Prime Minister in Bhagalpur : 'भाषा और भाव के जरिये बाजी पलटते रहे नरेन्द्र मोदी'
इन दिनों आम चुनाव के सिलसिले में देश भर के तमाम राजनेता वोटरों का मन-ओ-मिजाज जीतने के तमाम जतन कर रहे हैं। नेताओं की इस भीड़ में मोदी का अंदाज सबसे जुदा दिखाई देता है।
[मनोज झा, स्थानीय संपादक, बिहार]। दानवीर कर्ण के ई महान अंगभूमि क हमअ प्रणाम करै छिए...!! अपने भाषण की शुरुआत में अंगिका में बोली गई इस पंक्ति के बाद दोनों हाथ जोड़कर श्रोताओं के सामने प्रधानमंत्री मोदी ने शीश क्या नवाया, भीड़ उनसे सीधे जुड़ गई, ठीक वैसे ही जैसे इलेक्ट्रीशियन तार के दो हिस्सों को जोड़कर कनेक्शन चालू करता है। आम चुनाव के तूफानी प्रचार के सिलसिले में गुरुवार को भागलपुर पहुंचे मोदी ने अपनी भाषण कला का यहां एक बारगी फिर दमदार प्रदर्शन किया। उनका संबोधन अपेक्षाकृत छोटा जरूर रहा, लेकिन वह राजनीति, समाज और मनोविज्ञान के खांचे में एकदम फ्रेम की तरह जड़ा हुआ था। उनके आने से पहले मोदी-मोदी के जनज्वार में डूबे विशाल पंडाल में तब यकायक प्रशांति-सी छा गई, जब माइक से अंगिका में एक भर्राई हुई आवाज गूंजी। बोलने की शैली और टोन किसी गैर-भागलपुरी का जरूर लग रहा था, लेकिन मोदी तब तक भीड़ की नब्ज पर हाथ रख चुके थे। फिर तो अंग प्रदेश, सिल्क, हैंडलूम और विक्रमशिला सेतु के रास्ते गंगा के पार गए और गर्जना करते हुए मानो पाकिस्तान के आसमान में दहाडऩे लगे।
दरअसल, इन दिनों आम चुनाव के सिलसिले में देश भर के तमाम राजनेता वोटरों का मन-ओ-मिजाज जीतने के तमाम जतन कर रहे हैं। नेताओं की इस भीड़ में मोदी का अंदाज सबसे जुदा दिखाई देता है। सबसे बड़ी बात है कि मोदी को यह पता होता है कि सामने बैठे श्रोता उनसे सुनना क्या चाहते हैं। विपक्ष बेशक यह आरोप लगा रहा हो कि मोदी अपनी चुनावी सभा में सेना के पराक्रम को भुना रहे हैं, लेकिन भागलपुर की सभा में उन्होंने पाकिस्तान के अलावा और भी बहुत सारी बातें की; कुछ इशारों में तो कुछ सीधी और खरी-खरी। उन्होंने विपक्ष को प्रकारांतर से यह बताया कि इस चुनाव में उनके पास मुद्दों की कोई कमी नहीं है। उन्होंने विकास के मुद्दे पर विपक्ष को सीधी ताल ठोंकी। बताया कि किस तरह आजादी के इतने दशक बाद भी विकास के तमाम मोर्चों पर देश जूझ रहा था और पिछले पांच साल में उनकी सरकार ने किस तरह सूरत बदलने की मुकम्मल कोशिशें कीं। एक तरह से मोदी यहां अपनी सरकार का रिपोर्ट कार्ड भी पेश कर रहे थे।
देश में हर घर बिजली पहुंचाने की उपलब्धि का पीएम ने खास अंदाज में जिक्र किया। कहा कि नेताओं के वाहनों की लालबत्ती बुझाकर गरीबों के घर में दूधिया रोशनी पहुंचा दी गई है। यहां मोदी राजनीति के अभिजात्य संस्कार पर सीधी चोट कर सामने पंडाल में देहात के दूरदराज इलाके से आए तमाम गरीब-गुरबों और किसानों को साध रहे थे। बता रहे थे कि देश में कांग्रेस के शासनकाल की सियासी शेखी अब बीते जमाने की बात हो गई है। इसी प्रकार उन्होंने अपने भाषण में विपक्ष के नेताओं को कई बार महामिलावटी जरूर कहा, लेकिन नाम राहुल गांधी का क्या, किसी का भी नहीं लिया। उन्होंने मानो यह बताया कि मोदी के मुकाबले कोई है ही नहीं। इसी क्रम में उन्होंने एक बार भी ऐसा कुछ नहीं कहा, जिससे ऐसा लगे कि सत्तारूढ़ राजग के मुकाबले चुनावी मैदान में कोई बराबरी से लड़ भी रहा है। यह मतदाताओं की स्मृति से किसी को ओझल करने, धीरे-धीरे हटाने का कारगर सियासी तरीका रहा है कि नाम लेना ही छोड़ दो, जिक्र ही न करो।
जहां तक स्थानीय मुद्दों की बात है तो अंगिका भाषा में अभिवादन करने के अलावा उन्होंने इस क्षेत्र का कई तरह से जिक्र किया। सबसे पहले तो पुलवामा के आतंकी हमले में भागलपुर के जांबाज की शहादत को नमन करते हुए पाकिस्तान को फिर से घर में घुसकर मारने को ललकारा। फिर स्थानीय मुद्दों पर उतरे और कारोबार, कृषि और जीवन-यापन की बातें कीं। सिल्क और हैंडलूम उद्योग, उसकी समस्याएं दूर करने के प्रयास, खेती-किसानी को संवारने की कोशिशें, गंगा की निर्मलता, विक्रमशिला सेतु के समांतर नये पुल की योजना आदि की चर्चा की। इन खालिस स्थानीय मुद्दों का जिक्र कर प्रधानमंत्री ने मानो यह बताने का प्रयास किया कि वह उस श्रेणी या संस्कार के नेता नहीं हैं, जिन्हें लुटियंस की दिल्ली से बाहर देश के दूरस्थ इलाकों की खुशियों और परेशानियों की कोई सुध ही नहीं है। राहुल गांघी के चौकीदार शब्द को पलटबाजी में तब्दील करने में जुटे मोदी ने अपने भाषण का अंत भी इसी से किया। वह अंगिका भाषा में नये-नये शब्द युग्म बोल रहे थे, जवाब में भीड़ चौकीदार...चौकीदार का समवेत उद्घोष कर रही थी। फिलहाल इसे आप मोदी मैजिक कह सकते हैं।