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दस साल पहले बांका के जिस इलाके में जाने से डरते थे लोग, आज वहां हो रही नौकरी की बरसात, निकल रहे सरकारी कर्मचारी

बिहार के बांका जिले की ऐसी जगह जहां दस साल पहले लोग जाने में घबराते थे आज वहां से सरकारी नौकरी वाले युवा निकल रहे हैं। नौकरी की बारिश हो रही है। जहां आए दिन कत्लेआम होता था वहां के यूथ अब सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं।

By Shivam BajpaiEdited By: Published: Thu, 23 Jun 2022 05:29 PM (IST)Updated: Thu, 23 Jun 2022 05:29 PM (IST)
दस साल पहले बांका के जिस इलाके में जाने से डरते थे लोग, आज वहां हो रही नौकरी की बरसात, निकल रहे सरकारी कर्मचारी
बांका के बारा का मामला- नक्सल प्रभावित रहा है इलाका।

राहुल कुमार, बांका : बांका जिले के बेलहर प्रखंड के नक्सल प्रभावित बारा-पचगछिया गांव में कुछ साल पहले तक आसपास के लोग कदम रखने तक से डरते थे। 2006 में भी नक्सलियों ने वहां संवेदकों के आधा दर्जन ट्रैक्टर फूंक दिए थे। इसके पहले वहां एक दर्जन से अधिक लोगों की हत्याएं कर दी गई थीं। मगर पिछले एक दशक से उस गांव की तस्वीर बदल रही है। बारा में न सिर्फ नक्सलियों व अपराधियों के गठजोड़ पर रोक लगी है, बल्कि वहां के युवाओं ने सौ से अधिक सरकारी नौकरियां प्राप्त कर इस गांव को चर्चा में ला दिया है।

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डाक्टरों, इंजीनियरों, स्टेशन मास्टर, लोको पायलट आदि रेलकर्मियों, शिक्षकों आदि से भरा यह गांव आज नक्सल प्रभावित गांव की जगह नौकरियों वाले गांव के नाम से जाना जाता है। वहां की वैजयंती माला ने भी बीपीएससी में सफलता हासिल कर छात्राओं की प्रेरणास्रोत बन गई हैं।

वह अतिपिछड़ा आबादी वाला ऐसा इकलौता गांव बन गया है जहां के युवा दस साल के अंदर सौ से अधिक सरकारी नौकरियां पाने में सफल रहे हैं। देखते ही देखते वहां डाक्टर, इंजीनियर, शिक्षकों की भरमार हो गई है। रेलवे कर्मियों की भी वहां अच्छी तादाद है। वहां प्राथमिक से इंटर स्कूल के शिक्षकों की संख्या तीन दर्जन है। गांव में ज्ञान की जली मशाल अभी थमा नहीं है। इस गांव के करीब एक सौ छात्र बड़े शहरों में रह कर नौकरी पाने की तैयारी में जुटे हुए हैं। इस बदलाव ने इस गांव के सिर से नक्सली आतंक का कलंक धो डाला है। इलाके में अब यह गांव नौकरी वाले गांव के रूप में जाना जाने लगा है।

विभिन्न नौकरियां हासिल कर रहे युवा

ग्रामीण बताते हैं कि 2000 से 2006 तक गांव का माहौल काफी खराब रहा। नक्सली व आपराधिक घटनाओं से भयभीत लोगों ने बच्चों को गांव से बाहर रखना शुरू कर दिया। मेहनती बच्चों ने गांव की छवि बदलने की ठान ली और उनके नौकरी पेशा में जाने से देखते ही देखते बारा की तस्वीर बदलने लगी। वहां के हिमांशु शेखर सेल टैक्स अधिकारी हैं। अरुण कुमार डाक्टर हैं।

  • - अति पिछड़ी आबादी वाले गांव में एक दशक में सौ से अधिक युवाओं ने ली सरकारी नौकरी
  • - दशक भर पहले तक गांव में कदम रखने से डरते थे आसपास के लोग

संजय कुमार की आरपीएफ में तो राजीव कुमार लोको पायलट हैं। अरविंद कुमार, विवेक कुमार, गौरीशंकर मंडल, नरेश कुमार सहित कई युवा अभियंता बनकर इस गांव का नाम रोशन कर रहे हैं। वहां के शैलेश पंडित, रवि प्रकाश, किशोर कुमार डाक विभाग में सेवारत हैं। अनिमेष कुमार, सुधांशु कुमार, संजय सत्यव्रत, ईश्वरचंद्र विद्यासागर सहित कई अन्य विभिन्न पदों पर रेलवे में सेवा दे रहे हैं।

छात्रों को मिल रहा प्रोत्साहन

बारा के बदलाव में सीनियर छात्र जूनियर छात्रों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। उन्हें जाब एसोसिएशन के माध्यम मदद दिलाई जा रही है। हर साल समारोह आयोजित कर मैट्रिक व इंटर में बेहतर सफलता पाने वाले छात्रों को सम्मानित किया जाता है। अब अधिकांश बच्चों को अपने घर में ही मार्गदर्शक मिलने लगा है।

रेलवे में नौकरी कर रहे अनिमेष कुमार बताते हैं कि उन्होंने बांका में अनिमेष क्लासेस चलाकर गांव के सभी बच्चों को निशुल्क कोचिंग दिलाई। दूसरे विषयों की पढ़ाई में भी संबंधित शिक्षक से सहायता दिलाई।रेलवे में ही नौकरी कर रहे प्रदीप पंडित, विजय शास्त्री, संजय पंडित, पुरुषोत्तम आदि ने बताया कि अब पूरा गांव पढऩे में मगन है। आने वाले समय में गांव के बच्चे बेहतर सफलता अर्जित कर नई इबारत लिखने में कामयाब होंगे।

पिता संग दो बेटियों की निर्मम हत्या से दहला था गांव

यह वही गांव है जहां इस सदी के शुरुआती साल में वहां के मुखिया जयप्रकाश यादव की निर्मम हत्या कर दी गई थी। उसकी दो युवा बेटियों को भी मार डाला गया था। उससे पूर्व नहर में डूबोकर एक बच्चे की जान ले ली गई थी। इसके प्रतिशोध में गांव में एक युवक की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी। नक्सलियों व अपराधियों के आतंक का लोगों में इस कदर खौफ था कि इस गांव का नाम जुबान पर लाने तक से वे डरते थे।


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