसा किया करती थीं। नई पीढ़ी के बच्चों खासकर शहरी आबादी में रहने वालों को डनाडोर, हींग क पोटली की जानकारी तक नहीं है। रंभा देवी, नीलम देवी, माला देवी आदि बताती हैं कि वर्षों से चली आ रही परंपरा को उन्होंने भी अपनी सास से सीखा और अपनी पीढ़ी में दुर्गा पूजा में बच्चों क्या बड़ों को भी बुरी नजर से बचाने के लिए उस परंपरा का निर्वहन करती आई।

संयुक्त परिवार के विघटन से वर्षों से चली आ रही इस परंपरा को नई पीढ़ी की महिलाएं भूल चुकी हैं। बहुएं उस पुरानी परंपरा से नाता ही नहीं रखना चाहती। नतीजा इस पुरातन परंपरा को नई पीढ़ी भूलने लगी हैं। एकल परिवार और शहरीकरण में दादी और मां-मौसी के उस स्नेह और उनकी सुरक्षा को लेकर चिंता से मुंह मोड़ लिया है। नीलम देवी कहती हैं कि बहुएं अब महानगरों में रहने लगी, पोता-पोती इंग्लिश मीडियम स्कूल में वहां पढ़ाई करने लगें। नीलम देवी बताती हैं कि हींग की पोटली डनाडोर में बांधने से बच्चों को वायरल फीवर समेत अन्य संक्रमण से बचाया जाता था। बच्चे दुर्गा पूजा में घरों से बाहर जब भीड़ का हिस्सा बने तो उन्हें संक्रामक बीमारी से बचाया जा सके।


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