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supaul news : कोसी के कछार पर अब दिखने लगेंगे विदेशी मेहमान, सीपेज वाले इलाके में बनाते हैं अपना आशियाना

supaul news कोसी के कछार में अब साइबेरियन क्रेन ग्रेटर फ्लेक्षिंमगो ब्लैक विंग्ट स्टिल्ट कॉमन ग्रीनशैंक नॉर्दर्न पिनटेल रोजी पेलिकन गडवाल वूड सैंडपाइपर स्पॉटेड सैंडपाइपर अधंगा लालसर कारन आदि प्रवासी मेहमान दिखने लगेगा। ये कोसी के सीपेज वाले इलाके में अपना आशियाना बनाते हैं।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Fri, 27 Nov 2020 06:55 AM (IST)Updated: Fri, 27 Nov 2020 06:55 AM (IST)
supaul news : कोसी के कछार पर अब दिखने लगेंगे विदेशी मेहमान, सीपेज वाले इलाके में बनाते हैं अपना आशियाना
मार्च के बाद जब मौसम गर्म होने लगता है तो ये पुन: वापस लौटते हैं।

सुपौल [राजेश कुमार]। ठंड देशों में जब पानी जमने की शुरुआत होने लगती है उससे पहले पानी में रहने वाले पक्षी लंबी यात्रा पर निकल पड़ते हैं। हजारों किलोमीटर की यात्रा कर ये वैसी जगहों पर पहुंचते हैं जहां इनके रहने व खाने का इंतजाम हो। इसी क्रम में कोसी के सीपेज वाले इलाके सहित जलजमाव वाले क्षेत्रों ये अपना आशियाना बनाते हैं। मार्च के बाद जब मौसम गर्म होने लगता है तो ये पुन: वापस लौटते हैं। इस प्रवास के दौरान जहां ये अपना वंशवृद्धि करते हैं वहीं शिकारियों के हाथों मारे भी जाते हैं। अब कोसी के कछार पर ये विदेशी मेहमान आएंगे।

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कोसी पर काम करने वाले कोसी कंसोर्टियम के भगवानजी पाठक बताते हैं कि कोसी के इलाके में ये पक्षी उत्तरी एशिया, रूस, पूर्वी साइबेरिया आदि स्थानों से यहां आते हैं। इन प्रवासी पक्षियों में साइबेरियन क्रेन, ग्रेटर फ्लेक्षिंमगो, ब्लैक विंग्ट स्टिल्ट, कॉमन ग्रीनशैंक, नॉर्दर्न पिनटेल, रोजी पेलिकन, गडवाल, वूड सैंडपाइपर, स्पॉटेड सैंडपाइपर, अधंगा, लालसर, कारन आदि प्रमुख हैं। ठंड प्रदेशों में जाड़े के दिनों में पानी जमने लगता है तो इनके रहने और भोजन की समस्या होने लगती है। ऐसे में अन्य देशों का रुख करते हैं। जाड़ा जब खत्म होने लगता है तो ये वापस जाना शुरू कर देेते हैं।

दरअसल कोसी के इलाके में पानी की कमी नहीं है इसलिए इन पक्षियों को यह इलाका भाता है। हर साल जाड़े की शुरुआत में इनका आना शुरू होता है। कोसी के इलाके में सामा-चकेवा पर्व जो कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है उसे इनके आगमन के समय की शुरुआत माना जाता है। इन पक्षियों के मांस की मांग काफी रहती है। इसलिए प्रवास के दौरान शिकारी इनकी शिकार भी करते हैं। प्रतिबंधित होने के कारण चोरी-छिपे इनका शिकार जारी रहता है। शिकारियों को इसके मांस के शौकीन लोगों की जानकारी रहती है और वे उनतक इसे पहुंचा देते हैं। इससे उन्हें अच्छी आमदनी हो जाती है।


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