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बिहार में कोसी हर साल बदल देती है भूगोल- कभी 150 बीघा जमीन के मालिक थे महेश, आज दो गज के लिए मोहताज

बिहार में कोसी नदी का कहर हर साल बरपता है। ये नदी बिहार के कई जिलों का भूगोल बदल देती है। खगड़िया इस मामले में शायद पहले नंबर पर आता हैं क्योंकि यहां कई ऐसे लोग हैं जिनके पास कभी सैंकड़ों बीघा जमीन हुआ करती थी लेकिन आज...

By Shivam BajpaiEdited By: Published: Wed, 04 Aug 2021 05:23 PM (IST)Updated: Wed, 04 Aug 2021 05:23 PM (IST)
बिहार में कोसी हर साल बदल देती है भूगोल- कभी 150 बीघा जमीन के मालिक थे महेश, आज दो गज के लिए मोहताज
बिहार में कोसी हर साल बरपाती है, कई एकड़े जमीन नदी में समा जाती है।

भवेश, संवाद सूत्र, बेलदौर (खगड़िया)। बिहार में कोसी का कहर हर साल कहर बरपाता है। वहीं, खगड़िया बिहार का एक ऐसा जिला है, जहां कई गांवों का भूगोल बदलता रहता है। नदियां इनके लिए वरदान नहीं, अभिशाप हैं। आषाढ़ से लेकर सावन-भादो, तीन माह कोसी-बागमती किनारे बसे कई गांवों के लोग उजड़ने-उपटने का इंतजार करते रहते हैं। उफनती नदियां अपने गर्भ में न सिर्फ उपजाऊ खेत-खलिहान को समा लेती हैं, बल्कि घर आंगन को भी उदरस्थ कर लेती है।

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चारों ओर से नदियों से घिरे खगड़िया के तेरासी, आनंदी सिंह बासा, इतमादी-गांधीनगर, ब्राह्मण टोला पचाठ, मुनी टोला पचाठ, बलैठा, डुमरी, कई ऐसे गांव हैं, जिसका भूगोल पांच से सात बार बदल चुका है। अभी भी विराम नहीं लगा है। डुमरी के महेश सिंह कभी 150 बीघा जमीन के मालिक थे। कोसी ने खेती की जमीन काटते-काटते घर को भी अपने गर्भ में समा लिया, अब वे भूमिहीन हैं। पांच बार उपट चुके है। डुमरी गाइड बांध पर झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। ये उदाहरण मात्र हैं।

ऐसे कई महेश सिंह हैं। कोसी कटाव से विस्थापित परिवार कहीं गाइड बांध, कहीं भू-स्वामियों से लीज पर जमीन लेकर झुग्गी-झोपडिय़ों में जीवन गुजर-बसर कर रहे हैं। अभी इतमादी के गांधीनगर के पास कोसी उफान पर है। बीते दिनों यहां गांव को बचाने के लिए बाढ़ नियंत्रण प्रमंडल-दो, खगड़िया की ओर से फ्लड फाइटिंग कार्य कराया गया, लेकिन कोसी बुधवार से फिर तबाही मचाने पर आतुर है।

एक नहीं कई मामले

इतमादी पंचायत की गांधीनगर का कोसी अब तक पांच बार भूगोल बदल चुकी है। छठी बार गांव के ऊपर कटाव का खतरा मंडरा रहा है। एक वर्ष पूर्व यहां के नेपल पासवान का घर और बिहार सरकार की ओर से मिले पर्चा की एक एकड़ जमीन कोसी के गर्भ में समा गया। बेघर होने बाद नेपल पासवान परिवार के साथ गांव में बने अर्ध निर्मित सामुदायिक भवन में किसी तरह से दिन काट रहे हैं। उनके दो संतान एक बेटा और एक बेटी है। दोनों दिव्यांग हैं। नेपल कहते हैं- निर्दयी कोसी ने कहीं का न रहने दिया। चास-बास सब उदरस्थ कर लिया। अभी तक मुआवजा नहीं मिला है।

विलास पासवान भी हो गए भूमिहीन

गांधीनगर के ही हैं विलास पासवान। 15 दिनों पहले उनका घर समेत दो बीघा उपजाऊ जमीन कोसी की गर्भ में समा गया। आज वे भूमिहीन हैं। गांव में ही बने अर्ध निर्मित चबूतरा पर परिवार समेत शरण लिए हुए हैं। कहते हैं- क्या करें, कहां जाएं, समझ में नहीं आता।

'बेलदौर में कोसी कटाव से विस्थापितों की संख्या अच्छी-खासी है। अभी बाढ़ का सीजन है। बाढ़ का सीजन बीतने बाद विस्थापितों के पुनर्वास को लेकर कार्य किया जाएगा।'- सुबोध कुमार, सीओ, बेलदौर, खगड़िया।


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