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खुशियां बांटने वाला अद्भुत भिखारी, प्रेरणास्रोत हैं उनके स्‍वामी विवेकानंद

स्‍वामी विवेकानंद की जयंती जमुई में 36 वर्षीय सूर्या वत्स ने स्‍वामी विवेकानंद के जीवन से काफी प्रेरणा दी है। कोई भूखा ना रहे इसलिए उन्‍होंने नौकरी छोड़कर भीख मांगना शुरू कर दिया। भीख मांगकर भी दूसरों को कराते हैं भोजन दीनों के दर्द ने उन्‍हें दीनबंधु बना दिया।

By Dilip Kumar shuklaEdited By: Published: Tue, 12 Jan 2021 03:44 PM (IST)Updated: Tue, 12 Jan 2021 03:44 PM (IST)
जानिए... कौन है वह भिखारी, जो रोज बांटता है खुशियां।

जमुई [अरविंद कुमार सिंह]। रहीम कवि ने लिखा है कि दीन (गरीब) सबको देखता है, लेकिन दीन को कोई नहीं देखता। जो दीन को प्रेम से देखता है, वह दीनबंधु के समान हो जाता है। 12 वर्ष पूर्व कुछ ऐसा ही बदलाव बीमा कंपनी में एजेंसी मैनेजर के पद पर काम कर रहे सूर्या वत्स के जीवन में आया। गरीबों की सेवा को उन्होंने नौकरी छोड़ दी। जरूरतमंदों तक खाना व कपड़े पहुंचाने के लिए उन्होंने भीख मांगनी शुरू कर दी। सूर्या बताते हैं कि नरेंद्रनाथ दत्त मानवता की सेवा के लिए संन्यास लेकर स्वामी विवेकानंद बने। इसी कारण विवेकानंद उनके आदर्शों में एक हैं। उन्हीं से प्रेरणा लेकर उन्होंने भी जरूरतमंदों की सेवा करनी शुरू की।

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इनका रहन-सहन भी अजीब है। गांधी जी की तरह एक ही धोती पहनते और ओढ़ते हैं। पांव में चप्पल पहनते हैं। सूर्या घर-घर जाकर अनाज और वस्त्र आदि मांगकर इन्हें गरीबों/फुटपाथी लोगों को बांट देते हैं। उनके इस कार्य का दायरा जमुई जिले के अलावा झारखंड के देवघर तक में फैला है। 36 वर्षीय सूर्या वत्स 24 साल की उम्र में बिरला इंश्योरेंस, देवघर में एजेंसी मैनेजर के पद पर कार्यरत थे।

उन्होंने यहां से त्यागपत्र देकर समाजसेवा शुरू कर दी। सूर्या वत्स दुकानदारों व संपन्न लोगों से भिक्षा में वस्त्र एवं भोजन सामग्री के अलावा नकद लेते हैं। इसके बाद फुटपाथ पर जीवन बिता रहे लोगों के अलावा मलिन बस्तियों के लोगों के बीच इसे बांटते हैं। उनकी सेवा का दायरा सिर्फ उनके गृह प्रखंड या जिले तक ही नहीं, बल्कि सीमावर्ती झारखंड राज्य में देवघर तक फैला है। देवघर में कार्यरत पत्नी और बच्चों के पास जाने के बाद वहां भी समय निकाल कर वे भिक्षाटन करने निकल पड़ते हैं। इसके बाद वहां के जरूरतमंदों के बीच वे अनाज और कपड़े बांटते हैं। सूर्या वत्स झाझा पुरानी बाजार के रहने वाले हैं। उनके पिता रेलवे में चालक के पद पर कार्यरत हैं, जबकि पत्नी स्वास्थ्य सेवा में हैं।

सूर्या स्वच्छता अभियान को गति देने के लिए झाड़ू लेकर खुद से सड़कों पर निकल पड़ते हैं। देखा-देखी कुछ उत्साही नौजवान भी साथ हो जाते हैं और स्वच्छता का संदेश लोगों तक पहुंचाने के उद्देश्य में वह सफल हो पाते हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए भी लोगों को पॉलीथीन का उपयोग ना करने की नसीहत देना तथा पौधारोपण अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना उनकी आदतों में शुमार है। सूर्या वत्स बताते हैं कि स्वामी विवेकानंद के आदर्शों को आत्मसात कर गरीबों की सेवा से उन्हें अजीब सा सुकून मिलता है। जिस दिन किसी कारण से वह ऐसा नहीं कर पाते, उस दिन उनका चित्त अशांत रहता है।


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