Move to Jagran APP

ये हौसलों की उड़ान है: एक पैर से घर से स्कूल तक की दूरी नापती है बिहार की सीमा, बनना चाहती है टीचर

ये हौसलों की उड़ान है... बिहार के जमुई जिले के एक छोटे से गांव की बच्ची सीमा टीचर बनने की चाहत रखती है। आगे बढ़ना चाहती है-पढ़ना चाहती है। इसके लिए वो अपने सारे जख्मों को भुला चुकी है।

By Shivam BajpaiEdited By: Published: Wed, 25 May 2022 11:27 AM (IST)Updated: Wed, 25 May 2022 03:50 PM (IST)
जमुई जिले की बच्ची सीमा एक पैर पर स्कूल जाती हुई।

जागरण टीम, जमुई: 'मैं पढ़ना चाहती हूं। आगे बढ़ना चाहती हूं। टीचर बनना चाहती हूं। सबको पढ़ाना चाहती हूं। पापा बाहर काम करते हैं, मम्मी ईंट भट्टे में काम करती हैं। हां, ईंट पारती हैं। दोनों पढ़े लिखे तो नहीं हैं लेकिन...' अपनी जुबान में चौथी क्लास में पढ़ने वाली दिव्यांग छात्रा सीमा कुछ यही कहती है। सीमा, आज सीमा का जिक्र इसलिए हो रहा है क्योंकि इस लड़की के हौसले बेहद मजबूत हैं। एक पैर को पूरी तरह खो चुकी सीमा घर से स्कूल तक की दूरी उछल-उछलकर तय कर लेती है। रोज नहाना, तैयार होना और फिर स्कूल ड्रेस और बैग के साथ पगडंडियों से होते हुए स्कूल तक पहुंचना। ये सीमा की पहचान है। हर कोई सीमा को देखता है और कहता है, 'बिटिया कहां?', बिटिया तपाक से उत्तर देती है, 'स्कूल'।

loksabha election banner

जमुई जिले के खैरा प्रखंड के फतेहपुर गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली दिव्यांग छात्रा सीमा आज मिसाल बन चुकी है। पढ़ लिखकर काबिल टीचर बनने की चाह रखने वाली सीमा महादलित समुदाय से आती है। माता-पिता मजदूरी करते हैं। पिता खीरन मांझी बाहर दूसरे प्रदेश में मजदूरी करते है। पांच भाई-बहन हैं। लेकिन सीमा अभी तक किसी पर बोझ नहीं बनी। पढ़ने और कुछ करने का जूनून ऐसा है कि सिर्फ एक पैर होने के बावजूद बुलंद हौसले के साथ बच्ची (सीमा) हर दिन 500 मीटर पगडंडियों पर चलकर स्कूल आती-जाती है। शारिरिक लाचारी को भुलाकर, वो स्कूल में तनमयता के साथ पढ़ती है।

सड़क हादसे में गंवा दिया था पैर

दो साल पहले एक ट्रैक्टर की चपेट में आई सीमा गंभीर रूप से घायल हो गई थी। इलाज के दौरान डाक्टरों ने सीमा की जान बचाने के लिए उसके एक पैर काटकर अलग कर दिया था। दस साल की बच्ची की जान तो बच गई लेकिन वो एक पैर से दिव्यांग हो गई। अब अपने निरक्षर माता-पिता की बेटी अपने संपनों के पंखों के बलबूते उड़ान भरती हुई दिखाई देती है। सीमा घंटों अपने एक पैर पर खड़े होकर घर का काम भी कर लेती है और स्कूल भी जाती है। सीमा कहती है, 'अब तो इसकी आदत हो गई है।' 

सीमा की मां बेबी देवी बताती है, 'हम लोग काफी गरीब हैं। गांव के बच्चों को स्कूल जाता देख सीमा भी जिद करती थी, जिस कारण स्कूल में नाम लिखवाना पड़ा। हमलोगों के पास इतने पैसे भी नहीं होते कि बच्ची को किताब-कॉपी खरीद कर दे सकें, ये सब भी स्कूल के शिक्षक ही मुहैया करवाते हैं। मुझे मेरी बेटी पर गर्व है। बच्ची पढ़ लिखकर नाम रौशन करेगी, ऐसा विश्वास भी है।' सीमा के स्कूल के शिक्षक भी उसके हौसले की तारीफ करते हुए बताते हैं कि सीमा पढ़ने में तेज है। दिया हुआ होमवर्क भी समय से कर के लाती है। 

बिहार में पढ़ने और आगे बढ़ने की चाह लिए नौनिहालों की कई तस्वीर सामने आती रहती हैं। हाल ही में नालंदा के होनहार सोनू ने सुर्खियां बटोरी। होनहार बच्चे की मदद के लिए नेता-अभिनेता से लेकर कई कार्यकर्ता भी सामने आए। अब ऐसे में जमुई के एक छोटे से गांव की सीमा की मदद भी होती है तो उसके पंखों को मजबूती जरूर मिलेगी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.