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तंबू में कट रही ¨जदगी, पुनर्वास की आस में बीत गए बीस साल

महानंदा नदी के कटाव से विस्थापित परिवारों की ¨जदगी वर्षों बाद भी तंबू में कट रही है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 21 Jul 2018 03:35 PM (IST)Updated: Sat, 21 Jul 2018 04:18 PM (IST)
तंबू में कट रही ¨जदगी, पुनर्वास की आस में बीत गए बीस साल
तंबू में कट रही ¨जदगी, पुनर्वास की आस में बीत गए बीस साल

कटिहार (नीरज कुमार): गंगा व महानंदा नदी के कटाव से विस्थापित परिवारों की ¨जदगी वर्षों बाद भी तंबू में कट रही है। विस्थापित परिवारों को पुनर्वासित करने को लेकर स्पष्ट योजना तैयार नहीं होने के कारण विस्थापित परिवार खानाबदोश की ¨जदगी जी रहे हैं। नदियों के कोप का शिकार बने बांध व सड़क किनारे शरण लिए विस्थापितों को बांध व सड़क किनारे से अतिक्रमण हटाने के नाम पर कई बार कई बार उजाड़ा भी जाता है। विस्थापित परिवारों की संख्या 10 हजार है। यद्यपि सरकारी आंकड़ों में ऐसे परिवारों की संख्या 4500 ही है। मनिहारी, अमदाबाद एवं बरारी प्रखंड में पिछले तीन दशक में गंगा नदी के कटाव से तीन दर्जन से अधिक गांव नदी के गर्भ में समा चुका है। कदवा एवं प्राणपुर प्रखंड में महानंदा के कटाव सैकड़ों परिवार विस्थापित हो चुके हैं। दर्जनों विस्थापित परिवार वर्षों बाद भी पुनर्वास नहीं होने से पड़ोसी राज्य झारखंड एवं पश्चिम बंगाल जाकर बस चुके हैं। आर्थिक रूप से समृद्ध विस्थापित परिवारों में अधिकांश ने शहरों की ओर रूख किया। लेकिन खेती एवं मजदूरी कर अपना भरण पोषण करने वाले विस्थापित परिवार दो दशक से पुनर्वास की आस में बांध और सड़क किनारे अपने परिवार के साथ रहने को विवश हैं। मनिहारी एवं अमदाबाद प्रखंड में ऐसे परिवारों की संख्या सबसे अधिक है। बदहाली की ¨जदगी जी रहे विस्थापित परिवारों के बच्चे स्कूली शिक्षा से भी वंचित हैं। सरकारी योजना का लाभ तो दूर चिकित्सा, शिक्षा, आवागमन सहित अन्य मूलभूत सुविधा से भी विस्थापित परिवार वंचित हैं। पुनर्वास के लिए अब तक नहीं बन पायी स्पष्ट नीति

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विस्थापित परिवारों को पुनर्वासित करने को लेकर अब तक सरकारी स्तर से कोई स्पष्ट नीति तैयार नहीं किए जाने के कारण पुनर्वास की आस पूरी नहीं हो पायी है। विस्थापित परिवारों को पुनर्वासित करने के लिए वर्ष 1987-88 में जमीन अधिग्रहण किया गया था। लेकिन अधिग्रहित जमीन पर वर्तमान में कौन रह रहा है, इससे संबंधित कोई रिकार्ड जिला प्रशासन के पास नहीं है। पुनर्वास के लिए वर्ष 2003 के पूर्व विस्थापित परिवारों को ही इस श्रेणी में रखे जाने का निर्देश है। 2003 के बाद विस्थापित हुए परिवारों के लिए कोई स्पष्ट निर्देश नहीं दिया गया है। इस कारण पुनर्वास का मामला अटका पड़ा है। अभियान बसेरा के तहत इक्का दुक्का विस्थापितों को पुनर्वासित करने का काम जरूर किया गया है। झुरमुट के बीच झोपड़ी में बीत रही ¨जदगानी

बांध व सड़क किनारे तंबू व झोपड़ी में अपनी रात गुजारने वाले विस्थापित परिवार बदहाली और असुरक्षा के बीच अपना जीवन गुजर बसर रहे हैं। अमदाबाद प्रखंड के शंकर बांध, बरारी प्रखंड में गंगा दार्जि¨लग सड़क किनारे एवं मनिहारी प्रखंड में सड़क किनारे एवं सरकारी भवन के समीप झाड़ियों एवं झुरमुट के बीच इन परिवारों का आशियाना बना हुआ है। रात के समय सांप एवं विषैले कीड़े का डर इनको सताता रहता है। झोपड़ी में अपने पालतू मवेशी के साथ किसी तरह रात गुजारते हैं।

केस स्टडी एक

अमदाबाद प्रखंड के जामुनतल्ला गांव के खुशीलाल दास पिछले दस वर्षों से शंकर बांध पर अपने परिवार के साथ रह रहे हैं। गंगा नदी के कटाव ने उनका सबकुछ छीन लिया। पुनर्वास की आस में पिछले करीब एक दशक से इनकी आंखे पथरा गई है। खुशीलाल बताते हैं कि किसी तरह अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करते हैं। बांध पर रहने के कारण बच्चों की पढ़ाई भी बाधित है।

केस स्टडी दो

मनिहारी प्रखंड के गोलाघाट निवासी जयराम का घर एक दशक पूर्व गंगा नदी की गर्भ में समा गया है। कटाव में आशियाना छीनने के बाद परिवार के साथ सड़क किनारे अपना आशियाना बना रह रहे हैं। जयराम बताते हैं कि पुनर्वास के नाम पर अब तक महज आश्वासन ही मिला।

केस स्टडी तीन

बरारी प्रखंड के जरलाही गांव के संजीव मंडल पिछले डेढ़ दशक से गंगा दार्जि¨लग पथ के किनारे रह रहे हैं। अतिक्रमण हटाने के नाम पर कई बार उजाड़ा गया। मजबूरी में अन्य विस्थापित परिवारों के साथ वहीं आकर अपनी झोपड़ी बना लेते हैं। बिजली एवं पेयजल की सुविधा भी यहां रह रहे विस्थापित परिवारों को नहीं है।


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