दुर्लभ प्रवासी पक्षियों का बसेरा बना बांका, आधा दर्जन जलाशयों पर चिडिय़ों के कलरव, मनमोहक दृश्य
बांका में इन दिनों काफी संख्या में दुर्लभ प्रवासी पक्षी हैं। चांदन डैम सहित अन्य जगहों पर के पेड़ों को अभी घोंघिल दल के आने का इंतजार हो रहा है। इससे बांका का प्राकृतिक दृश्य और बेहतर हो गया है। नववर्ष पर यहां काफी संख्या में पर्यटक भी आते हैं।
बांका [डॉ. राहुल कुमार]। पिछले कुछ सालों से बांका के जलाशयों की आबोहवा प्रवासी पक्षियों को खूब भा रही है। बड़ी संख्या में विदेशी के साथ देशी पक्षियों का झुंड ठंड की दस्तक के साथ ही डैमों पर अपना बसेरा बना चुका है। इससे डैम चिडिय़ों की चहचहाहट से गूंजने लगा है। ओढऩी डैम, बदुआ डैम और चांदन डैम के इलाकों में इसकी बहुतायता दिख रही है। इसके अलावा चांदन नदी की जलधारा और सिंचाई स्त्रोतों पर भी पनकौव्वा, जलमुर्गी आदि का कलरव दिख रहा है। सामान्य तौर पर इन पक्षियों का बांका स्थाई ठिकाना नहीं रहा है। ठंड की दस्तक के साथ ही इनका बांका आना होता है और गर्मी शुरु होने से पहले फरवरी-मार्च तक ये अपने बच्चों के साथ अपने पुराने ठिकाने पर पहुंच जाते हैं। चांदन डैम के जवाहर नवोदय विद्यालय शक्तिनगर गेट पर ही चार बड़ा पेड़ हर साल घोंघिल का बड़ा ठिकाना बनता है। अभी ब्राहिल का झुंड नहीं पहुंचा है, लेकिन स्थानीय लोगों के मुताबिक जनवरी यानी पूस में उसका झुंड यहां पहुंचता है। जबकि जलाशयों पर बाराहेडेड गुज, गॉडविट, स्पॉटेड रेडशॉक, लालसर, पनकौव्वा, जलमुर्गी आदि का बड़ा दल अठखेलियां कर रहा है।
निर्जन जंगल में पक्षियों को मिलता सकून
पक्षी पर काम करने वाले विशेषज्ञ दीपक कुमार बताते हैं कि पक्षियों को सुकून की ङ्क्षजदगी चाहिए। बांका में जलाशय के साथ जंगल और निर्जन आबादी का इलाका खूब है। डैम में भोजन तलाशने के बाद वे इसके किनारे के जंगल और पेड़ पर अपना ठिकाना बनाते हैं। ठंड इनके प्रजनन का मौसम है। इसी दौरान अंडे और फिर वे अपने घोंसलों में बच्चे तैयार करते हैं। ठंड में जलाशयों पर दिखने वाले अधिकांश पक्षी बांका के स्थाई निवासी नहीं है। सभी यहां की बदली आवोहबा और सुरक्षा को पसंद कर यहां शरण ले रहे हैं। जरूरत है कि स्थानीय लोग इन झुंड को शिकारी से सुरक्षित रखें।
कई जलाशयों पर बांका में प्रवासी पक्षी आने का क्रम पिछले कई सालों से जारी है। यह अच्छी बात है। वन विभाग अपने कर्मियों के माध्यम से इसकी निगरानी का प्रयास करेगा। स्थानीय लोगों को भी इसको लेकर जागरूक रहने की जरूरत है। - राजीव रंजन, वन प्रमंडल पदाधिकारी