'शकुंतला उस समय सांसद बनीं जब महिलाओं को राजनीति से दूर रखा जाता था', जानिए पूरी कहानी
उनके दादा भिखारी प्रसाद महतो इलाके के नामचीन किसान थे। गांधी जी के आह्वान पर महतो ने निलहा आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। उस समय गांव में स्कूलों की संख्या कम हुआ करती थी।
भागलपुर [संजय सिंह]। उस समय के चुनाव में अशिक्षित मतदाताओं के लिए तो ‘कोई नृप होई हमें का हानि’ का मंत्र था। तब जातीय आधार पर वोट डाले जाते थे। जाति की पंचायत वोट के लिए आदेश जारी करती थी। चुनाव को प्रभावित करने के लिए तरह-तरह के प्रपंच रचे जाते थे। लेकिन, इन सबके बावजूद स्वतंत्रता सेनानी और किसान की पुत्री शकुंतला देवी बांका से दो बार सांसद चुनी गईं।
सांसद बनने के बाद उनकी पहली प्राथमिकता शिक्षा ही रही। उन्होंने अपनी पैतृक जमीन को दान देकर हाईस्कूल की स्थापना करवाई। शकुंतला देवी उस समय सांसद बनीं जब महिलाओं को राजनीति से दूर रखा जाता था। उनके दादा भिखारी प्रसाद महतो इलाके के नामचीन किसान थे। गांधी जी के आह्वान पर महतो ने निलहा आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। उस समय गांव-जवार में स्कूलों की संख्या कम हुआ करती थी। किसान के घर जन्मी शकुंतला ने पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई तो गांव में की, फिर हाईस्कूल की शिक्षा ग्रहण करने उन्हें भागलपुर स्थित मोक्षदा गर्ल्स स्कूल आना पड़ा। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद आगे की शिक्षा ग्रहण करने के लिए उन्हें पटना वीमेंस कॉलेज जाना पड़ा। दादा की दुलारी होने की वजह से शकुंतला राजनीति में भी दिलचस्पी लेने लगीं।
उनकी प्रतिभा को देखकर 1957 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें बांका लोकसभा क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया। और वह चुनाव जीत भी गईं। चुनाव जीतने के बाद उन्होंने पहली प्राथमिकता शिक्षा के विकास को दिया। वह मानती हैं कि शिक्षा के विकास के बिना मानव का विकास अधूरा है। किसानों के लिए सिंचाई की व्यवस्था में भी उन्होंने दिलचस्पी ली। इन दो कार्यों की वजह से फिर 1962 में हुए चुनाव में दूसरी बार सांसद चुनी गईं। तीसरी बार चुनाव हारने के बाद वह बांका के ही बेलहर विधानसभा क्षेत्र से 1972 से 1977 के बीच विधायक रहीं। उनकी राजनीतिक प्रतिभा को देखते हुए पार्टी ने वर्ष 1984 से 90 तक बिहार प्रदेश महिला कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया। उन्होंने कई अन्य पदों पर भी कार्य किया।
शकुंतला देवी बताती हैं कि तब और इस समय की राजनीति में बड़ा फर्क आया है। चुनाव प्रचार के दौरान यदि विरोधी के घर भी जाते थे, तो पूरा सम्मान मिलता था। यहां तक की बेटी होने के नाते लोग खोंइछा देकर विदा करते थे। पर आज तो पूरा माहौल ही बदला हुआ है। राजनीति का जो स्तर हो गया है उसे सुधारने के लिए सबको मिल-बैठकर प्रयास करना होगा। जातिगत राजनीति से ऊपर उठकर विकास को प्राथमिकता देनी होगी, तभी भारत दुनिया का गुरु बन सकेगा।