कहां गुम हो गई चंपा : हर तरफ पसरा रहा मौन, मिटती रही चंपा, सिस्टम ने कुरेदा किसानों का जख्म
सरकारी सिस्टम की आड़ में कुछ लोगों ने नदी का सीना चीर कर किसानों को कभी न भरने वाला जख्म दे दिया है। किसान रोते हुए कहते हैं बाबू अब इस चंपा की क्या बात करना।
भागलपुर [जेएनएन]। चंपा नदी का अस्तित्व मिटता चला गया और सबके सब मौन रहे। चंपा के साथ हुए गुनाह का एक बड़ा कारण यह भी रहा। जिन पर इसकी जवाबदेही थी, उन्होंने कभी इसकी खबर ही नहीं ली, अन्यथा इस तरीके से किसी नदी को लील लेने की कोशिश नहीं हो सकती थी। प्रशासनिक तंत्र की कभी नजर ही नहीं पड़ी। चाहे जिला प्रशासन हो या नगर निगम प्रशासन, पिछले दस वर्षों में इस पर थोड़ा भी ध्यान दिया जाता तो इस नदी की यह दुर्गति नहीं हुई होती। गांव-कस्बे से लेकर शहर तक के लोगों का आक्रोश यही बता रहा है।
नदी में अवैध खनन होता रहा, पर इसे रोकने को कोई ठोस कार्रवाई नहीं किए जाने का ही नतीजा रहा कि नदी का मुहाना ही बंद हो गया। यह दायित्व खनन पदाधिकारियों का था, पर खनन होता रहा। यदि विभाग सजग रहता तो अंधरी के पास बांध नहीं कटा होता। अवैध खनन करने वाले सक्रिय नहीं होते। जिला के खनिज पदाधिकारी प्रणव कुमार प्रभाकर कहते हैं, हमने सभी इलाकों को देखा है। नदी में गड्ढा और बांध पहले ही कट चुका है। यह सब हमारे कार्यकाल में नहीं हुआ है। विभागीय मुकदमा करने के सवाल पर वे चुप्पी साध लेते हैं। यह मौन क्यों?
नगर निगम प्रशासन का दायित्व था कि वह नदी किनारे कूड़ा फेंकने पर रोक लगाए, लेकिन मानों इसकी छूट दे दी गई। नदी भरती चली गई, कल उस पर भवन निर्माण भी हो जाएगी और एक नदी इतिहास के पन्ने में दर्ज हो जाएगी। इस पर रोक लगाई गई होती तो पिछले दस साल में नदी में करीब 10 लाख मीट्रिक टन कूड़ा नहीं फेंका गया होता। आश्चर्य यह कि सिलसिला अभी भी जारी है। अभी भी कड़े कदम उठा लिए जाएं तो चंपा नदी बचाई जा सकती है। इसे नया जीवन मिल सकता है।
उप नगर आयुक्त सत्येंद्र वर्मा ने कहा कि चंपा नदी के आसपास कहीं भी कूड़ा नहीं फेंका जाएगा। शहर का पूरा कूड़ा कनकैथी डंपिंग ग्र्राउंड पर ही गिराया जाएगा। चंपा के आसपास कूड़ा गिराने वालों पर कार्रवाई की जाएगी। जिला खनिज पदाधिकारी प्रवण कुमार प्रभाकर ने कहा कि अवैध खनन पर रोक के लिए टीम बनाई गई है। प्रयास हो रहा है कहीं पर अवैध खनन न हो।
सिस्टम ने कुरेदा किसानों का जख्म
सरकारी सिस्टम की आड़ में कुछ लोगों ने नदी का सीना चीर कर किसानों को कभी न भरने वाला जख्म दे दिया है। हाजीपुर पंचायत के कमलपुर गांव के गणपत मंडल कहते हैं, बाबू अब इस चंपा की क्या बात करना। 50 वर्ष पहले इसमें अठखेलियां करते थे। अब इसे तिल-तिल मरते देख रहे हैं। किसी ने इसे बचाने की कोशिश नहीं की। सभी ने इसे खोद-खोदकर बेच दिया। जब भागलपुर के डीडीसी अमित कुमार थे। किसानों का एक प्रतिनिधिमंडल उनसे मिलकर नदी को बचाने की मनुहार की थी। वे आए भी थे। हमलोगों के साथ सिमटती नदी को देखने गए थे। आश्वासन भी दिया था कि जल्द ही नदी में फिर पानी आएगा। न पानी आए न उनके बाद कोई अन्य अधिकारी। गांव के ही वृद्ध नरेश मंडल कहते हैं अब गर्मी का मौसम आते ही पानी के लिए मारामारी शुरू हो जाती है। चंपा पहले पवित्र नदी थी, अब तो उसके नजदीक से गुजरने पर नाक-मुंह सिकोड़ लेते हैं। कभी इस इलाके के किसान सोना उपजाते थे। अब दो हजार सिचाई रकबा वाले गांव में खेती-किसानी संकट में है। नदी के जानकार वरीय अभियंता अरुण कुमार बताते हैं, चंपा नदी मरी नहीं है। बेतरतीब खुदाई ने उसे मृत जैसा कर दिया है। नदी को फिर से प्रतिष्ठित किया जा सकता है। पहले बढ़िया से सर्वे किया जाए। ताकि पता चले नदी के पानी को कैसे दूसरी नदी में मिलाया जाए। नदी हमेशा अपने रास्ते को बदलती रहती है लेकिन उसकी धाराएं जिंदा रहती हैं। चंपा के साथ भी कुछ ऐसा ही है। इस नदी की धारा को बदलना नहीं है बल्कि बंद धारा को फिर से चालू किया जाना है। नदी में डैम का निर्माण कर लिया जाए तो वर्ष भर पानी नदी में रखा जा सकता है।