यह शहर स्मार्ट नहीं... अतिक्रमण स्मार्ट कहिए Bhagalpur News
शहरी क्षेत्र को अतिक्रमण से मुक्त कराने में प्रशासन आगे क्यों नहीं आता है? क्या शहर को अतिक्रमण से मुक्त कराना उनके बूते से बाहर की बात हो गई है
भागलपुर [संजय]। .. दुर्भाग्य देखिये। अतिक्रमण होना कोई मुद्दा नहीं है, लेकिन अतिक्रमण हटाना आज शहर का सबसे बड़ा मुद्दा है। सुंदर शहर की सूरत को अतिक्रमण ने बिगाड़ कर रख दिया है। शहर में अतिक्रमणकारियों के बढ़ते दबदबा को कम करने की दिशा में प्रशासन की उदासीनता भारी साबित हो रही है। अब इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है। आम लोगों को सड़क जाम से निजात दिलाने की दिशा में यातायात पुलिस और नगर निगम के पदाधिकारियों का आश्वासन अब खलने लगा है।
शहरी क्षेत्र को अतिक्रमण से मुक्त कराने में प्रशासन आगे क्यों नहीं आता है? क्या शहर को अतिक्रमण से मुक्त कराना उनके बूते से बाहर की बात हो गई है या फिर अतिक्रमणकारियों के समक्ष सिस्टम लाचार हो चुका है? ऐसे कई सवाल उठने लगे हैं। लाजिमी है, क्योंकि कार्रवाई के अगले दिन ही सड़कों पर दुकानें सजने लगती हैं। उनकी तो जेबें गरम होती हैं पर आम इंसान की जेबें खाली हो रही हैं। घंटों जाम में फंसने से उनकी गाढ़ी कमाई धुएं में उड़ रही है। कलक्टर साहब के दफ्तर के निकट फुटपाथ पर दुकानें सजीं हैं। हाईकोर्ट ने चाबुक चलाई तो शहर में अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया गया। निर्देश के बाद पूरे शहर से आनन-फानन सड़क किनारे फुटपाथी दुकानदारों का हटाया गया। इसके दूसरे ही दिन इसी सड़क किनारे हटाए गए कुछ फुटपाथियों ने फिर अपना कब्जा जमा लिया। स्वाभाविक है जिला प्रशासन की उदासीनता के कारण ही शहर में अतिक्रमणकारियों का मनोबल बढ़ा है।
जलवा तो साहब का...
स्टेशन पर तो एक ही साहब का ही जलवा है। साहब के कमरे में एसी, सोफा और कुर्सियां लगी है। बाकी स्टेशन के कक्ष में आदम जमाने के पंखे लगे हैं। कर्मचारी भी अपना कमरा छोड़ साहब के कमरे में किसी न किसी बहाने पहुंच जाते हैं। साहब को लगता है कि कर्मचारी उनसे जानकारी शेयर करने आते हैं पर हकीकत कुछ और ही है। स्टेशन की जानकारी देना तो बहाना है बस साहब के कमरे में बैठकर कुछ देर तक ठंडी हवा का आनंद लेना है। इधर, साहब समझ रहे हैं उनके कर्मचारी उनके भक्त है। पर साहब को क्या पता सारी माया उनके चैंबर की है।
अंत में..
यह शहर भी कभी तालाबों का शहर कहा जाता था। आज कइयों का अस्तित्व मिटा चुका है तो कई मिटने के कगार पर हैं। जलाशयों पर अतिक्रमण को लेकर शिकायतों की भरमार है। प्रशासन की लाचारी भी जग जाहिर है। यही कारण है कि आज भू-जलस्तर गिर गया है। लबालब पानी से भरे रहने वाले भैरवा तालाब को ही ले लीजिए। वह अपनी धार्मिक मान्यताएं खो चुका है। आधे तालाब पर कब्जा हो चुका और बाकी में इलाके के लोग हथियाने में लगे हुए हैं।