बेहतर भंडारण के लिए तैयार किए जा रहे अनानास का टिशु कल्चर देश के इन राज्यों से मंगाए गए हैं जर्म प्लाज्म
डॉ. कलाम कृषि कॉलेज अर्राबाड़ी के प्राचार्य डॉ. विद्याभूषण झा बताते हैं कि गुजरात से मंगाए गए विदेशी प्रभेद का टिश्यू कल्चर विकसित कर प्रयोग किया गया है। इसके परिणाम उत्साहवद्र्धक
किशनगंज, जेएनएन। बिहार को अनानास उत्पादक राज्यों में शुमार करने वाले किशनगंज जिले में इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए कृषि वैज्ञानिकों की टीम शोध में जुटी है। गुजरात, केरला व देश के अन्य राज्यों समेत विदेश से मंगाए गए अनानास के एक दर्जन से अधिक जर्म प्लाज्म पर डॉ. कलाम कृषि कॉलेज किशगनंज में रिसर्च किया जा रहा है। बेहतर भंडारण क्षमता वाले प्रभेद का टिश्यू कल्चर विकसित करने के लिए ऐसा किया जा रहा है।
शुरुआती दौर में मिली सफलता से कृषि वैज्ञानिक उत्साहित हैं। डॉ. कलाम कृषि कॉलेज अर्राबाड़ी के प्राचार्य डॉ. विद्याभूषण झा बताते हैं कि गुजरात से मंगाए गए विदेशी प्रभेद का टिश्यू कल्चर विकसित कर प्रयोग किया गया है। इसके परिणाम उत्साहवद्र्धक हैं। इस प्रभेद का दुनिया के बाजार में लगभग 70 फीसद कब्जा है। इसकी खासियत यह है कि यह न सिर्फ अंदर से ठोस बल्कि मीठा व वजन में भी अधिक होता है। भंडारण क्षमता अधिक होने से किसानों को डेढ़ गुना फायदा मिलता है। स्थानीय स्तर पर जिस प्रभेद की खेती की जा रही है उसकी भंडारण क्षमता कम होती है। अधिक अम्लीय होने के कारण इसमें खट्टापन भी अधिक होता है। इस कारण किसानों को लाभ के अनुरूप मुनाफा नहीं मिल पा रहा है। किशनगंज जिले में फिलहाल लगभग नौ हजार हेक्टेयर में अनानास की खेती हो रही है। राष्ट्रीय कृषि विकास मिशन के तहत इसके लिए 1.80 करोड़ का फंड भी आवंटित किया गया है।
एमडी टू प्रभेद का तैयार किया गया टिश्यु कल्चर
खाने के लिहाज से बेहतर माना जाने वाला एमडी टू प्रभेद का टिश्यु कल्चर विकसित किया गया है। इसमें मीठापन अधिक होता है और कठोर माना जाता है। टिश्यु कल्चर पौधे में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक होता है। दूसरा सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इसके फल एकसाथ ही तैयार हो जाएंगे और एक जैसे ही लंबे होंगे। एक साथ फल तैयार होने से किसानों को मेहनत व मजदूरी कम लगेगा। शोध में जुटे डॉ. शमीम व डॉ. डीपी साहा के अनुसार लोकल में बड़े पैमाने पर ज्वाइंट क्यू व क्वीन प्रभेद की खेती की जा रही है। इसके फल का आकार भी अपेक्षाकृत छोटा होता है और रसदार होने के कारण भंडारण क्षमता कम है। जिस कारण किसानों को लाभ कम मिल पाता है।