Move to Jagran APP

गाद से भरे जलाशयों के कोख, कम हो रही जलधारण की क्षमता, सूख रहे किसानों के हलक

पांच दशक से डैमों की जलधारण क्षमता बढ़ाने पर नहीं हुआ कोई काम। चांदन डैम का दो तिहाई हिस्सा गाद से भरा उड़ाही की योजना ठंडे बस्ते में। इससे किसानों को जितने पानी की आवश्यकता सिंचाई के लिए पड़ती है। उसकी पूर्ति नहीं हो पा रही है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Tue, 22 Sep 2020 10:57 PM (IST)Updated: Tue, 22 Sep 2020 10:57 PM (IST)
गाद से भरे जलाशयों के कोख, कम हो रही जलधारण की क्षमता, सूख रहे किसानों के हलक
बांका का चांदन डैम, इसकी जलधारण क्ष्‍मता काफी अधिक है।

बांका [राहुल कुमार]। पहाड़ और नदियों की अधिकता देख आजादी के तुंरत बाद की सरकारों ने बांका में जलाशयों के निर्माण की कतार लगा दी। छठे और सातवें दशक में बांका में आधा दर्जन से अधिक बड़े जलाशयों का निर्माण हुआ। इसके अलावा कई छोटी जलाशयों से भी खेतों की प्यास बुझाने का काम हुआ। लेकिन पांच दशक बाद बदल गई दुनिया में बांका की ङ्क्षसचाई सुविधा एक कदम आगे नहीं बढ़ पाई।

loksabha election banner

जलाशयों की संख्या बढ़ाने की बजाय, पहले के जलाशयों का कोख गाद यानी सिल्ट जमा होने से भर गया। सबसे बड़े चांदन जलाशय का दो तिहाई हिस्सा गाद से भर गया है। यानी पहले की तुलना में इसमें अब एक तिहाई ही पानी ङ्क्षसचाई के लिए जमा हो रहा है। इससे होता यह है कि डैम भी तब काम करता है, जब बारिश होती है। यानी अबकी अच्छी बारिश से खेतों में खुद-बखुद पानी है। ऐसे में ङ्क्षसचाई विभाग शत प्रतिशत ङ्क्षसचाई का लक्ष्य पूरा कर रहा है। पिछले साल जब बारिश नहीं होने से सूखा पड़ा, तब सभी डैमों ने हाथ खड़ा कर दिया। अभी पांच महीने से चांदन डैम का पानी बहकर नदी में बेकार बह रहा है। ओढऩी, विलासी, हनुमना, दरभाषण, डकरा, मध्यगिरी सभी जलाशयों की एक सी कहानी है। गाद भरने से बारिश खत्म होते ही डैमें दातें निपोरने लगती है। इससे रबी की कौन पूछे बरसात में खरीफ तक भी ठीक से पानी नहीं पहुंच पाता है।

पांच करोड़ में घोघा बियर का जीर्णोद्धार

हालिया वर्षों में ङ्क्षसचाई सुविधा के लिए पांच करोड़ की राशि घोघा बियर के जीर्णाेद्धार में खर्च की गई है। इसके अलावा बौंसी में झारखंड जाने वाली पानी के नहर को भी ठीक किया गया है। दोनों चांदन जलाशय योजना का ही काम है। इसके अलावा ङ्क्षसचाई विभाग शहर में सदर अस्पताल के समीप एक आईबी का निर्माण करोडा़ें रूपये की लागत से करा रही है। तीनों योजनाओं को करीब अंतिम रूप दिया जा चुका है। इसके बाद भी जेठौर में घोघा बीयर स्कीम के समीप चांदन नदी का अधिकांश पानी फाटक जर्जर रहने से नदी में बेकार बह जाता है।

पानी की हो व्यवस्था तो सोना उगलेगी धरती

किसानों का मानना है कि कोरोना काल के बाद कृषि क्षेत्र में लोग बढ़े हैं। खेती में सबसे ज्यादा खर्च पानी में बह जाता है। ऐसे में जरूरी है कि ङ्क्षसचाई सुविधा बढ़ाने का सरकार प्रयास करें। अमरपुर के किसान विवेकानंद ङ्क्षसह और परमानंद राम बताते हैं कि घोघा बियर से ही सलेमपुर और तारडीह इलाके में पानी पहुंचाने की योजना थी। मामूली खर्च से ङ्क्षसचाई विभाग किसानों का करोड़ों रूपया बचा सकता है। लेकिन सदाबह डांढ में पानी गिराने का इंतजाम नहीं हुआ। विधायक के भरोसे के बाद अधिकारी भी आए, लेकिन काम नहीं हुआ। बांका के दिवाकर ङ्क्षसह बताते हैं कि वे लोग नहर के किनारे हैं। लेकिर रबी में पानी मुश्किल से मिल पाता है। किसानों को जलाशय और बिजली दोनों तरफ से पानी उपलब्ध कराने की योजना पर सरकारों को काम करना चाहिए।

जलाशयों में गाद भरने से पानी का ठहराव कम हुआ है। निश्चित रूप से इससे ङ्क्षसचाई प्रभावित होती है। चांदन जलाशय से गाद निकलाने की योजना पर सरकार काम कर रही है। इसका प्राक्कलन बना कर सरकार को भेजा गया है। गाद निकासी के तरीकों पर विचार हो रहा है। इसके बाद चांदन जलाशय किसानों के लिए उपयोगी बन जाएगा।

विनोद कुमार, कार्यपालक अभियंता, सिंचाई प्रमंडल, बांका-बौंसी


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.