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सती ने यहां गिराया अपना हृदय, इसलिए बिहार की इस जगह का नाम पड़ा हृदयनगर, मंदिर में हैं अद्भुत शक्तियां

बिहार के पूर्णिया जिले का हृदयनगर की पहचान सिर्फ जिले या प्रदेश तक ही नहीं बल्कि देश के बाहर नेपाल तक भी है। नवरात्र में माता के भक्त यहां अपनी मनोकामना लेकर आते हैं। मान्यता है कि हृदयश्वरी दुर्गा मंदिर में अद्भुत शक्तियां भी हैं।

By Narendra Kumar AnandEdited By: Shivam BajpaiPublished: Fri, 30 Sep 2022 10:34 PM (IST)Updated: Fri, 30 Sep 2022 10:34 PM (IST)
सती ने यहां गिराया अपना हृदय, इसलिए बिहार की इस जगह का नाम पड़ा हृदयनगर, मंदिर में हैं अद्भुत शक्तियां
हृदयनगर में अवस्थित है मां दुर्गा का मंदिर, नाम- हृदयश्वरी दुर्गा मंदिर

सोहन कुमार, पूर्णिया : जिले का बनमनखी अनादि काल से आस्था और भक्ति का केंद्र रहा है। यहां एक ऐसा भी मंदिर है, हृदयनगर दुर्गा मंदिर नाम से प्रसिद्ध है।  अनुमंडल मुख्यालय से महज 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित शक्ति पीठ स्थल काझी अपनी विशालता एवं भव्यता को लेकर इंडो-नेपाल बार्डर से सटे कोसी-सिमांचल क्षेत्र में विख्यात, प्रख्यात एवं शुमार है। इस शक्तिपीठ दुर्गा मंदिर के बारे में बताया जाता है कि सती का हृदय यहीं गिरा था। इसलिए इस जगह को हृदयनगर भी कहा जाता है।

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ऐसा कहा जाता है कि भारत वर्ष में 52 शक्ति पीठों में मां आदि शक्ति के हृदय गिरने का वर्णन पौराणिक कथा-पुरानों में वर्णित है, जो यहां प्रत्यक्ष रूप में है। बताया जाता है मां दुर्गा भगवती यहां स्वयं आए थे। यह मंदिर बहुत प्रखर एवं शक्तिशाली है। शक्ति पीठ दुर्गा मंदिर में कोशी-सीमांचल के अलावा पड़ोसी देश नेपाल, बिहार, झारखंड, बंगाल के श्रद्धालु यहां पूजा-अर्चना के अलावा तांत्रिक पूजा भी आकर करते हैं।

श्रद्धालुओं की मन्नतें पूरी करने वाली सिद्धपीठ काझी हृदयश्वरी दुर्गा मंदिर अपनी प्राचीनता के साथ-साथ आज नवीनतम इतिहास को गढ़ रहा है। इस क्षेत्र के बुजुर्गों का मानना है कि यह शक्ति पीठ मंदिर हजारों वर्ष पूर्व से स्थापित है। उस समय मां एक झोपड़ी में स्थापित थे। आज एक विशाल एवं भव्य मंदिर में स्थापित है। मान्यता है कि यहां अद्भुत शक्तियां हैं, यही वजह है कि यहां तांत्रिक भी साधना करने आते हैं।

इस मंदिर में मां भगवती की मिट्टी का दो उभर पिंड है उसी की पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है,कि माता के दरबार में जो भक्त सच्चे मन से मन्नतें मांगते के लिए आते हैं, उसकी सभी मनोकामनाओं को हृदयश्वरी भगती पूरी करती है। बताया जाता है मन्नतें पूरी होने की वजह से यहां प्रतिवर्ष लोगों की जनसैलाब उमड़ती है। नवरात्र के समय श्रद्धालुओं द्वारा मां के चरणों में प्रसाद व चुनरी चढ़ाया जाता है। साथ ही मां के खोईछा में महिलाएं पुरानी रीति रिवाज से खोइछा भर कर पूजा-अर्चना करती हैं। वहीं भक्तों की मन्नतें पूरी होने पर छागर की बलि दी जाती है।

यहांं अष्टमी को निशा बलि की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इसके बाद माता का पट्ट खोला जाता है। शक्तिपीठ दुर्गा मंदिर पूजा समिति के अध्यक्ष प्रधान शिवनारायण शाह, भूदाता सह मंदिर पुजारी मनमन झा, सचिव श्यामानंद सिंह, रंभा देवी ने बताया कि माता जगदंबा की पूजा परंपरागत तरीके और वैदक रिति रिवाज से की जाती है। मंदिर परिसर में भव्य आरती, माता का जागरण सहित अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मेले के दौरान मंदिर समिति के सदस्यों द्वारा दिन व रात कड़ी मेहनत कर भीड़ को नियंत्रित करने में लगे रहते हैं। इसके अलावा भीड़ को देखते हुए विवि व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अनुमंडल प्रशासन की ओर से दंडाधिकारी एवं पुलिस पदाधिकारी के रूप में प्रतिनियुक्त की जाती है।


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