जयप्रकाश उद्यान के इस स्मारक की बदलने लगी सूरत, 1952 में पंडित नेहरू ने यहां फहराया था राष्ट्रीय ध्वज
स्मार्ट सिटी योजना के तहत साढ़े छह लाख रुपये की लागत से जर्जर स्मारक का कायाकल्प होने लगा है। स्मारक स्थल के चारों ओर टहलने के लिए पाथ वे का निर्माण किया गया है।
भागलपुर, जेएनएन। जयप्रकाश उद्यान परिसर में ऐतिहासिक नेहरू स्मारक को सजाने व संवारने का कार्य शुरू हो गया है। स्मार्ट सिटी योजना के तहत साढ़े छह लाख रुपये की लागत से जर्जर स्मारक का कायाकल्प होने लगा है। स्मारक स्थल के चारों ओर टहलने के लिए पाथ वे का निर्माण किया गया है। टिल्हे पर पक्की सीढिय़ों का निर्माण पूरा हो गया है। इसके आसपास सुंदरीकरण के लिए गार्डेन बनाया जाएगा। रंग-रोगन के साथ रोशनी व लोगों के बैठने की भी व्यवस्था होगी।
पुरानी सीढिय़ों पर किया जा रहा प्लास्टर
नेहरू स्मारक को लेकर भागलपुर स्मार्ट सिटी के अधिकारी ने जिस डीपीआर व डिजाइन को स्वीकृति दी, उसके अनुरूप कार्य नहीं हो रहा है। डिजाइन में फव्वारा को दिखाया गया है, पर उसे हटा दिया गया। स्मारक स्थल की पुरानी सीढिय़ों पर प्लास्टर चढ़ाकर खानापूर्ति की जा रही है। इन कार्यों की निगरानी भी स्मार्ट सिटी के अधिकारी नहीं कर रहे हैं। कंस्ट्रक्शन कंपनी सिंघल के परियोजना प्रबंधक दिवाकर कुमार ने बताया कि फव्वारा लगाने की योजना है, पर बजट नहीं दिया। इसके लिए भागलपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड के अधिकारी से बजट बढ़ाने का प्रस्ताव भेजा गया है। स्वीकृति मिलने पर नई डिजाइन पर भी कार्य होगा।
रोचक है नेहरू स्मारक का इतिहास
जयप्रकाश उद्यान स्थित नेहरू स्मारक स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा हुआ है। वहां फरवरी 1922 के पहले सप्ताह में खादी की प्रदर्शनी लगाई गई थी। ठीकेदार ने स्मारक वाले टिल्हे को सजावट के लिए भारतीय ध्वज यानी स्वराज झंडा व्यवहार करने की योजना बनाई थी। इस पर ब्रिटिश सरकार के अधिकारी ने आपत्ति दर्ज कर दी। सूचना मिलने पर बिहार एक्सक्यूटिव काउंसिल के सदस्य सच्चिदानंद सिन्हा भागलपुर के प्रबुद्धजनों के साथ तत्कालीन आयुक्त पीसी सेन से मिले। सुलह के तौर पर यूनियन जैक अंग्रेज का झंडा भारतीय झंडा से ऊंचा फहराने पर सहमति बनी, लेकिन खादी प्रदर्शनी के उद्घाटन के दौरान नगरपालिका के अध्यक्ष रामेश्वर नारायण अग्रवाल ने भारतीय ध्वज को अंगे्रजों के झंडे से ऊंचा फहरा दिया। विद्रोह की संभावना को देख स्वराज झंडा नहीं उतरा गया। इसको लेकर ब्रिटिश सरकार ने आयुक्त पीसी सेन व डीएम को सस्पेंड कर दिया था। यह मामला ब्रिटिश संासद तक पहुंचा था। वर्ष 1922 की घटना को लेखक के.के. दत्ता ने बिहार में स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास खंड एक के पेज संख्या 437 में इसका उल्लेख किया है।
इतिहासकार रवि शंकर ने बताया कि इस घटना से प्रभावित होकर वर्ष 1952 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने टिल्हे राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। यहां पुर्णिया के महाराज ने चांदी की कुर्सी उनके बैठने के लिए मंगवाई थी, लेकिन नेहरू ने कुर्सी को हटाते हुए कहा था कि अब राजतंत्र नहीं है, जनता का राज है।