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इन बुजुर्ग किसान के हर कोई दीवाने... ड्रीप और मल्चिंग तकनीक अपना कर स्‍ट्रॉबेरी से कमा रहे लाखों

सुपौल के इस बुजुर्ग किसान के हर कोई दीवाने हैं। और हो भी क्‍यों नहीं उम्र के आखिरी पड़ाव में वह ड्रीप और मल्चिंग तकनीक अपना कर स्‍ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं और इससे वे लाखों रुपये प्रति माह कमा भी रहे हैं।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Mon, 15 Mar 2021 05:07 PM (IST)Updated: Mon, 15 Mar 2021 05:07 PM (IST)
इन बुजुर्ग किसान के हर कोई दीवाने... ड्रीप और मल्चिंग तकनीक अपना कर स्‍ट्रॉबेरी से कमा रहे लाखों
कोसी के कछार में उगाए जा रहे स्‍ट्रॉबेरी।

सुपौल [गौरीश मिश्रा]। दृढ़ इच्छा शक्ति व जज्बा हो तो इंसान के लिए कुछ भी कठिन नहीं है इसकी मिसाल पेश की है राघोपुर प्रखंड की करजाईन पंचायत के बुजुर्ग किसान चक्रधर कुमार ने। आमतौर पर ठंडे प्रदेश कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, शिमला में होने वाली स्ट्रॉबेरी की खेती अब कोसी के कछार पर स्थित करजाईन पंचायत के मंसापुर वार्ड नंबर-18 में भी होने लगी है। स्ट्रॉबेरी खेती से किसान आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं साथ ही क्षेत्र के अन्य किसान भी इस ओर आकर्षित हो रहे हैं।

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ऐसे होती है स्ट्रॉबेरी की खेती

चक्रधर कुमार ने बताया कि स्ट्रॉबेरी के पौध को ड्रिप व मङ्क्षल्चग पर उगाया जाता है। इसकी रोपाई सितंबर-अक्टूबर में की जाती है। यह दिसंबर से मार्च के अंत तक फल देता है।

आमदनी का जरिया बनी स्ट्रॉबेरी

चक्रधर बताते हैं कि दो वर्ष पूर्व स्ट्रॉबेरी की खेती करने की ललक जगने के बाद उन्होंने हिमाचल से 60 पौधे मंगवाए लेकिन खेती के लिए अनुकूल मौसम नहीं रहने के कारण सिर्फ छह पौधे बचे। उन्होंने हार नहीं मानी। उन छह पौधों के रनर को कोकोपीट, साफ एवं वर्मी कंपोस्ट के मिश्रण से प्लास्टिक के ग्लास में जमा कर 250 पौधे तैयार किए। अब इसकी क्वालिटी भी अच्छी है और उत्पादन भी हो रहा है। अभी क्षेत्र के ही बाजार में फल भेजा जा रहा है जहां दो सौ से ढाई सौ रुपये किलो का भाव मिला रहा है। यह नाजुक फल होने से इसे अच्छे से पैङ्क्षकग करना पड़ता है।

उन्होंने बताया कि एक पौधे के फलने तक 30 से 40 रुपये का खर्च आता है, जबकि एक पौधे से करीब सौ रुपये की आमदनी होती है। उन्होंने बताया कि स्ट्रॉबेरी की फसल केवल ठंडे प्रदेश में ही होती है। इसके बावजूद वे इसकी खेती कर रहे हैं। इसके अच्छे परिणाम मिले और मीठे फल उग आए हैं। आगे वे एक एकड़ जमीन में इसकी खेती करना चाहते हैं। कहा कि अगर सरकारी स्तर पर उचित सहयोग मिले तो इसका रकबा इस क्षेत्र में बहुतायत में देखने को मिल सकता है। अन्य किसान भी इस ओर आकर्षित होकर आर्थिक रूप से मजबूत हो सकते हैं।


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