Ram Vilas Paswan Death: आसान नहीं था गांव शहरबन्नी से दिल्ली तक का सफर, जानिए कौन थे राम विलास पासवान
Ram Vilas Paswan Death News राम विलास पासवान का खगडि़या के शहरबन्नी गांव से दिल्ली की केंद्रीय राजनीति तक का सफर लंबा रहा। यह सफर इतना आसान भी नहीं था। बिहार के हाजीपुर को उन्होंने अपनी राजनीतिक जमीन के रूप में विकसित किया।
भागलपुर [संजय सिंह]। Ram Vilas Paswan Death News: खगडि़या को सात नदियों से घिरे रहने की वजह से फरकिया कहा जाता है। राजा टोडरमल के समय भी भौगोलिक बनावट ऐसी थी कि यहां की भूमि की मापी नहीं हो पाई थी। इसी इलाके से दरभंगा और खगडिय़ा की सीमा पर स्थित गांव शहरबन्नी में रामविलास पासवान का जन्म हुआ था। इनके पिता जामून दास संत के रूप में आसपास के गांवों में विख्यात थे। मां सीया देवी के कंधों पर खेती-बारी का जिम्मा था। इस पिछड़े इलाके में जन्मे व पले-पढ़े राम विलास पासवान ने आधी सदी की अपनी राजनीतिक यात्रा के दौरान बड़े मुकाम तय किए। गांव शहरबन्नी से छात्र नेता के रूप में उभरे पासवान देखते ही देखते दलित राजनीति के धुरी बन गए। हालांकि, ये सफर इतना आसान भी नहीं था।
उन्होंने प्राथमिक शिक्षा शहरबन्नी विद्यालय से ली। इसके बाद मेघौना उच्च विद्यालय से मैट्रिक किया। कॉलेज की शिक्षा कोसी कॉलेज खगडिय़ा और आरडी एंड डीजे कॉलेज मुंगेर से हासिल की। रामविलास तीन भाइयों में सबसे बड़े थे। उनसे छोटे पशुपति कुमार पारस और सबसे छोटे रामचंद्र पासवान थे। रामचंद्र पासवान का भी निधन पिछले साल हो गया है। राजनीतिक रूप से यह परिवार बिहार में सबसे ज्यादा मजबूत था। इनके परिवार के तीन सदस्य सांसद थे। और स्वयं रामविलास पासवान राज्य सभा के सदस्य और केंद्र में मंत्री थे।
अपने राजनीतिक सफर के दौरान वे मुंगेर से चुनाव लड़ रहे समाजवादी नेता मधु लिमिये के संपर्क में आए। उनके संपर्क में आकर उन्होंने राजनीतिक के गुर को सीखा। लिमिये के प्रचार के दौरान ही लोगों ने पासवान की राजनीतिक प्रतिभा को पहचान लिया। फिर वे स्वयं सोशलिस्ट पार्टी से विधायक पद के उम्मीदवार बन गए। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस के बड़े कद्दावर नेता मिश्री सदा को पराजित किया। मिश्री सदा तब के मंत्रीमंडल के सदस्य भी थे। इस चुनाव में रामविलास पासवान की राजनीतिक लोकप्रियता और बढ़ गई, जो आगे बढ़ती ही चली गई। उन्होंने अपना राजनीतिक कर्मभूमि हाजीपुर को बनाया। वहां से वह कई बार सांसद रहे। अभी वहां से उनके भाई पशुपति कुमार पारस सांसद हैं।