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कल तक झोला उठाते थे आज विरोधी हो गए

करीब पांच साल तक शहर में नेताजी का जलवा था। लकलक सफेद कुर्ता पहने जब नेताजी शहर में निकलते थे तो उन पर सबकी निगाह पड़ती थी। नेताजी का कई गाडिय़ों का काफिला और उस पर बजता हूटर।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Mon, 10 Jun 2019 11:12 AM (IST)Updated: Mon, 10 Jun 2019 05:40 PM (IST)
कल तक झोला उठाते थे आज विरोधी हो गए

भागलपुर [संजय]। एक भगवाधारी नेताजी के समर्थकों की शहर में लंबी फौज है। समर्थकों में डॉक्टर, इंजीनियर, साहित्यकार, चित्रकार और व्यवसाई सहित अन्य वर्ग के लोग हैं। इन दिनों नेताजी के खास (आमजन की भाषा में चमचे) दो समर्थक घूम घूमकर भला बुरा कह रहे हैं। जब नेताजी को अपने नेटवर्क से जानकारी मिली तो वे आगबबूला हो गए। चर्चा है उन्होंने दोनों को फोन किया और जमकर लताड़ा। नेताजी के कद के बारे में दोनों समर्थकों को पता था। सो बेचारे क्या करते नेताजी की लताड़ सुनने के बाद खीसे निपोर (अंदर से गुस्सा पर कुछ बोल न पाना) कर रह गए। नेता जी की एक खासियत है। भले ही दूसरे राज्य में अपनी राजनीति चमकाते हैं, लेकिन शहर में क्या हो रहा इस पर नजर रखते हैं। फीडबैक लेने लिए कुछ पेड (नेताजी के खर्च पर) आदमी भी लगा रखे हैं जो नेताजी को खासों की खबर भी पल पल की देते रहते हैं। बात विरोधी हुए समर्थकों की हो रही थी। शहर में चर्चा है कि एक विरोधी समर्थक की नेताजी के भाई ने फिल्म नगरी में बैठकर जमकर क्लास लगाई। सोशल मीडिया पर समर्थक की धज्जियां उड़ा दी। दूसरे को नेताजी ने शायद घर में घुसकर पिटाई करने की तक बात कही। यह सब बातें की चर्चा शहर में जोर पकड़े हुए है। इतनी फजीहत के बाद तो लाजमी है चम्मच विरोधी हो जाएंगे। पर सवाल वहीं खड़ा है आखिर ऐसा क्या हो गया कल तक खास थे आज पानी पी कर कोस रहे हैं। ऐसा इन दोनों ने क्या कर दिया नेताजी ने दोनोंं को दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका। इंतजार है बात हवा में भले है लेकिन किसी न किसी दिन सच्चाई जरूर सामने आएगी।

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अब नहीं दिखते हूटर वाले नेता जी

करीब पांच साल तक शहर में नेताजी का जलवा था। लकलक सफेद कुर्ता पहने जब नेताजी शहर में निकलते थे तो उन पर सबकी निगाह पड़ती थी। नेताजी का कई गाडिय़ों का काफिला और उस पर बजता हूटर। सभी को मजबूर कर देता था देखने के लिए। आखिर कौन वीआइपी निकल रहा है। यह सिलसिला पांच साल तक चलता रहा। इस बार चुनाव में नेताजी का शटर डाउन हो गया। वैसे राजनीति में तो चलता रहता है कभी शटर अप तो कभी डाउन। पर ये नेताजी तो थोड़े अलग हैं। नेताजी ने खुद को समेट लिया। अब शहर में उनकी गाड़ी पर लगा हूटर नहीं बजता। सुना है नेताजी अब घर से भी नहीं निकल रहे हैं। इधर नेताजी के गायब होने से उनके कार्यकर्ता भी सन्नाटे में हैं। पूरे पांच साल तक नेताजी के आगे-पीछे घूमने वाले उनके चम्मच भी किनारे हो गए। उन्होंने भी निकलना बंद कर दिया है। नेताजी के इस बर्ताव की वजह से अब उनके दल की गतिविधियां ही बंद हो गई है। मानों नेता जी का दल कार्यकर्ताविहीन हो गया हो। वैसे, नेताजी इसी तरह अवसाद में रहेंगे तो धीरे-धीरे लोग भूलने भी लगेंगे। जब जनता शटर डाउन कर देगी तो नेताजी को खादी उतार कुछ और धारण करना पड़ेगा।

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