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सिल्क सिटी में साइबर शातिर खेल रहे पुलिस से आंखमिचौनी

भागलपुर में साइबर अपराध बढ़ा जा रहा है। लोग इससे ठगी के शिकार हो रहे हैं। अगर आप सावधानी नहीं बरतेंगे तो आपको भारी नुकसान होगा। जानिए

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Fri, 05 Jun 2020 10:49 AM (IST)Updated: Fri, 05 Jun 2020 10:49 AM (IST)
सिल्क सिटी में साइबर शातिर खेल रहे पुलिस से आंखमिचौनी
सिल्क सिटी में साइबर शातिर खेल रहे पुलिस से आंखमिचौनी

भागलपुर [कौशल किशोर मिश्र]। साइबर ठगी में कुख्यात जामताड़ा माडल के शातिर अब सिल्क सिटी को भी अपने आगोश में लेने को आतुर हैं। हालांकि यहां एसएसपी आशीष भारती के निर्देश पर साइबर सेल ऐसे गिरोह को दबोचने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है। बावजूद इसके साइबर शातिर किसी न किसी को शिकार बना पुलिस से आंखमिचौनी का खेल खेल रहे हैं। सिल्क सिटी में भोले-भाले लोगों को ठगने का तरीका भी लगातार बदल रहे हैं नतीजा रोज कोई न कोई इन शातिर दिमाग साइबर ठगों का शिकार बन रहा है।

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अब खरीदार बन कर लगा रहे भोले-भाले लोगों को चूना

अबतक ये ठग कभी बैंक का अधिकारी बता ठग रहे थे। अब क्रेता-विक्रेता बता लोगों के बैंक अकाउंट ही साफ कर दे रहे हैं। जरायम पेशेवरों ने इन दिनों ठगी का नया नायाब तरीका अपनाते हुए क्यूआर कोड को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके जरिए जालसाज ग्राहकों को आसानी से फांस रहे हैं। उन्हें विक्रेता बनकर भुगतान के लिए क्यूआर कोड भेजकर स्कैन करने को कहते हैं। क्यूआर कोड स्कैन करते ही खाते में मौजूद रकम साइबर शातिर के खाते में झटके में पहुंच जा रही है। ऐसे में यदि कोई व्यक्ति आपको क्यूआर कोड भेजकर उसे स्कैन करने को कहे तो आपको सावधान हो जाने की जरूरत है। क्योंकि क्यूआर कोड रकम के भुगतान में ही सिर्फ इस्तेमाल होता है, रकम प्राप्त करने के लिए नहीं। घर में पुराने फ्रिज, कूलर, सोफा, बेड आदि बेचने के लिए कई साइट और एप का इस्तेमाल करते हैं। इसके जरिए खरीदार लोगों से संपर्क साधते हुए सामान की कीमत तय करते हैं। ज्यों ही विक्रेता से रिस्पांस मिलने लगता है, साइबर शातिर सक्रिय हो जाते हैं। अग्रिम राशि के रूप में कुछ रुपये भी विक्रेता को चारे के रूप में भेज देते हैं। इसके बाद सामान खरीदने के लिए बची हुई रकम को देने का असली खेल शुरू होता है। यही वह समय है जब साइबर शातिर झटके में विक्रेता के खाते की सारी रकम अपने खाते में स्थानांतरित कर लेता है। यह सब झटके में हो जाता है। विक्रेता ने क्यूआर कोड को स्कैन किया नहीं कि पल में विक्रेता लुट जाता है।

क्यूआर कोड स्कैन किया नहीं कि खाते में जमा पूंजी गायब

रकम के ट्रांजक्शन करने के लिए खरीदार की तरफ से एक क्यूआर कोड जेनरेट कर भेजा जाता है। विक्रेता को महसूस होता है कि उस कोड के जरिए उसे आसानी से रकम मिल जाएगी। इसलिए वह खरीदार के झांसे में आकर क्यूआर कोड अपने मोबाइल पर। गूगल पर या यूपीआई पर स्कैन करता है, उसके खाते में रकम आने के बजाय झटके में पहले से मौजूद रकम भी शातिर झाड़ लेते हैं।

जागरण सुझाव और बचाव के तरीके

क्यूआर कोड केवल रकम के भुगतान में इस्तेमाल होता है। इस कोड की स्कैनिंग से लोगों को बचना चाहिए। इसके लिए आसान उपाय है कि संदिग्ध पते से आई ई-मेल, व्हाट्स एप मेसेज, टेक्स्ट मेसेज का जवाब ही नहीं दें। सोशल मीडिया पर दोस्तों से मिले लिंक पर क्लिक करने से पहले पड़ताल कर लें। अनजान स्त्रोतों से मिले कोई भी लिंक को स्वीकार ना करें ना ही क्यूआर कोड को स्कैन ही करें। साइबर कैफे में इंटरनेट बैंकिंग का प्रयोग कतई ना करें। गूगल पर हेल्पलाइन नंबर कभी सर्च ना करें। अपडेटेड वर्जन के साफ्टवेयर का इस्तेमाल करें पायरेटेड नहीं। वेबसाइट पर लॉगआन करते हैं तो लॉगआउट करना नहीं भूलें।

इनको भी बनाया शिकार

जीरोमाइल निवासी व्यवसायी भवेश कुमार के मोबाइल पर सिलीगुड़ी से काल आया कि उसे मसाला खरीदना है। फिर उसने क्यूआर कोड भेजा। फोन पर यह भी बताया गया था कि कोड रिसीव करते ही रकम आ जाएगा। भवेश ने जैसे ही उसे ओपन किया उसके खाते से क्रमश: 10-10 हजार रुपये कट गए। कजरैली निवासी हिमांशु शेखर के मोबाइल पर भी कोलकाता का आम कारोबारी बता फोन आया। उसे भी क्यूआर कोड भेजा गया। बताया गया कि रिसीव करते ही रकम मिल जाएगी। लेकिन ओपन करते ही रकम आने के बजाय तत्काल उसके खाते से भी 10-10 हजार रुपये कट गए।


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