पांच वृक्षों को हर दिन नई जिंदगी देगा गोइठा, जानिए... क्या है पर्यावरण संरक्षण नई योजना Bhagalpur News
हिंदू रीति-रिवाज में दाह-संस्कार के लिए अमूमन आम की लकड़ी का ही ज्यादा प्रयोग होता है। भागलपुर के बरारी घाट पर हर दिन 15-20 शव लाए जाते हैं।
भागलपुर [अमरेंद्र कुमार तिवारी]। गाय के गोबर से बने गोइठा (जैविक ईंधन) से हर दिन औसतन पांच पेड़ बचाए जाएंगे। फिलहाल इसकी शुरुआत भागलपुर से होगी और प्रयोग सफल रहा तो आसपास के इलाकों में भी पहल की जाएगी।
शवों के दाह-संस्कार के लिए बड़ी मात्रा में लकड़ी की जरूरत पड़ती है, जिसके लिए पेड़ काटे जाते हैं। एक शव को जलाने में तीन-चार क्विंटल लकड़ी की खपत हो जाती है। अब गोइठे को इसका विकल्प बनाने की पहल की जा रही है। यह प्रयोग नागपुर में हो चुका है। अब भागलपुर की गोशाला समिति ने इस दिशा में कदम बढ़ाए हैं।
तीन शव जलाने में कट जाता है एक वृक्ष
हिंदू रीति-रिवाज में दाह-संस्कार के लिए अमूमन आम की लकड़ी का ही ज्यादा प्रयोग होता है। भागलपुर के बरारी घाट पर हर दिन 15-20 शव लाए जाते हैं। तीन शवों को जलाने में औसतन एक पेड़ कट जाता है। यानी, हर दिन करीब पांच वृक्षों की कटाई। गोइठे से दाह-संस्कार की परंपरा शुरू हो गई तो हर दिन सिर्फ एक घाट पर इतने पेड़ बच जाएंगे और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में यह बहुत बड़ा कदम होगा।
पटियाला से लाई जाएगी मशीन
श्रीगोशाला के महामंत्री गिरधारी केजरीवाल ने बताया कि गोइठा से दाह-संस्कार पर्यावरण के लिहाज से भी बेहतर विकल्प है। धार्मिक नजरिए से भी पवित्र है। श्री गोशाला समिति ने इस महत्वाकांक्षी योजना को स्वीकृति प्रदान कर दी है। गोइठा बनाने के लिए पंजाब के पटियाला से मशीन लाई जाएगी। दिसंबर से इसका उत्पादन शुरू हो जाएगी। उन्होंने कहा कि सुनील जैन के साथ पटियाला जाकर मशीन देख आए हैं। यह योजना जल्दी ही कार्यान्वित की जाएगी।
आर्थिक नजरिए से भी फायदेमंद
यह प्रयोग न सिर्फ पर्यावरण, बल्कि आर्थिक नजरिए से भी फायदेमंद होगा। एक तो गोबर के व्यावसायिक उपयोग को बल मिलेगा, दूसरा रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। शहरों में डेयरी व्यवसाय से जुड़े लोग भी गोशाला की सफाई में गोबर को जैसे-तैसे नालों में बहा देते हैं। इससे गंदगी फैलती है। वह गोबर अब गोइठा बनाने के काम आएगा और इसके एवज में पैसे भी मिलेंगे।
अभी प्रतिदिन 165 क्विंटल गोबर
गिरधारी केजरीवाल ने बताया कि एक गाय प्रतिदिन दस से बारह किलो गोबर देती है। अभी गोशाला में 160 गायें हैं। इस हिसाब से प्रतिदिन 165 क्विंटल गोबर प्राप्त हो रहा है। शहर में औसतन 10 गायों वाले करीब 150 डेयरी फार्म भी संचालित हैं। यहां से भी गोबर ले सकते हैं। इस गोबर के 60 फीसद हिस्से से 99 क्विंटल गोइठा तैयार किया जा सकता है।
कैसा होगा गोइठे का स्वरूप
गोशाला में तैयार गोइठे का स्वरूप लकड़ी की ही तरह होगा। एक गोइठा चार किलो का होगा। इसकी लंबाई ढाई फीट और मोटाई चार इंच होगी। इसे बनाने में छह किलोग्राम गोबर की जरूरत होगी। गोइठे के बीच में एक बड़ा छेद होगा, ताकि वह पर्याप्त ऑक्सीजन प्राप्त कर जल्दी से जल उठे। एक शव को जलाने में चार-पांच क्विंटल लकड़ी की खपत हो जाती है। इसमें करीब चार घंटे का वक्त लगता है। गोइठा का इस्तेमाल करने पर करीब चार क्विंटल की खपत होगी। शव भी डेढ़ से दो घंटे में जल जाएगा। इससे पैसे की भी बचत होगी।
गोराडीह और शाहकुंड गोशाला में भी गो पालन
इस योजना को विस्तार देने के लिए गोशालाएं भी बढ़ाई जाएंगी। गोराडीह प्रखंड के मोहनपुर, नाथनगर के टिकोरी और शाहकुंड की खेरही गोशाला में भी गो पालन की योजना है। अभी टिकोरी गोशाला में 60 गायें हैं। समिति के महामंत्री ने कहा कि शव जलाने के लिए गोइठे की मांग बढऩे पर शहर की डेयरी से भी गोबर की खरीदारी की जाएगी।
क्यों बेहतर विकल्प है गोबर से बना गोइठा
गोबर से बने गोइठे के बेहतर विकल्प होने के वैज्ञानिक कारण भी हैं। राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के वानिकी वैज्ञानिक डॉ. रमेश झा ने फोन पर बताया कि एक आम के पेड़ में औसतन 15 क्विंटल लकडिय़ां होती हैं। इससे अधिकतम तीन शव जलाए जा सकते हैं। एक किलो लकड़ी के जलने पर वायुमंडल में 1.9 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड घुलता है। इसके अलावा कार्बन मोनो डाइऑक्साइड भी बनता है, जबकि एक पेड़ प्रतिदिन 230 लीटर ऑक्सीजन छोड़ता है। एक वृक्ष पर्यावरण संतुलन में बहुत मददगार है। अगर गोइठे को विकल्प के तौर पर स्वीकार किया जाता है, तो यह अच्छी पहल होगी।