Ram Mandir Bhumi Pujan : पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दशरथ ने यहां किया था यज्ञ
Ram Mandir Bhumi Pujan लखीसराय जिले के कजरा एवं चानन के जंगलों के बीच पहाड़ों के अंदर शृंगीऋषि का आश्रम था। यहां राजा दशरथ पुत्र की कामना से यज्ञ करने आए थे।
लखीसराय [मृत्युंजय मिश्रा]। Ram Mandir Bhumi Pujan : अयोध्या के राजा दशरथ की तीन रानियां रहने के बाद भी वर्षों तक उन्हें संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो रही थी। इस कारण राजा दशरथ हर समय विचलित रहा करते थे। तब उनके कुलगुरु मुनि वशिष्ठ ने उन्हें बताया कि अंग प्रदेश के एक आश्रम में ऋषि शृंगी (ऋष्यशृंग) के यहां याचक के रूप में उन्हें जाकर पुत्र प्राप्ति की याचना करनी चाहिए। इसके बाद राजा दशरथ अयोध्या से पैदल शृंगीऋषि के आश्रम आए। यहां शृंगीऋषि ने राजा दशरथ को पुत्रकामेष्टि यज्ञ कराया। इसके फलस्वरूप राजा को श्रीराम सहित चार पुत्रों की प्राप्ति हुई। वाल्मीकि रामायण में इसका वर्णन है।
लखीसराय में था शृंगीऋषि का आश्रम : लखीसराय जिले के कजरा एवं चानन के जंगलों के बीच पहाड़ों के अंदर शृंगीऋषि का आश्रम था। हालांकि, यहां पर आश्रम के कोई अवशेष अब नहीं हैं, लेकिन छोटे से मंदिर में ऋषि की प्रतिमा और शिवलिंग स्थापित है। यहां पहाड़ पर जलकुंड और झरना भी है। दुरूह रास्ते से होकर पहाड़ की चोटी पर यज्ञकुंड भी है, लेकिन वहां हर कोई नहीं पहुंच पाता है। मान्यता है कि कुंड में स्नान करने से चर्मरोग दूर होता है। संतान प्राप्ति के बाद राजा दशरथ ने अपने चारों पुत्रों का मुंडन संस्कार भी यहीं करवाया था।
अयोध्या के पास भी है शृंगीऋषि का आश्रम : अयोध्या से करीब 38 किलोमीटर पूरब में भी शृंगीऋषि का आश्रम होने की बात कुछ शास्त्रों में लिखी गई है। एक अन्य कथा के अनुसार अंगप्रदेश (लखीसराय) से आकर राजा दशरथ शृंगीऋषि को अपने साथ अयोध्या लेकर गए थे और वहीं यज्ञ करवाया था। इस कारण वहां भी शृंगीऋषि का आश्रम है।
नारी से बचाव के लिए जंगल में पले-बढ़े शृंगीऋषि
पौराणिक कथाओं के अनुसार शृंगीऋषि (ऋष्यशृंग) विभांडक तथा अप्सरा उर्वशी के पुत्र थे। विभांडक के कठोर तप से देवताओं ने भयभीत होकर उर्वशी को भेजा। उर्वशी और विभांडक से शृंगीऋषि का जन्म हुआ। पुत्र के जन्म के बाद उर्वशी स्वर्गलोक चली गई। इस धोखे से विभांडक आहत होकर नारी से घृणा करने लगे और अपने पुत्र शृंगीऋषि का पालन-पोषण पहाड़ों के बीच जंगल में करने लगे, ताकि पुत्र पर किसी नारी का साया न पड़े। वह जंगल तत्कालीन अंग देश की सीमा से लगा था जो आज का लखीसराय वन क्षेत्र है। यहां शृंगीऋषि का आश्रम था। - पंडित रमाकांत पाठक, पौराणिक ग्रंथों के जानकार