सामाजिक क्रांति का अग्रदूत बना एक गांव, जन्मदिन हो या श्राद्ध यहां लगाए जाते पौधे
बिहार के खगडि़या में एक गांव है- कन्हौली। यहां के ग्रामीण प्लास्टिक व थर्मौकोल का प्रयोग नहीं करते। गांव के लोग विभिन्न अवसरों पर पौधा भी लगाते हैं।
खगड़िया [निर्भय]। बिहार में एक गांव सामाजिक क्रांति का अग्रदूत बन चुका है। जन्मदिन हो या श्राद्ध कर्म, शादी-व्याह हो या कोई और आयोजन, यहां कम से कम एक फलदार पौधा जरूर लगाया जाता है। इतना ही नहीं, यहां सामूहिक भोज में प्लास्टिक और थर्मोकोल के प्लेट, कप व ग्लास का बहिष्कार भी किया जा रहा है। इस गांव को आदर्श गांव मानते हुए बंगलुरु की ‘ऑर्ट ऑफ लिंविंग’ संस्था ने तीन सौ सोलर लाइट दिए हैं।
हम बात कर रहे हैं खगडिय़ा के सुदूर कोसी किनारे बसे कन्हौली गांव की। खगड़िया में कोसी किनारे बलतारा पंचायत के अंतर्गत स्थित इस गांव की आबादी एक हजार के आसपास है। मूलभूत सुविधाओं से दूर, वर्ष दर वर्ष बाढ़-कटाव का सामने करते हुए भी कन्हौली आज इतिहास रच रहा है।
कारवां बनता गया, लोग जुड़ते गए
साल भर पहले आर्ट आॅफ लिंविंग के प्रशिक्षक कन्हौली निवासी नागेंद्र सिंह त्यागी ने लोगों से जन्मभदिन, शादी, श्राद्ध भोज, पुण्यतिथि कार्यक्रम आदि किसी भी आयोजन में में प्लास्टिक और थर्मोकोल का उपयोग नहीं करने की सलाह देनी शुरू की। वे बताते हैं कि लोग नहीं मान रहे थे, लेकिन उन्हों ने हिम्मात नहीं हारी। इस काम में उन्हेंक अभय कुमार गुड्डू, कृष्णानंद यादव, युवाचार्या राजेश यादव आदि का भी सहयोग मिला। धीरे-धीरे कारवां बनता गया, लोग जुड़ते गए।
शुरू हुआ प्लास्टिक व थर्मोकोल का बहिष्कार
फिर तो लोगों ने प्लास्टिक और थर्मोकोल का बहिष्कार भी शुरू कर दिया। आज किसी भी उत्सव और भोज में इसका प्रयोग यहां नहीं होता है। इसके बदले यहां के लोग सखुआ के पत्ते व स्टील के ग्लास उपयोग में लाते हैं। आसपास के बाजार में दुकानदार अब सखुआ पत्ते के प्लेट रखने लगे हैं। गांव के लोगों ने आपसी सहयोग से पांच सौ स्टील भी ग्लास जमा किए हैं। किसी के यहां उत्सव होने पर ये ग्लास पहुंचा दिए जाते हैं। शर्त यह होती है कि संबंधित व्यक्ति इन ग्लास में पांच ग्लास और जोड़कर वापस करेगा।
विविध आयोजनों के अवसर पर करते पौधारोपण
आर्ट आॅफ लिंविंग के प्रशिक्षक नागेंद्र सिंह त्यागी कहते हैं कि अब यहां के लोग प्लास्टिक-थर्मोकोल का बहिष्कार करते हुए पर्यावरण सुरक्षा संकल्प के तहत विविध आयोजनों के अवसर पर पौधारोपण भी करते हैं। इसकी शुरुआत नीलेश यादव की दादी (भष्मा देवी) के श्राद्ध भोज से हुई। इस मौके पर एक दर्जन आम और अमरूद के पौधे लगाए गए। भष्मा देवी की प्रथम पुण्यतिथि के अवसर पर भी पौधारोपण किया गया। अब तो यह सिलसिला चल पड़ा है। निरंजन कुमार के विवाहोत्सव पर, राजेश यादव के भतीजे गोलू के जन्मदिन पर पौधे लगाए गए। गांव में सौ से अधिक पौधे लगाए जा चुके हैं।