सीमांचल के लिए अब गंगा बनेगी कोसी की पतवार, विकास की नैया को मिलेगी रफ्तार
जिले के मनिहारी व साहेबगंज के बीच छह अप्रैल 2017 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा गंगा पर 2266 करोड़ की लागत से बनने वाले पुल की आधारशिला सीमांचल व कोसी के विकास को नया फलक देने वाला है।
कटिहार [प्रकाश वत्स] : कटिहार जिले से गुजरी पावन गंगा अब कोसी व सीमांचल के लिए वरदान साबित होने जा रही है। जिले के मनिहारी व साहेबगंज के बीच छह अप्रैल 2017 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा गंगा पर 2266 करोड़ की लागत से बनने वाले पुल की आधारशिला सीमांचल व कोसी के विकास को नया फलक देने वाला है। इस पुल के साथ मनिहारी से पूर्णिया तक फोरलेन पथ निर्माण की हर आवश्यक प्रक्रिया भी लगभग पूरी हो चुकी है। अगस्त-2018 से इस पुल व पथ का निर्माण कार्य आरंभ होना है और चार साल छह माह बाद ही इस पुल का लोकार्पण होना है। निश्चित रुप से यह पुल सीमांचल व कोसी के सर्वांगीण विकास को अप्रत्याशित रफ्तार देने वाली है। इस पुल के निर्माण से नेपाल व बांग्लादेश की सरहद से लगे इस इलाके का सीधा जुड़ाव झारखंड से हो जाएगा। ऐसे में खनिज सम्पदा से परिपूर्ण झारखंड से समीपता से इस क्षेत्र को विकास का नया फलक मिलेगा। आर्थिक ही नहीं इससे सांस्कृतिक विकास को भी गति मिलेगी। या यूं कहें कटिहार कोसी व सीमांचल के लिए विकास का नया द्वार बन जाएगा। यही कारण है कि पुल के शिलान्यास के दिन झारखंड के साथ-साथ पूरे कटिहार में भी उत्सवी माहौल रहा था।
पनिया जहाज से पुल की नींव तक का सफर भी रहा सुहाना
दो अक्टूबर 1973 को जिला बना कटिहार पूर्व में पूर्णिया का ही महज एक अनुमंडल हुआ करता था। लगभग 45 साल का सफर पूरा कर चुका कटिहार उत्तरोत्तर विकास की ओर अग्रसर रहा है। यही नहीं कई मायनों में कटिहार सीमांचल व कोसी के विकास को रफ्तार देने में सहायक की भूमिका भी निभाया रहा है। मनिहारी व साहेबगंज के बीच स्टीमर के सहारे आवागमन की विवशता से शुरु हुआ यह सफर अब पुल के नींव तक पहुंच चुका है। बाढ़, कटाव सहित प्राकृतिक आपदाओं से लगातार जूझने के बावजूद विकास के मामले में कदम बढ़ते गए। निश्चित रुप से कटिहार में रेलमंडल की स्थापना ने इसको एक नई पहचान दी। रेल विकास का यह मुकाम कटिहार को कोसी व सीमांचल के लिए अहम बना दिया। फिर व्यवसायिक मामले में रेल के चलते आगे निकला कटिहार पूरे परिक्षेत्र का सिरमौर बनता चला गया। आज भी कपड़ा, सौंदर्य प्रसाधन व इलेक्ट्रानिक सामान के मामले में यह कोसी व सीमांचल के लिए थोक मंडी माना जाता है।
शिक्षा, स्वास्थ्य से लेकर सड़क परिवहन के मामले में उत्तरोत्तर विकास से जिले का चेहरा लगातार निखरता चला गया। टूटी मड़ैया में चलने वाली स्कूलों की जगह-जगह अब यहां इंजीयन¨रग कालेज, पोलटेकनिक कालेज, मेडिकल कालेज से लेकर तीन-तीन आइटीआई कालेज चल रहे हैं। तीन सौ बेड का अस्पताल यहां प्रस्तावित है, जिसके लिए जमीन की तलाश भी पूरी हो चुकी है। शहर से लेकर गांव तक का स्वरुप बदलता चला गया। कृषि विकास के मामले में भी इस जिले के मेहनतकश किसानों ने नया मुकाम हासिल किया। आज इस क्षेत्र को लोग केलांचल से लेकर मक्का उत्पादन के लिए जानते हैं। मखाना उत्पादन में भी इस जिले ने अपनी अलग पहचान बनाई है। खेल से लेकर कला व संगीत के मामले में भी इस जिले की अलग पहचान बनी। यहां के कई खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय फलक पर अपना झंडा फहराया। कला व संगीत के सहारे भी यहां के युवाओं ने जिले को नई पहचान दी।