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कोरोना की लड़ाई में ताकत देगा पूर्णिया का मखाना, सूबे में सबसे अधिक सात हजार हेक्टेयर में यहां होती है खेती

पूर्णिया में इस साल व्यापक पैमाने पर मखाना की खेती हो रही है। यहां पर सूबे में सबसे अधिक सात हजार हेक्टेयर में इसकी खेती हो रही है। पूर्णिया में मखाना का प्रोसेङ्क्षसग प्लांट नहीं रहने के कारण 40 हजार परिवार मखाना फोड़ी कर परिवार का भरण पोषण करते हैं।

By Abhishek KumarEdited By: Published: Wed, 16 Jun 2021 04:27 PM (IST)Updated: Wed, 16 Jun 2021 04:27 PM (IST)
कोरोना की लड़ाई में ताकत देगा पूर्णिया का मखाना, सूबे में सबसे अधिक सात हजार हेक्टेयर में यहां होती है खेती
पूर्णिया में इस साल व्यापक पैमाने पर मखाना की खेती हो रही है।

पूर्णिया [राजीव कुमार]। पूर्णिया का मखाना लोगों को कोरोना से लडऩे की ताकत देगा। इस सूखे मेवे में हर वह जरूरी विटामिन है जो किसी व्यक्ति को कोरोना से लडऩे की ताकत देता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इम्युनिटी बढ़ाने में भी यह सहायक है। इसके साथ इसमें दिल के मरीजों को भी राहत देने वाले भी तत्व होते हैं। सूबे में सबसे अधिक मखाना का उत्पादन करने वाला जिला पूर्णिया है। यहां हर साल औसतन सात हजार हेक्टेयर में मखाना की खेती होती है। जिससे हर साल 14 हजार ङ्क्षक्वटल का उत्पादन होता है। सूबे में हर साल औसतन 35 हजार ङ्क्षक्वटल मखाना का उत्पादन होता है। पूर्णिया में मखाना का प्रोसेङ्क्षसग प्लांट नहीं रहने के कारण 40 हजार परिवार मखाना फोड़ी का काम करके अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं।

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100 ग्राम मखाना में 362 किलो कैलोरी

100 ग्राम मखाने 362 किलो कैलोरी मिलती है। इसमें 76.9 प्रतिशत कार्बोहाइडे्रड तथा 0.5 प्रतिशत मिनरल होता है। मखाना उत्पादन बढ़ाने के लिए भी प्रयास हो रहे हैं। बायोटेक किसान हब के माध्यम से इसकी खेती हो रही है। सबौर मखाना वन प्रभेद की खेती सबसे ज्यादा हो रही जिससे उत्पादन के साथ गुणवत्ता भी बढ़ी है। मखाना के सामान्य किस्मों की अपेक्षा सबौर मखाना वन की उपज डेढ़ गुणी है जिससे किसानों को अब इसकी खेती ज्यादा फायदेमंद हो गयी है। मखाना की खेती करने वाले किसानों को इसकी बिक्री के लिए बाजार की तलाश नहीं करनी पड़ती है बल्कि मखाना बेचने वाली कई कंपनिया खुद किसानों के पास इसकी खरीद के लिए पहुंच रही है।

इनमें विदेशी कंपनियों में बेलजियम की कंपनी जोनमी एलं देशी कंपनियों में मिस्टर मखाना, कंपनी, आर्गेनिक मखाना कंपनी एवं मिथिला मखाना कंपनी शामिल है। ये कंपनियां किसानों के खेतों से ही मखाना की फोड़ी खरीद लेती है। जिसके बाद मखाना तैयार करने में लगे मजदूर पांच हजार रूपए प्रति ङ्क्षक्वटल फोड़ी तो तैयार करने का शुल्क लेकर मखाना तैयार करते हैं। राज्य में मखाना का उत्पादन लगभग 35 हजार टन होता है। यह विश्व में होने वाले उत्पादन का 85 प्रतिशत है। इसके अलावा शेष 15 प्रतिशत में जापान, जर्मनी, कनाडा, बांग्लादेश और चीन का हिस्सा है। विदेशों में जो भी उत्पादन होता है, उसका बड़ा भाग चीन में होता है, लेकिन वहां इसक उपयोग केवल दवा बनाने के लिए होता है।

राष्ट्रीय मखाना शोध केंद्र

सूबे के पूर्णिया, कटिहार दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सहरसा, सुपौल, सीतामढ़ी,आदि जिलों में मखाना का सार्वाधिक उत्पादन होता है। देश में कुल मखाना उत्पादन का 88 बिहार में होता है। दरभंगा के निकट बासुदेवपुर में राष्ट्रीय मखाना शोध केंद्र की स्थापना की गयी है। दरभंगा में स्थित यह अनुसंधान केंद्र भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत कार्य करता है। पूर्णिया में अब लगातार इसकी खेती में बढ़ोतरी को देखते हुए सहायक मखाना अनुसंधान केन्द्र पूर्णिया में खोले जाने का प्रस्ताव कृषि विभाग ने सरकार के पास भेजा है।

कोरोना के कारण मखाना की बढ़ी मांग कीमत बढ़ी

दो वर्षों से कोरोना काल में मखाना की बढ़ती मांग के कारण इसकी कीमत में काफी वृद्धि हुई है। औसतन छह सौ से सात सौ रूपए प्रति किलो बिकने वाले बढिय़ा क्वीलिटी का मखाना अब नौ सौ से दस सौ रूपए किलो तक बिक रहा है। मांग में तेजी एवं बढ़ती कीमतों को कारण इस बार पूर्णिया में एक हजार हेक्टेयर में किसानों द्वारा मखाना की खेती को बढ़ाया गया है। पूर्णिया में 50 हजार किसानों द्वारा मखाने की खेती की जाती है।  


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