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वर्ष प्रतिपदा : बारिश में भी नहीं रूके स्वयंसेवकों के कदम, भारतीय नववर्ष पर RSS ने किया पथ संचलन

RSS ने भागलपुर में वर्ष प्रतिपदा उत्सव मनाया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसके अलावा विजयादशमी हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव गुरुपूर्णिमा मकर संक्रांति और रक्षाबंधन उत्सव मनाती है।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Sun, 07 Apr 2019 01:47 PM (IST)Updated: Sun, 07 Apr 2019 01:47 PM (IST)
वर्ष प्रतिपदा : बारिश में भी नहीं रूके स्वयंसेवकों के कदम, भारतीय नववर्ष पर RSS ने किया पथ संचलन

भागलपुर [दिलीप कुमार शुक्ला]। भारतीय नववर्ष पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने आनंदराम ढांढनिया सरस्वती विद्या मंदिर से पथ संचलन किया। स्वयंसेवकों ने बारिश में भी अपने कदम को नहीं रोका तथा शहर का भ्रमण किया। लगभग ढाई सौ की संख्या में गणवेशधारी स्वयंसेवक वाद्य यंत्र के स्वर पर कदम से कदम मिलाते हुए आगे बढ़े। भगवा ध्वज लिए भारत को पुन: विश्वगुरु बनाने का संकल्प लेकर स्वयंसेवक मंजिल की ओर बढ़ रहे थे। शहरवासियों ने स्वयंसेवकों पर पुष्प वर्षा की। इस दौरान भागलपुर पुलिस सुरक्षा के लिए तैनात थी। करीब एक घंटे के पथ संचलन के बाद सभी स्‍वयंसेवक पुन: आनंदराम पहुंचे, जहां बौद्धिक हुआ। स्वयंसेवकों ने संघ के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार की जयंती मनाई। सभी ने आद्य सरसंघचालक प्रणाम किया। डॉ. हेगगेवार का जन्‍म वर्ष प्रतिपदा के ही दिन हुआ था। वर्ष प्रतिपदा अर्थात भारतीय नववर्ष चैत्र शुक्‍ल पक्ष एक के दिन को राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ उत्सव के रूप में मनाती है।

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इस अवसर पर दक्षिण बिहार प्रांत के बौद्धिक शिक्षण प्रमुख बालमुकुंद गुप्त ने कहा कि आज के दिन को अन्य धार्मिक कार्यक्रमों के दिनों की तरह नहीं याद किया जाता, यह भारत के लिए दुर्भाग्य है। इसलिए संघ को और कार्य करने की आवश्यकता है। उन्‍होंने कहा कि जब अंग्रेजों का शासन था उसी समय से हमारी शिक्षा पद्धति ऐसी हो गई कि भारत के गौरवशाली अतीत को नष्ट कर दिया गया। लोग अपनी संस्‍कृति से ज्‍यादा यूरोप की संस्‍कृति का गुणगान करने लगे। भारतवासियों को जो अपने उपर गर्व होना चाहिए, वह समाप्‍त कर दिया गया। इस कारण लोग भारतीय संस्‍कृति और यहां की परंपरा और धार्मिक अनुष्‍ठान भूलने लगे। ऱाष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ इस दिशा में लोग को प्रेरित कर भारतीय संस्‍कृति को बोध करा रहा है।

उन्‍होंने कहा कि भारतीय यानी हिन्‍दू संस्‍कृति हमें सर्व भवन्‍तु सुखिन: का पाठ कराती है। हमारे यहां वसुधैव कुटुम्बकम का भाव है। यह संस्‍कृति हमें समरस बनाती है। मनुष्य में ही नहीं, बल्कि पशु, पक्षी, वनस्‍पति, प्रकृति, पर्यावरण, नदी आदि के लिए भी हमारा कुछ कर्तव्‍य है, हमारी संस्‍कृति हमें इसकी रक्षा के लिए प्रेरित करती है।

उन्होंने डॉ. हेडगेवार के व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए कहा कांग्रेस में जाने के बाद उन्हें लगा इससे देश का कल्याण नहीं होगा, इसलिए उन्होंने 1925 में आरएसएस की स्थापना की। आज संघ का अखंड रूप दिख रहा है। उन्‍होंने कहा कि आज संघ कार्य काफी व्‍यापक हुआ है। पहले हम लोग सिर्फ शाखा जाते थे और इसके अलावा संघ के कार्यक्रम, प्रशिक्षण और बैठकों तक ही अपने को सीमित रखते थे। लेकिन आज इसके अलावा कई राष्‍ट्रीय मुद्दों पर संघ को कार्य करना पड़ रहा है। उन्‍होंने कहा आज देश में 37011 स्‍थानों पर 59266 शाखाएं लग रहीं हैं। इसमें और गति देने की आवश्‍यकता है।

उन्‍होंने दुख व्‍यक्‍त करते हुए कहा कि दक्षिण बिहार का काम अन्‍य प्रांतों से कमजोर है। हमसे बेहतर कार्य बंगाल में संघ्‍ा का है। केरल का कार्य भी हमसबों को प्रेरित करता है। इसलिए यहां के स्‍वयंसेवकों को और सक्रियता से कार्य करनी चाहिए। स्‍वयंसेवक खुद तय करें कि वह संघ कार्य के लिए रोज कितना समय निकालेंगे। प्रत्‍येक मंडल तक संघ की शाखा हो, इसके लिए प्रयास में जुट जाएं। गृहस्‍थ कार्यकर्ता अल्‍पकालीन विस्‍तारक बनकर, जहां संघ कार्य नहीं है वहां जाकर कार्य करें।

उन्होंने आगामी लोकसभा चुनाव में शत प्रतिशत मतदान हो इसके लिए मतदाताओं को जागरूक करने का आह्वान किया। उन्होंने यह भी कहा नोटा में वोट डालना आत्मघाती कदम होगा। कार्यक्रम में जिला संघचालक डॉ. राणा प्रताप सिंह, नगर संघचालक डॉ चंद्रशेखर साह, विभाग प्रचारक विजेंद्र, विभाग व्‍यवस्‍था प्रमुख रतन भालोटिया, जिला कार्यवाह निर्भय कुमार उपस्थित थे। इस अवसर पर राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ सहित उनके सभी अनुषांगिक संगठनों के कार्यकर्ता मौजूद थे। शहर के आम लोगों को भी बौद्धिक कार्यक्रम में बुलाया गया था। बौद्धिक कार्यक्रम में पांच सौ से ज्‍यादा लोग उपस्थित थे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अब तक के सरसंघचालक

डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार उपाख्य डॉक्टरजी (वर्ष १९२५ - १९४०)

माधव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य गुरूजी (वर्ष १९४० - १९७३)

मधुकर दत्तात्रय देवरस उपाख्य बालासाहेब देवरस (वर्ष १९७३ - १९९३)

प्रोफ़ेसर राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया (वर्ष १९९३ - २०००)

कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन उपाख्य सुदर्शनजी (वर्ष २००० - २००९)

डॉ॰ मोहनराव मधुकरराव भागवत (वर्ष २००९ -)


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