..और जब खेतों में बज उठते हैं राग मल्हार
मानसून ने दस्तक दे दिया है तो यहां खेतों में राग मल्हार बज उठेंगे।
पूर्णिया (शैलेश)। भारतीय संगीत की अपनी अलग विशेषता है। हर मौसम के लिए अलग-अलग राग हैं। बारिश के राग मल्हार गाया जाता है, इसमें बारिश होने की कामना की जाती है। अब जब मानसून ने दस्तक दे दिया है तो यहां खेतों में राग मल्हार बज उठेंगे। संगीत की जानकारी ना सही लेकिन खेतों में मजदूरों के कंठ से बारिश के लिए समवेत बोल फूट पड़ेंगे। धन रोपनी के समय खेतों में जमे पानी में पांव के छप-छप की ताल पर गीतों के ये बोल मनोरम ²श्य उपस्थित करते हैं। बारिश के लिए अब हर जतन किया जाएगा। कहीं टोटके आजमाते हुए मेंढ़की की शादी रचाई जाएगी तो कहीं शिव¨लग को पानी में डुबाया जाएगा। कजरी, लगनी आदि तो बारिश के समय में गाए ही जाते हैं।
कृषि इस इलाके में लोगों के आजीविका का मुख्य साधन है। 90 फीसद लोग खेती या इससे जुड़े अन्य कार्यों से अपनी आजीविका चलाते हैं। धान की फसल लोग प्रमुखता से करते हैं। इसके लिए पानी की अधिक आवश्यकता होती है। ¨सचाई के लिए सरकार की ओर से लाख व्यवस्था की गई हो लेकिन सु²ढ़ व्यवस्था नहीं रहने के कारण पानी के लिए किसान मानसून की बारिश पर ही निर्भर रहते हैं। बारिश शुरू होते ही धान की खेती शुरू हो जाती है। धन रोपनी के समय खेतों में मजदूर बारिश की कामना को लेकर स्थानीय भाषा में गीत गाते हैं। कोन जनमुआ के चूक भेलए, मेघवा जे सूखी गेलए, परलय ना करिअह भगवान, उपजा दीह धान जैसे गीत गाते हुए धान की रोपाई करते हैं। खेतों में जमे पानी में पांव की छप-छप गीत के बोल को जब ताल देते हैं तो लोग सुनते रह जाते हैं। बहियार की नीरवता में ये बोल दूर तक सुने जाते हैं। मान्यता है कि इनकी गीतों को सुनकर उपरवाले भी मेहरबान होकर मंत्रमुग्ध होकर बारिश करते हैं।
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कोट:-
मौसम के अनुसार राग भारतीय संगीत की विशेषता है। कहा जाता है कि स्वर सम्राट तानसेन जब राग मल्हार गाते थे तो बारिश होने लगती थी। आज भी बारिश के लिए गीत गाए जाते हैं। बारिश के समय में कजरी, लगनी आदि गाया जाता है।
एस रोहितस्व पप्पू, निर्देशक, कसबा सांस्कृतिक मंच